बागतुई/रामपुरहाट: घरों का काला पड़ चुका मलबा, खिड़कियों के टूटे हुए शीशे, जले हुए मलबे के बीच करीने से व्यवस्थित बर्तनों के साथ रसोई, आठ ताजा खोदी गई कब्रें, जिनमें से एक छोटे बच्चे की है. ये सब उस जानलेवा दहशत के अवशेष हैं, जिसने 21 मार्च को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बगतुई गांव को अपनी चपेट में ले लिया था.
पुलिस गार्ड और रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के जवानों सहित सुरक्षा बालों की बड़ी संख्या में उपस्थिति के अलावा बुधवार को यह गांव एकदम से वीरान नजर आ रहा था. कई सारे दहशतमंद ग्रामीण यहां से भाग गए हैं और कुछ ने तो अपने दरवाजे भी बंद नहीं किए.
हालांकि पुलिस ने इस बारे में अब तक चुप्पी साध रखी है कि हिंसा की शुरुआत किस वजह से हुई, मगर यहां के ग्रामीणों का दावा है कि हिंसा का सिलसिला सोमवार की शाम से शुरू हुआ, जब स्थानीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) कार्यकर्ता और जाने-माने नेता भादू शेख पर देसी बमों और गोलियों से हमला किया गया. इस हमले के वक्त वह अपने ईंट से बने घर (ब्रिक हाउस) की ओर जाने वाली सड़क के किनारे बैठ चाय की चुस्कियां ले रहे थे.
ग्रामीणों ने बताया कि उस हमले के दौरान ही बरशाल ग्राम पंचायत के उप-प्रधान भादू शेख की मौत हो गई थी, लेकिन यह तो सिर्फ शुरुआत थी. एक घंटे के भीतर, और पुलिस गश्ती वैन के जाने के तुरंत बाद, भीड़ द्वारा चार घरों को आग के हवाले करने के साथ ही नरसंहार शुरू हो गया.
इसमें कुल मिलाकर, आठ लोगों – एक पुरुष, छह महिलाएं और एक सात साल की बच्ची – की जान चली गई और उनके शरीर इस कदर जल गए हैं कि इनकी पहचान भी मुश्किल है. पुलिस ने इन हत्याओं के सिलसिले में 20 लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन उसने अभी तक इस बारे में कुछ नहीं बताया है कि हिंसा का यह दौर वास्तव में कैसे शुरू हुआ या फिर इसके पीछे का मकसद क्या है?
हालांकि, ग्रामीणों से बात करते हुए, दिप्रिंट ने नरसंहार की इस भयानक रात के सारे विवरण, तथा अस्थिर स्थानीय राजनीति एवं इस क्षेत्र में व्याप्त अवैध रेत एवं पत्थर खनन कार्यों के साथ इसके संभावित जुड़ाव के कई संकेत जुटाएं हैं.
क्या हुआ था 21 मार्च की रात को?
सोमवार रात 8 बजे भादू शेख की मौत की खबर फैलते ही कुछ ग्रामीण दौड़कर अस्पताल पहुंचे, जबकि कई अन्य अपने-अपने घरों को लौट गए. स्थानीय निवासी याद करते हुए कहते हैं कि रात के करीब 9 बजे, उन्होंने जोरदार धमाके की आवाजें सुनीं और जल्दी से अपने दरवाजे बंद कर लिए.
जब उन्होंने बाहर झांक के देखा तो उन्हें कई मोटरसाइकिलें आग की लपटों में घिरी दिखीं, लेकिन और कुछ ज्यादा दिखाई नहीं दे रहा था: गांव में कोई स्ट्रीट लाइट नहीं है और आग ने कई घरों में बिजली के कनेक्शन को प्रभावित कर दिया था. एक से अधिक तौर पर यह उन कुछ सबसे अंधेरी रातों में से एक थी जिसे इस गांव ने कभी देखा था.
बर्बाद हुए घरों में से एक के बगल में रहने वाली 34 वर्षीय उम्मती कहती हैं, ‘मुझे यकीन हो रहा था कि हम सब मर जायेंगे.’ वे बताती हैं, ‘मैंने अपनी बेटी को कमरे के अंदर बंद कर दिया. हमने आग की लपटों को उठते हुए देखा, हमने किसी को बचाओ, बचाओ चिल्लाते हुए भी सुना लेकिन हम बहुत असहाय थे. मुझे नहीं पता कि यह डर हमें कभी यहां रहने देगा या नहीं.’
उम्मती ने दिप्रिंट को बताया कि इस हमले के बाद वह गांव छोड़ कर चली गई थी और केवल अपने मवेशियों को चारा डालने के लिए ही लौटी है. उसका दिल अभी अपने उन पड़ोसियों के लिए गमगीन है जो इस हादसे में मर गए.
हादसे से स्पष्ट रूप से हिली हुई दिख रही उम्मती ने याद करते हुआ कहा, ‘अगले घर में रहने वाली छोटी सी लड़की ने पिछले महीने ही स्कूल जाना शुरू किया था. मैं रोज सुबह उसके साथ स्कूल तक जाती थी. कल आग में उसकी मौत हो गई.’ उम्मती की बेटी चुपचाप उनके पास खड़ी थी – वह भी आज स्कूल नहीं गई थी.
एक अन्य स्थानीय निवासी फातिमा बीबी का मानना है कि अगर भादू शेख की मौत के बाद पुलिस गांव में रुकी रहती तो इस नरसंहार को टाला जा सकता था. वे कहती हैं, ‘वे जानते थे कि इस गांव के एक राजनीतिक नेता की हत्या कर दी गई है .
