नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बसों में मार्शल के तौर पर काम कर रहे सभी नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों को सेवा से बर्खास्त करने के राज्यपाल वी.के सक्सेना के फैसले के खिलाफ दायर दिल्ली सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया।
सक्सेना के इस निर्णय के बाद अरविंद केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच तनातनी जारी है।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आम आदमी पार्टी सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर गौर किया और उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय जाने का निर्देश दिया।
सिंघवी ने कहा कि सरकार की लोकप्रियता बढ़ाने वाली सभी अच्छी योजनाओं पर रोक लगाई जा रही है।
उन्होंने कहा, “क्या यह (मार्शलों को सेवा से बर्खास्त करना) उपराज्यपाल के तहत आता है? वह इसे कैसे रोक सकते हैं?”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “लेकिन हमें (संविधान के) अनुच्छेद 32 के तहत इस पर विचार क्यों करना चाहिए? दिल्ली उच्च न्यायालय इसपर फैसला करेगा। हम पहले ही संवैधानिक मामलों (सेवाओं पर नियंत्रण के लिए सरकार और उपराज्यपाल के बीच कानूनी रस्साकशी) पर फैसला सुना चुके हैं।”
उन्होंने कहा, “याचिका में बस मार्शल योजना को फिर से शुरू करने की मांग की गई है। हमारे विचार से, उचित उपाय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा…यदि याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा रुख करता है, तो उच्च न्यायालय इस पर शीघ्र विचार करेगा।”
उपराज्यपाल ने 27 अक्टूबर को एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसमें 1 नवंबर से सभी नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की सेवाएं समाप्त करने की घोषणा की गई थी।
सक्सेना ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उन नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की भर्ती पर विचार करने का भी निर्देश दिया था जिनकी सेवाएं होम गार्ड के रूप में समाप्त कर दी गई थीं।
भाषा जोहेब सुभाष
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