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Friday, 29 March, 2024
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परीक्षा का तनाव और टूटते रिश्तों की वजह से दिल्ली में 5 साल में 443 छात्रों ने की आत्महत्या

देशभर के लोगों को बेहतर मानसिक चिकित्सा सुविधा मिलें, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका से पता चला है कि 2014-18 के बीच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 18 साल से कम आयु के 400 से भी ज्यादा छात्रों ने खुदकुशी की है.

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले वकील गौरव कुमार बंसल की मांग है कि पूरे देश में विद्यार्थियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सुविधा दी जाए.

बंसल की याचिका के अनुसार पिछले 5 सालों में 18 साल से कम उम्र के 443 बच्चों ने आत्महत्या की है. ये जानकारी दिल्ली पुलिस ने आरटीआई के जवाब में दी है. आरटीआई से मिले जवाब में यह नहीं बताया गया है कि आत्महत्या करने के क्या कारण है. कई मामलों में पुलिस अभी जांच कर रही है.

याचिका दायर करने वाले बंसल का कहना है कि उन्होंने यह याचिका इसलिए दायर की है कि सरकार का इसपर ध्यान जाए. सरकार बढ़ते आत्महत्या के कारणों पर ध्यान दें और युवाओं के लिए जागरूकता अभियान चलाएं.

बंसल ने अपनी याचिका में कोर्ट से मांग की है कि वो सभी राज्य सरकारों को इस समस्या से निपटने के लिए एक रूपरेखा तैयार करने को कहे और युवाओं को अच्छी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराएं. याचिका में यह भी मांग की गई है कि आत्महत्या करने जैसे विचार जिन लोगों के मन में आते हैं उनके लिए कॉल सेंटर और सलाह की व्यवस्था कराई जाए.

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बढ़ती आत्महत्याएं

2011-15 के बीच दिल्ली में आत्महत्या करने का स्तर राष्ट्रीय स्तर (10 प्रतिशत) के करीब पहुंच गया था. अपराध से जुड़े आंकड़ें बतानी वाली संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ें भी 2015 तक ही उपलब्ध हैं.

पूरे देश की स्थिति देखें, तो आत्महत्या से मरने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. लेंसेट पब्लिक हेल्थ में छपे एक रिसर्च के अनुसार भारत में 2016 में पूरे विश्व में आत्महत्या से मरने वाले लोगों में 60.9 प्रतिशत लोग अकेले भारत के ही थे. 1990 में यह आंकड़ा 44 प्रतिशत का था.

15-39 वर्ष की आयु के बीच मरने वाले लोगों के पीछे मुख्य कारण आत्महत्या है. रिसर्च के अनुसार इस आयु वर्ग में आत्महत्या करने वालों में से 71.2 प्रतिशत महिलाएं हैं. वहीं, 57.7 प्रतिशत पुरुष हैं.


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डॉक्टर वी सेंथिल कुमार रेड्डी ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस में आत्महत्या से जुड़े मामले पर काफी रिसर्च किया है. उनका कहना है कि मौजूदा ट्रेंड के मुताबिक वार्षिक आंकड़ें के न होने के कारण दिल्ली के बारे में विश्लेषण करना मुश्किल होगा. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्या से जुड़ें मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, जो अंतरराष्ट्रीय शोध में भी पता चल रहा है.

उनका कहना है कि आत्महत्या करने का दर बढ़ता जा रहा है और एक बड़ी आबादी आत्महत्या कर रही है.

परीक्षाओं की चिंता और रिश्तों की नाकामयाबी एक बड़ी वजह है

फोर्टिस से जुड़े हेल्पलाइन के लिए सलाहाकार के तौर पर काम करने वाली अरुणा बोरदोलोई का कहना है कि परीक्षाओं की चिंता और नतीजों के कारण बड़ी संख्या में युवा आत्महत्या करते हैं. बोरदोलोई ने दिप्रिंट को बताया कि हमारे पास काफी सारे युवाओं के फोन आते हैं. यह संख्या परीक्षाओं के समय बढ़ जाती है. विद्यार्थी हमें फोन करके बताते हैं कि वो काफी प्रेशर में हैं. इसके अलावा आपसी रिश्तों में चल रही परेशानियों को लेकर भी युवा फोन करके सलाह मांगते हैं.


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उन्होंने बताया कि हम कोशिश करते हैं कि अगर बच्चा घर पर होता है तो हम उनसे कहते हैं कि वो घरवालों से बात करें. अगर बच्चा हॉस्टल में है, तो अपने दोस्तों से बात करने की सलाह दी जाती है. रेड्डी के अनुसार आत्महत्या करने के कई कारण होते हैं. शोध के मुताबिक 40 प्रतिशत मामलों में लोग अवसाद के कारण आत्महत्या कर लेते हैं. वहीं, 60 प्रतिशत मामलों में लोग सामाजिक और आर्थिक कारणों से आत्महत्या करते हैं.

कलंक कहने की बजाए जागरूकता पर हो ज़ोर

मेंटल हेल्थ विशेषज्ञों के मुताबिक आत्महत्या को कलंक कहने के बजाए इसको लेकर जागरूकता फैलाने पर ज़ोर होना चाहिए. इस दिशा में लोगों को सलाह लेने की जरूरत है. इबहास के निदेशक निमेश देसाई का कहना है कि जिन मौतों को रोका जा सकता है अगर उसे न रोका जाए तो यह परेशानी की बात है. इसका एक ही समाधान है वो है जागरूकता.

देसाई का कहना है कि दिल्ली सरकार की मेंटल स्वास्थ्य सेवाओं का अच्छे से इस्तेमाल करने की जरुरत है. इबहास में हम 500-600 के बीच लोगों को इलाज करते हैं. जिसकी वजह से कई आत्महत्याएं रुक जाती है. देसाई ने कहा ‘अगर हमें आत्महत्याओं को रोकना है, तो मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में बेहतर जागरूकता होनी चाहिए. खासकर जब युवाओं की बात आती है. स्कूलों और कॉलेजों में बेहतर परामर्श सुविधाएं होनी चाहिए और राज्य प्राधिकरणों और स्कूलों के बीच बेहतर समन्वय होना चाहिए.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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