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Friday, 22 November, 2024
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2020 तक देशभर में दोगुना हो सकता प्रोस्टेट कैंसर का ख़तरा, दिल्ली में हालत चिंताजनक

प्रोस्टेट कैंसर की दर तेज़ी से बढ़ रही है.कैंसर प्रोजेक्शन के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 तक इन मामलों की संख्या दोगुनी हो जाएगी.

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नई दिल्ली : प्रोस्टेट कैंसर से जुड़ा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का डेटा बेहद डरावना है. इसके मुताबिक दिल्ली के पुरुषों में पाया जाने वाला ये दूसरे नंबर का कैंसर है. अन्य भारतीय महानगरों के अलावा आम तौर पर भारत के अन्य इलाकों के पुरुषों को भी इससे ख़तरा है.

इस कैंसर की दर लगातार तेज़ी से बढ़ रही है. ग्लोबोकैन- 2018 के मुताबिक हर साल प्रोस्टेट कैंसर के 25966 नए मामले सामने आते हैं. कैंसर प्रोजेक्शन के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 तक इन मामलों की संख्या दोगुनी हो जाएगी.

सितंबर प्रोस्टेट कैंसर जागरूकता से जुड़ा हुआ महीना है और रविवार यानी कल से ये शुरू हो जाएगा. इस बार ये महीना किसी ख़तरे की घंटी से कम नहीं है. इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के आंकड़ों के मुताबिक पुरुषों में यह दूसरा सबसे आम कैंसर है.


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भारत में औसतन एक लाख़ की आबादी में हर 9 से 10 व्यक्ति को इसका शिकार होना पड़ रहा है. एशिया और अफ्रीका के अन्य हिस्सों की तुलना में ये औसत ज़्यादा है. हालांकि, अमेरिका और यूरोप की तुलना में अभी ये कम है. आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली सहित भारत के लगभग सभी राज्य इस कैंसर से समान रूप से पीड़ित हैं.

प्रोस्टेट कैंसर के बढ़ते असर को देखते हुए विशेषज्ञ शुरुआती दौर में ही बीमारी का इलाज करने के लिए टारगेटेड या स्मार्ट स्क्रीनिंग की सलाह देते हैं. इस बारे में दिप्रिंट ने राजीव गांधी कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र के एचओडी और निदेशक डॉ. सुधीर कुमार रावल और वीएमएमसी और सफदरजंग अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ यूरोलॉजी एंड रेनल ट्रांसप्लांट के विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) अनूप कुमार से बात की. दोनों ने ही परहेज पर ज़ोर दिया.

डॉक्टर रावल ने कहा, ‘आज के दौर की लाइफस्टाइल इस बीमारी की एक बड़ी वजह है जिसे कंट्रोल करके इसके हमले को रोका जा सकता है.’

प्रोस्टेट कैंसर से बचने के लिए क्या करें

-अगर आप गर्म इलाके में रहते हैं या बहुत अधिक एक्सरसाइज़ करते हैं तो ख़ूब पानी पीएं.

-अगर आप लंबे सफर पर हैं तो कम पानी पीएं.

-सोने से पहले कम पानी पीएं ताकि आपको वॉशरूम जाने की आलस से बच सकें.

-शराब और कैफीन से बचें. इनसे मूत्र ज़्यादा बनता है और मूत्राशय में परेशानी होती है.

-सप्ताह में 2 या 3 बार एक्सरसाइज़ ज़रूर करें, वरना पेशाब करने में कठिनाई होती है. मूत्र रोक के रखने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.

-खाने का बैलेंस बनाए रखें और हेल्दी खाना खाएं.

जानकारों के मुताबिक शराब, सिगरेट, परिवार में किसी को पहले से ये बीमारी होना, मोटापा, जंक फूट, मांसाहारी भोजन और ज़्यादा प्रिज़रवेटिव्स वाले अन्य भोजन कैंसर के कुछ अन्य बड़े कारण हैं.

प्रोस्टेट कैंसर के शुरुआती दौर से निपटने के लिए भारत में टारगेटेड स्क्रीनिंग या स्मार्ट स्क्रीनिंग की सुविधा उपलब्ध है. बीमारी का शक होने पर तुरंत स्क्रीनिंग करा लेनी चाहिए. डॉक्टरों की सलाह है कि यूरोलॉजी ओपीडी में आने वाले या मूत्र संबंधी शिकायतों वाले सभी लोगों को 40-50 साल की उम्र के बाद सालाना पीएसए और डिजिटल रेक्टल टेस्ट कराना चाहिए. ये उनके लिए और भी ज़रूरी है जिनके परिवार में प्रोस्टेट कैंसर का इतिहास रहा हो.

प्रोस्टेट अखरोट के साइज़ की एक ग्रंथि/गांठ होती है जो सिर्फ़ पुरुषों में मौजूद होती है. यह जेनिटो-यूरिनरी सिस्टम का एक हिस्सा है और मूत्राशय के ठीक नीचे होता है. ये प्रोस्टेटिक लिक्विड पैदा करता है जो शुक्राणुओं यानी स्पर्म को पोषण देता है. जैसे-जैसे किसी की उम्र बढ़ती है, उसमें प्रोस्टेट से जुड़ी समस्याएं होनी शुरू हो जाती हैं. ये बीमारी मुख्य रूप से 3 तरह की होती है:

-बीपीएच यानी बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया

-प्रोस्टेट कैंसर

-प्रोस्टेटाइटिस (प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन)

प्रोस्टेटाइटिस और बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया (बीपीएच) सामान्य प्रोस्टेटिक बीमारी है, जो दुनिया भर में लाखों मर्दों को प्रभावित करती है. भले ही बीपीएच प्रोस्टेट कैंसर नहीं है और किसी को भी इसकी वजह से यह होने की ज्यादा आशंका नहीं होती है. हालांकि, यह लोगों के प्रोस्टेट हेल्थ को प्रभावित करता है जिससे आगे गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं.

