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Friday, 22 November, 2024
होमएजुकेशनस्कूली शिक्षा के लिए 5+3+3+4 का मॉडल, पोखरियाल ने कहा- नई शिक्षा नीति मील का पत्थर साबित होगी

स्कूली शिक्षा के लिए 5+3+3+4 का मॉडल, पोखरियाल ने कहा- नई शिक्षा नीति मील का पत्थर साबित होगी

केंद्रीय सूचना एव प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, 'पीएम मोदी की अध्यक्षता में आज मंत्रिमंडल ने नई शिक्षा नीति को अनुमति दी. पिछले 34 सालों में शिक्षा के क्षेत्र में ये बड़ा बदलाव है.'

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नई दिल्ली: नई शिक्षा नीति को कैबिनेट से हरी झंडी मिलने के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, अन्य व्यापक बदलावों के तहत स्कूली शिक्षा में 1-5वीं तक पढ़ाई में क्षेत्र विशेष की मातृभाषा का इस्तेमाल किया जाएगा. अभी तक चले आ रहे पहले के 10+2 के स्ट्रक्चर को बदलकर 5+3+3+4 कर दिया गया है.

पॉलिसी का लक्ष्य रट्टा मार पढ़ाई के बजाए भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समग्र और स्किल आधारित शिक्षा की ओर ले जाना है. इस नीति का आधार वो ड्राफ़्ट है जिसे इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन नीत पैनल द्वारा तैयार किया गया था.

मीडिया से मुखातिब होते हुए शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा, ‘नए भारत में नई शिक्षा नीति 2020 मील का पत्थर साबित होगी. ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ जो अब ‘शिक्षा मंत्रालय’ के तौर पर जाना जाएगा, मैं उसकी तरफ़ से सबका आभार प्रकट करता हूं.’

केंद्रीय सूचना एव प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘पीएम मोदी की अध्यक्षता में आज मंत्रिमंडल ने नई शिक्षा नीति को अनुमति दी. पिछले 34 सालों में शिक्षा के क्षेत्र में ये बड़ा बदलाव है.’ स्कूली शिक्षा में बच्चे की शुरुआती पांच साल के बाद में बच्चे के तीन साल आंगनवाड़ी/प्री स्कूल/बाल वाटिका में बीतेंगे.

स्कूली शिक्षा की नई बातें

6-8 साल की उम्र में बच्चा 1 और 2 क्लास में पढ़ेगा. इन्हें मिलाकर पांच साल पूरे हो जाएंगे. इसके बाद 8 से 11 की उम्र में 3, 4, 5 क्लास तक की पढ़ाई होगी और 11 से 14 की उम्र में 6, 7, 8 क्लास तक की पढ़ाई होगी. 14 से 18 की उम्र के पड़ाव में छात्र 9, 10, 11, 12 क्लास की पढ़ाई पूरी करेंगे.

इसमें नया ये है कि सरकारी स्कूलों में पहले प्री स्कूल की अवधारण नहीं थी. इस दौरान मीडिया से मुखातिब होते हुए स्कूली शिक्षा की सचिव अनिता करवाल ने कहा, ‘आर्ट्स और साइंस से बीच कोई गंभीर अलगाव नहीं होगा. करिकुलर और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी को भी अलग नहीं माना जाएगा. वोकेशनल और अकादमिक पर भी यही लागू होगा.’

करवाल ने कहा कि बोर्ड परीक्षा के महत्व को कम करने का प्रयास होगा. इसके लिए इसे दो भागों में बांटने जैसे कई प्रस्ताव हैं जिसके तहत साल में दो हिस्सों में बोर्ड की परीक्षा ली जा सकती है. उन्होंने कहा, ‘बोर्ड की परीक्षा में रोज़मर्रा की ज़िंदगी में काम आने वाली चीजों का आंकलन होगा. रट्टा मारना काम नहीं आएगा.’

उन्होंने कहा कि अपनी रिपोर्ट कार्ड में अब बच्चा खुद का मूल्यांकन भी करेगा. इसके अलावा उसका साथी और शिक्षक उसका मूल्यांकन करेंगे. नई नीति के मुताबिक रिपोर्ट कार्ड में लाइफ़ स्किल पर चर्चा भी शामिल होगी.

