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Thursday, 25 April, 2024
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एक्सक्लूसिव: सीएए के विरोध में बंद वाराणसी जेल से स्वतंत्रता सेनानी का पत्र- आपातकाल के वक्त लड़ने का जज्बा था, आज जवाबदेही

76 वर्षीय रामदुलार ने पत्र में लिखा है मोदी सरकार ने विरोधों को कुचलने के वे तमाम हथकंडे अपनाए हैं जो इस दौर को आपातकाल से आगे की तरफ धकेल रहा है.

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वाराणसी: नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ़ 19 दिसंबर को हुए प्रदर्शन के बाद वाराणसी में गिरफ्तार किए गए कुल 57 लोगों के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया है जिनमें 56 नामजद हैं और एक अज्ञात है.

19 सितंबर की दोपहर करीब एक बजे हुई इस कार्रवाई में बेनियाबाग से गिरफ्तार किए गए लोगों को शाम 7 बजे तक जिला कारागार भेज दिया गया था.

गिरफ्तार लोगों में बीएचयू के स्टूडेंट्स, सोशल वर्कर्स, एक्टिविस्ट्स, शहर के कुछ बुद्धजीवी और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं. इनमें कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनकी उम्र 70 साल से ज़्यादा है. इनमें 57 लोगों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं 147, 148, 149, 188, 332, 353, 341 और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत मुकदमा दर्ज़ कर लिया गया है. ये धाराएं दंगों के लिए लगाई जाती हैं जिसमें दो साल की सजा और जुर्माना लगता है. जमानत भी हो जाती है.

पिछले 12 दिन से जेल में बंद एक लोक सेनानी ने चिट्ठी लिखकर अपनी भावनाओं को जाहिर किया हैं. लोक सेनानी लिखते हैं कि-

‘मैं रामदुलार 76 की अवस्था में बनारस की जिला जेल में बंद हूं. 19 दिसंबर को बेनियाबाग में सांप्रदायिक नागरिकता कानून का शांतिपूर्ण और लोकतान्त्रिक तरीके से प्रतिरोध करते वक्त हमारे साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया. हम पांच उम्रदराज साथी पीछे रह गए थे. गिरफ़्तारी वाली पुलिसिया बस तो चली गई थी लेकिन बीएचयू के विद्यार्थियों का वो नारा-
‘हम देश बचाने निकले हैं
आओ हमारे साथ चलो!
थामे गांधी का हाथ चलो
आओ हमारे साथ चलो!’

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वह लिखते हैं, ‘मानो हमारे दिल को नौजवान कर गया हो. और हम पांच उम्रदराज नौजवान साथियों ने आटो रिक्शा से पुलिस लाइन पहुंचकर अपनी गिरफ्तारी दी.

ये मेरी पहली जेल यात्रा नहीं है. इससे पहले भी सिविल नाफरमानी के आरोप में कई बार जेल के बैरकों के पहरेदार बने हैं.’

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वाराणसी जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी रामदुलार के लिखे पत्र का पहला पेज.

आपातकाल को याद करते हुए लिखते हैं, ‘मेरी पहली गिरफ्तारी आपातकाल के दौरान तत्कालीन तानाशाही सरकार के विरोध पर हुई थी, जिसके कारण आज मैं पेन्सनर हूं. तब और आज की जेल यात्रा में कुछ नहीं बदला सिवाय उम्र और उम्र की जरूरतों के, मसलन मैंने अपनी पहली गिरफ्तारी के समय जेलर से किताबों की मांग की थी, आज उम्र के इस सातवें दशक में दवाइयां मांगता हूं.’

उस वक्त अपने साथ हुए सलूक पर वह लिखते हैं, ‘हां! एक और अंतर आया है, जब आपातकाल के दौरान युवावस्था में मैं गिरफ्तार हुआ था तब अखबारों ने हमें ‘लोक सेनानी’ की संज्ञा दी थी. मगर आज जब हमने सीएए, एनआरसी के विरोध में पुलिस लाइन जाकर खुद गिरफ्तारी दी तो, आज के अखबार इस 76 साल के उम्र में मुझे दंगाई, बलबाई और उपद्रवी की संज्ञा दे रहे.’

‘जेल में इन अखबारातों को पढ़ता हूं और खुद से पूछता हूं, ‘आपातकाल लगा था या आपातकाल लगा है?’

वह लिखते हैं, ‘गिरफ्तारी देते वक्त पुलिस द्वारा बताया गया, ‘आप लोगों ने धारा 144 को तोड़ा है. ये बात तो हम भी जानते थे. 151 में हम लोगों को चालान किया गया लेकिन हमें जमानत नहीं दी गई और हम लोगों को जेल भेज दिया गया तथा दो दिन बाद हम लोगों के जेल के दौरान ही धाराएं बढ़ा दी गई, हद तो तब हो गई जब हमें तीन दिनों तक न हमारे वकील से मिलने दिया गया न हमारे परिजनों से. 76 साल के इस देह में अब शारीरिक समस्याएं हैं. नियमित दवाएं चलती हैं वो भी नहीं मिल पा रही हैं जिसके कारण चिंता घेरे जा रही है.’

