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Saturday, 15 June, 2024
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कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कई वर्गों का ओबीसी आरक्षण रद्द किया

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कोलकाता, 22 मई (भाषा) कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में 2010 में कई वर्गों को दिया गया अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा बुधवार को रद्द कर दिया और राज्य में सेवाओं व पदों पर रिक्तियों में इस तरह के आरक्षण को अवैध करार दिया।

अदालत ने कहा, “इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए वास्तव में धर्म ही एकमात्र मानदंड प्रतीत होता है।”

इसने कहा, “उसका मानना है कि मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ों के तौर पर चुना जाना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है।”

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह अदालत इस संदेह को अनदेखा नहीं कर सकती कि “उक्त समुदाय (मुसलमानों) को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए एक साधन माना गया।”

राज्य के आरक्षण अधिनियम 2012 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित करते हुए उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जिन वर्गों का ओबीसी दर्जा हटाया गया है, उसके सदस्य यदि पहले से ही सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं या राज्य की किसी चयन प्रक्रिया में सफल हो चुके हैं, तो उनकी सेवाएं इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगी।

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने दावा किया कि 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में ओबीसी के तहत सूचीबद्ध व्यक्तियों की संख्या पांच लाख से अधिक होने का अनुमान है।

मई 2011 तक पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा सत्ता में था और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस सरकार सत्ता में आई।

अदालत ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) कानून, 2012 के तहत ओबीसी के तौर पर आरक्षण का लाभ प्राप्त करने वाले 37 वर्गों को संबंधित सूची से हटा दिया।

अदालत ने इस तरह के वर्गीकरण की सिफारिश करने वाली रिपोर्ट की अवैधता के चलते 77 वर्गों को ओबीसी की सूची से हटाया, अन्य 37 वर्गों को पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग का परामर्श न लेने के कारण हटाया गया।

पीठ ने 11 मई, 2012 के एक कार्यकारी आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कई उप-वर्ग बनाए गए थे।

न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने 211 पृष्ठ के अपने आदेश में स्पष्ट किया कि 2010 से पहले ओबीसी के 66 वर्गों को वर्गीकृत करने वाले राज्य सरकार के कार्यकारी आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया गया, क्योंकि इन्हें याचिकाओं में चुनौती नहीं दी गई थी।

अदालत ने आयोग से परामर्श न लेने के आधार पर सितंबर 2010 के एक कार्यकारी आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसके जरिए ओबीसी आरक्षण सात प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत कर दिया गया था। इसमें ए श्रेणी के लिए 10 प्रतिशत और बी श्रेणी के लिए सात प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था।

पीठ ने कहा कि आरक्षण के प्रतिशत में 10 प्रतिशत वृद्धि वर्ष 2010 के बाद वर्गों को शामिल करने के कारण हुई।

इसने कहा कि चुनावी लाभ के लिए मुस्लिम समुदाय के वर्गों को ओबीसी के रूप में मान्यता देना उन्हें संबंधित राजनीतिक प्रतिष्ठान की दया पर छोड़ देगा और इससे वे अन्य अधिकारों से वंचित रह सकते हैं।

अदालत ने कहा, “इसलिए ऐसा आरक्षण लोकतंत्र और समग्र रूप से भारत के संविधान का भी अपमान है।”

भाषा जोहेब नेत्रपाल

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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