यह यहां के लोगों के बीच बसी एक आम भावना है.
एक अन्य निवासी कहते हैं, ‘अगर पुलिस समय पर यहां आ जाती तो इतने सारे लोगों की जान नहीं जाती. पुलिस की गश्ती वैन के गांव से निकलते ही हिंसा भड़क उठी.’ उन्होंने अपना नाम बताने से इंकार करते हुए कहा, ‘आप तो यह गांव छोड़कर अपने घर लौट जाओगे, पर मुझे यहीं रहना है.’
पीड़ित कौन थे, और क्या उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया गया था?
आठ मृतकों की पहचान मीना बीबी, रूपाली बीबी, जहांआरा बीबी, लिली खातून, शैली बीबी, नूरनेहर बीबी, काजी साजिदुर रहमान और सात वर्षीय तुली खातून के रूप में की गई है.
उनमें से सात आपस में रिश्तेदार थे और उस सोना शेख के घर में एक साथ रहते थे, जिसके बारे में ग्रामीणों का दावा है कि वह कभी मारे गए टीएमसी नेता भादू शेख के करीबी सहयोगी हुआ करते थे. हालांकि, सोना शेख कथित तौर पर भादू की मौत के लिए दर्ज एफआईआर में नामजद आरोपियों में से एक है.
तभी एक फोरेंसिक टीम और सबूत जुटाने के लिए मौके पर पहुंचती है. जले हुए चार घरों में से पुलिस ने केवल दो की घेराबंदी की है. सोना शेख के घर को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ लगता है.
पास के खेत में काम करने वाले ग्रामीणों का कहना है कि उनका मानना था कि सोना के भादू के साथ अच्छे संबंध थे और वह उसके निर्देशों का ही पालन करता था.
एक ग्रामीण, जो अपने नाम नहीं लेना चाहते, कहते हैं ‘सिर्फ एक साल पहले ही भादू ने सोना को अपना दो मंजिला मकान बनाने में मदद की थी. और अब देखिए, हिंसा में इस परिवार सहित कुछ भी नहीं बचा है.’
हालांकि, एक अन्य ग्रामीण ने भादू और सोना के अवैध रेत एवं पत्थर के कारोबार में शामिल होने का संकेत दिया.
उन्होंने कहा, ‘भादु शेख और उसके सहयोगियों के पास रेत और पत्थर के ट्रकों का साइड बिजनेस थे. वे आपस में अच्छा तालमेल रखते थे. लेकिन हमने उनसे खास तौर पर नहीं पूछा कि वे करते क्या हैं. हम उन्हें जानते जरूर थे लेकिन हमने उनकी व्यावसायिक गतिविधियों के बारे में कभी बात नहीं की.’
बीरभूम जिले में अवैध बालू खनन का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है. कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, सोना शेख, जिसके कथित तौर पर टीएमसी के साथ अपने खुद के लिंक थे, और भादु शेख खनन व्यवसाय में अपने- अपने हितों की वजह से एक-दूसरे से अलग हो गए थे. हालांकि, दिप्रिंट स्वतंत्र रूप से इस बात की पुष्टि नहीं कर सका.
गांव के निवासी जोर देकर कहते हैं कि यह आमतौर पर ‘शांतिपूर्ण’ रहता है, लेकिन भादू के बड़े भाई की भी पिछले जनवरी में यहां हत्या कर दी गई थी. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, इस गांव में 1,100 से कुछ अधिक घर हैं और यहां की आबादी मुख्य रूप से अनुसूचित जनजातियों और मुसलमानों की है. मारे गए और गिरफ्तार किए गए सभी लोग मुस्लिम समुदाय के ही हैं.
कौन हैं आरोपी?
पुलिस ने अब तक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत हत्या और दंगा करने के आरोप में 20 लोगों को गिरफ्तार किया है. बुधवार को इन सभी 20 आरोपियों को बीरभूम जिले की एक नगर पालिका रामपुरहाट की एक अदालत में पेश किया गया. आरोपियों की ओर से कोई बचाव पक्ष का वकील पेश नहीं हुआ.
लोक अभियोजक सुरजीत सिन्हा ने गिरफ्तार आरोपियों में से 10 के लिए 14 दिन की पुलिस हिरासत की मांग करते हुए कहा, ‘रामपुरहाट ने पहले कभी ऐसा जघन्य अपराध नहीं देखा है.’ अदालत ने उनकी इस मांग को स्वीकार कर लिया.
आजाद चौधरी, इंताज शेख, मुफीजुल शेख, रुस्तम शेख, रोहन शेख, मौशिम शेख, नयन दीवान, मुफीउद्दीन शेख, नजीर हुसैन और तौसीब शेख नाम के दस आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है. अन्य दस को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
प्रभारी पुलिस निरीक्षक सौमाजीत बसु कहते हैं, ‘हमें दस आरोपियों के खिलाफ विशिष्ट तौर पर सबूत मिले हैं इसलिए हमने उनका रिमांड लिया है. लेकिन मैं अभी किसी भी विवरण का खुलासा नहीं कर सकता क्योंकि मामले की जांच चल रही है.’
राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा द्वारा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफे और इन हत्याओं की एक केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच की मांग तथा राज्य में राजनीतिक हिंसा के सुर्खियों में बने रहने के साथ राज्य सरकार फ़िलहाल भारी दबाव में है.
मुख्यमंत्री ने इस हत्याकांड की गहन जांच के लिए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के एक विशेष जांच दल का गठन किया है और राज्य के पुलिस महानिदेशक मनोज मालवीय स्वयं भी मंगलवार से रामपुरहाट में डेरा जमाये हुए हैं.
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