‘मातृभाषा’ को सिखाने का माध्यम बनाए जाने के मामले में 5वीं तक को प्रथामिकता देने के साथ आठवीं तक इस पर ज़ोर बनाए रखने की बात है. ये भी कहा गया है कि अगर आगे की कक्षाओं में इसे जारी रखा जाए तो बेहतर होगा. इस विषय पर उच्च शिक्षा सचिव ने कहा, ‘बच्चा अपनी भाषा में चीज़ों को बेहतर तरीके से समझता है.’

प्री स्कूल से सेकेंडरी स्तर तक ग्रॉस इंरोलमेंट रेशियो को 2030 तक 100 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है. स्कूल से बाहर के दो करोड़ बच्चों को स्कूल में लाने का भी लक्ष्य है. इस बात पर ज़ोर है कि जो भी बच्चा स्कूलिंग पूरी कर लेता है उसके पास कम से कम एक स्किल होनी चाहिए. सार्वजनिक और निजी स्कूलों में सीखने के सामान्य मानकों को भी समान बनाया जाएगा.

उच्च शिक्षा में हुए बदलाव

नई नीति में ये योजना है कि केंद्र और राज्य मिलकर शिक्षा पर जीडीपी के 6 प्रतिशत का खर्च करेंगे.  महत्वकांक्षी लक्ष्य रखते हुए उच्च शिक्षा में 2035 तक ग्रॉस इंरोलमेंट रेशियो (जीईआर) को 50 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है.

उच्च शिक्षा में जो लोग पढ़ रहे हैं. उनमें शामिल 18-23 आयु वर्ग में जनसंख्या का अनुपात को जीईआर कहते हैं. ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2017-18 में भारत का जीईआर 27.4 प्रतिशत था.


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अंडर ग्रैजुएट प्रोग्राम 3-4 साल के और पोस्ट ग्रैजुएट प्रोग्राम 1-2 साल के होंगे. इनके अलावा 5 साल के इंटिग्रेटेड बैचलर/मास्टर का प्रोग्राम भी होगा और एमफ़िल को समाप्त कर दिया जाएगा. ग्रेडेड ऑटोनमी के तहत संस्थानों को अकादमिक, प्रशासनिक और आर्थिक स्वायत्तता दी जाएगी.

उच्च शिक्षा के लिए एक ही रेग्युलेटर होगा. उच्च शिक्षा सचिव ने कहा, ‘बाकी के रेग्युलेटर इसी में समा जाएंगे.’ हालांकि, कानून और मेडिकल की पढ़ाई को इसके तहत रेग्युलेट नहीं किया जाएगा. संस्थानों को अप्रूवल देने के लिए एक लाइन का सेल्फ़ डिस्क्लोज़र आधारित पारदर्शी सिस्टम की व्यवस्था होगी.

पहले इसके अप्रूवल के लिए निरीक्षण की व्यवस्था थी. 15 सालों में एफ़िलिएशन सिस्टम को समाप्त करने की तरफ़ ले जाया जाएगा. पब्लिक या प्राइवेट किसी भी तरह के उच्च संस्थान के लिए एक जैसे नियम होंगे. ब्रॉड रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत फ़ीस निर्धारित की जाएगी.

पहले से पाइपलाइन में अटकी नेशनल रिसर्च फॉउन्डेशन (एनआरएफ़) की स्थापना की भी बात की गई है और कहा गया है कि उच्च शिक्षा का वैश्विकरण किया जाएगा. सचिव खरे ने कहा, ‘एनआरएफ़ ना सिर्फ़ विज्ञान बल्कि सामाजिक विज्ञान के रिसर्च के लिए भी ये फ़ंडिंग देगा.’

उन्होंने कहा कि स्टैंड अलोन संस्थानों को बहुआयामी बनाने की कोशिश होगी. समावेशी रूप तकनीक का इस्तेमाल होगा. ट्रेडिशनल आर्ट को बढ़ावा दिया जाएगा. वहीं, जो पिछड़े क्षेत्र हैं वहां ‘स्पेशल एजुकेशन ज़ोन’ के स्थापना की भी योजना है. भाषाओं के लिए पाली, प्रकृत और फ़ारसी के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट की स्थापना होगी.

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