मोदी सरकार पर आरोप लगाते हैं, ‘नरेंद्र मोदी की ये सरकार देश में एक अघोषित आपातकाल लेकर आई है. इमर्जेंसी के समय तो लड़ने का जज़्बा था, आज इस अघोषित आपातकाल से लड़ने के प्रति मेरी जवाबदेही है, क्योंकि मैं लोक सेनानी होने का पेंशन लेता हूं. 2014 से केंद्र में काबिज मोदीराज ने देश में सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया है. अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं, मॉब लिंचिंग, रोहिंग्या शरणार्थियों की अस्वीकार्यता, कश्मीर, अयोध्या, तीन तलाक आदि मुद्दों से बढ़ते हुए यह भेदभाव अब इस स्तर पर आ गया है कि देश के ताने-बाने को तोड़ने की साजिश रच रहा है.’

राम दुलार के बारे में बताते हुए सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम बताती हैं, ‘राम दुलार जी बेहतरीन किसान नेता हैं. शानदार एक्टिविस्ट हैं, बेहतरीन लीडर रहे हैं अपने दौर में. उन्होने काफी काम किया है. एनएसयूआई के विकास सिंह बताते हैं कि, ‘राम दुलार जी हमेशा संवैधानिक मूल्यों के लिए लड़ते रहे हैं, बनारस में होने वाले सामाजिक मुद्दे से जुड़े कार्यक्रम में लगातार हिस्सा लेते रहते हैं.

अपनी चिट्ठी में राम दुलार आगे लिखते हैं, ‘एनआरसी और एनपीआर आदि वे कदम हैं, जिनसे यह सरकार न केवल अल्पसंख्यक दलित बल्कि हर आम इंसान को सरकारी बाबुओं के सामने एक बार फिर लाइन में खड़ा करेगी.’

उन्होंने लिखा है सीएए कानून हमारे धर्म-निरपेक्ष छवि को सीधा-सीधा चोट मारता है. धर्म के आधार पर नागरिकता का पतन करने वाला यह कानून देश में प्रायोरिटी तय कर रहा है और बता रहा है कि हम मुस्लिम की जगह हिंदुओं को योग्य मानते हैं. और इन क़ानूनों को लाने वाली सरकार इतनी मनबढ़ है कि उसे सरकार के खिलाफ सिविल नाफरमानी बर्दाश्त नहीं है. इसी कारण यह सरकार इन विरोधों को कुचलने के वे तमाम हथकंडे अपनाए हैं जो इस दौर को आपातकाल से आगे की तरफ धकेल रहा है.

अपने साथ गिरफ्तार बीएचयू के छात्रों की बात करते हुए लिखते हैं, ‘मोदीराज के खिलाफ इस सिविल नाफरमानी में मेरे साथ बीएचयू के कई छात्र भी गिरफ़्तार हुए हैं जो मेरी तरफ उम्मीद की नज़रों से देखते हैं और पूछते हैं कि दादा इस सरकार से कैसे लड़ा जाय? ये सवाल सुनते ही इमर्जेंसी का दौर याद आ जाता है जब स्वतंत्रता आंदोलन को अपने दिलों में संजोए हम बनारस के साथियों ने लोकबंधु राजनारायन के नेतृत्व में आनंद कुमार, शतरुद्र प्रकाश, श्यामदेवराय चौधरी, दादा मजूमदार आदि ने ‘जेल भरो आंदोलन’ किया और गिरफ्तारियां दी और एक जबर्दस्त सिविल नाफरमानी हुई थी.’

इमर्जेंसी के दौरान राम दुलार के साथी जेल गए वर्तमान समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद नेता शतरुद्र प्रकाश कहते हैं, ‘उस समय (इमर्जेंसी के दौरान) मौलिक अधिकार निलंबित कर लिए गए थे. जरा सा शक पर पूरे घर को घेर लिया जाता था, कोई किसी से बात करने की हिम्मत नहीं करता था. सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था, हम लोगों को भी जेल में बंद कर दिया गया था, बहुत दमन था. आज स्थिति ये है कि बगैर इमर्जेंसी लगाए प्रताड़ना है. पुलिस, मीडिया सब उनके (सरकार के) बस में है. जैसा वो कहते हैं लोग वैसा कर रहे हैं.’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विधान परिषद नेता शतरुद्र प्रकाश कहते हैं, ‘आज इस स्थिति में राम दुलार जी जैसे कुछ ही लोग विरोध कर रहे हैं. उन लोगों की हिम्मत और साहस है. विरोध नहीं होगा तो लोकतंत्र नहीं रहेगा. लोग हां में हां मिलाएंगे तो लोकतंत्र कहां रहेगा, लोकतंत्र का मतलब ही है सहमति-असहमति.’ प्रकाश कहते हैं कि सरकारें अपना कम करती हैं, लोकतांत्रिक लोग अपना काम करते हैं.’

राम दुलार अपनी चिट्ठी में आगे लिखते हैं, ‘इस दौर की सरकार से भी लड़ने के लिए एक सविनय अवज्ञा आंदोलन की आवश्यकता है. जिनके नेतृत्व में बनारस ने इमर्जेंसी की लड़ाई लड़ी थी उस राजनारायन की पुण्यतिथि 31 दिसंबर को है जिसके आलोक में मैं यह पत्र लिख रहा हूं.’

हमारी चेतना में लोहिया की एक पंक्ति स्मरण है कि, ‘जिंदा क़ौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करती.’

साथियों एक ही नारा, एक ही काम, गांधी के रास्ते-
‘देश गर्माओ’

(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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