तीसरे प्रकार के कैंसर के शिकार 60% मरीज़ का पता तब चलता है जब ज़्यादातर मरीज़ रिटायर हो चुके होते हैं. तीसरे स्टेज की दवाएं बहुत मगंही होती हैं जिस पर सालाना तीन से चार लाख़ तक का ख़र्च आता है.

क्या हैं प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण

-बार-बार पेशाब आना. ख़ास तौर से रात में ऐसा होना.

-धीमा या रुक-रुक कर होने वाला मूत्र प्रवाह

-इरेक्शन या बोनर की दिक्कत

-मूत्र में ख़ून आना

ऐसे लक्ष्ण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए. पीएसए स्तर का नियमित ब्लड टेस्ट बिल्कुल शुरुआती दौर में प्रोस्टेट कैंसर का तुरंत पता लगाने में मदद करता है. डॉक्टर सुधीर रावल ने दिप्रिंट से कहा, ‘उम्र और ऐसी बीमारी के परिवारिक इतिहास वालों को इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये दोनों प्रोस्टेट कैंसर के सबसे जोखिम भरे कारक हैं.’

विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बीमारी को नजरंदाज करने से बचने के लिए पीएसए नियमित स्वास्थ्य जांच का एक हिस्सा होना चाहिए. यूरोलॉजिकल लक्षणों की वृद्धि को किसी भी समय उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए और एक यूरोलॉजिस्ट से परामर्श इस मामले में मदद करेगा.

इलाज के सबसे बेहतर तरीके

डॉक्टर अनूप ने कहा, ‘रोबोटिक सर्जरी आने की वजह से प्रोस्टेट ग्लैंड को ठीक करने के लिए सर्जिकल इलाज काफी आसान हो गया है. ओपन सर्जरी की तुलना में रोबोटिक सर्जरी के कई फायदे हैं. रोबोटिक में कम से कम ख़ून की कमी, पेट के ऊतकों को छोटे कट, एक सर्जन को आंतरिक अंगों की बेहतर दृष्टि मिलना और कम समय तक अस्पताल में भर्ती होना जैसे फायदे शामिल हैं.’ उन्होंने कहा कि अगर प्रोस्टेट कैंसर का शुरुआती चरण में इलाज किया जाता है, तो रोगी के 10 साल से अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना बहुत अधिक होती है.

रोबोटिक सर्जरी सबसे बेहतर विकल्प तो है लेकिन ये ख़र्चीला है. आने वाले सालों में इसके सस्ते होने की संभावना है, क्योंकि दो से तीन कंपनिया इस फील्ड में आने वाली हैं. सुधीर नाम के एक भारतीय सर्जन ने भी मंत्रा नाम का एक रोबोट बनाया है. वहीं, गूगल ने भी एक रोबोट बनाया है. इसके अलावा कोरिया और जापान जैसे देश भी ऐसे रोबोट पर काम कर रहे हैं.


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ये भी बताया गया कि अगर पहले चरण में ये कैंसर सिर्फ प्रोस्टेट ग्लैंड तक ही सीमित होता है. इस चरण में इलाज करें तो इसके ठीक होने की संभावना बहुत ज़्यादा होती है. इस चरण के दौरान एक तरीका तो ये है कि प्रोस्टेट ग्लैंड को रेडिएशन ट्रीटमेंट देकर कैंसर कोशिकाओं को मार दिया जाता है या ऑपरेशन से कैंसर ग्लैंड को हटाया जा सकता है.

डॉक्टर सुधीर रावल के मुताबिक, ‘अगर प्रोस्टेट कैंसर का इलाज शुरू में किया जाए तो इसे लोकलाइज़्ड रेडिएशन ट्रीटमेंट से बहुत अच्छी तरह ठीक किया जा सकता है या ऑपरेशन द्वारा हटाया जा सकता है. दोनों ही मामलों में 10 साल तक जीवित रहने की संभावना बहुत अधिक होती है. प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण बीपीएच के जैसे ही होते हैं, जिसमें हेमट्यूरिया (मूत्र में रक्त) के अतिरिक्त लक्षण होते हैं, जो ज्यादातर प्रोस्टेट कैंसर से जुड़ा होता है.’

रावल ने ये भी कहा कि आयुष्मान भारत योजना के तहत 10 करोड़ परिवारों को कैंसर के इलाज के लिए 5 लाख रुपए तक मिल सकते हैं. उनके मुताबिक यह गरीब रोगियों में मृत्यु दर को कम कर सकता है. डॉ. गुप्ता की मानें तो 3-डी लैप्रोस्कोपी और रोबोटिक्स की सुविधाओं के साथ-साथ कैंसर की दवाएं एसजेएच और एम्स जैसे सरकारी अस्पताल में मुफ्त उपलब्ध हैं.

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