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Thursday, 21 November, 2024
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बुलेटप्रूफ जैकेट, लड़ाकू जूते: मणिपुर की दुकानों में बिकती सेना की वर्दी सुरक्षा बलों के लिए चिंता का विषय

मणिपुर में सैन्य वर्दी की बढ़ती मांग और आपूर्ति ने राज्य में तैनात केंद्रीय बलों को चिंतित कर दिया है, क्योंकि सुरक्षा कर्मियों को नागरिक सशस्त्र समूहों से अलग करना कठिन है.

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इम्फाल/चुरचांदपुर: मणिपुर के हलचल भरे बाजारों में सैन्य शैली के कपड़े और गियर काफी लोकप्रिय हो गए हैं. राजधानी इम्फाल से लेकर पहाड़ी शहर चुराचांदपुर तक, ग्राहक दुकानों में सेनानियों द्वारा पहने जाने वाली टोपी, लड़ाकू जूते और बुलेटप्रूफ जैकेट खरीद रहे हैं. लेकिन ये सिर्फ एक नया फैशन ट्रेंड नहीं है. यह एक गंभीर सुरक्षा चिंता का विषय है.

मैतेई-प्रभुत्व वाली इंफाल घाटी और कुकी-प्रभुत्व वाला चुराचांदपुर राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष का केंद्र बना हुआ हैं. यहां सबसे खराब बात यह है कि स्थानीय नागरिक मिलिशिया और सेना या केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के बीच अंतर बताना कठिन होता जा रहा है.

नकली गियर की खुली बिक्री के बारे में असम राइफल्स के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह हमारे लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है.” “नागरिकों के पास अब सेना की वर्दी की पहुंच आसान हो गई है जो सुरक्षा बलों को आम आदमी से अलग करती है. दोनों के बीच पहचान करना और अंतर करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है.”

मई में आदिवासी कुकियों के बीच प्रमुख मैतेईयों के बीच शुरू हुई हिंसा के बाद, पूरे मणिपुर में जमीनी स्तर की “ग्राम रक्षा” ताकतें उभरी हैं. स्थानीय लोगों ने हजारों हथियार और गोला-बारूद लूट लिया, जिससे यहां खून खराबा तेज हो गया. निरस्त्रीकरण विभिन्न कारणों से एक चुनौती रहा है, जिसमें पुलिस और सशस्त्र बलों में एक दूसरे को लेकर विश्वास की कमी भी शामिल है.

सैन्य और अर्धसैनिक शैली की वर्दी की उपलब्धता स्थिति को और बिगाड़ रही है. मणिपुर पुलिस के मुताबिक, राज्य भर में सेना की 162 टुकड़ियां तैनात की गई हैं. इसके अलावा, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को संवेदनशील क्षेत्रों में 133 चौकियों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इस स्थिति में, कर्मियों की हमवर्दी सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय बनी हुई है.

जब दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते चुराचांदपुर के गोथोल गांव का दौरा किया, तो आसपास तैनात सशस्त्र स्वयंसेवकों और असम राइफल्स के जवानों के बीच अंतर करना मुश्किल था.

कुकी गांव के एक स्वयंसेवक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वह एक ऑटो चालक हुआ करता था. अब, वह बदल गया है, बुलेटप्रूफ बनियान पहने, डबल बैरल राइफल चलाने वाला, गोलियों के साथ और उसकी बेल्ट पर एक वॉकी-टॉकी तैयार है. उसकी राइफल मैतेई गांव की तरफ हमेशा तैनात रहती है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ”हमारी रक्षा करने वाला कोई नहीं है. हमें अपनी रक्षा और बचाव खुद करना होगा और हम करेंगे.”

Churachandpur shops
मणिपुर के चुराचांदपुर में कई लोकल दुकानों में से एक, जहां बुलेटप्रूफ जैकेट और सेना की वर्दी सहित ‘सेना’ की चीजें बिक रही हैं-/फोटो: प्रवीण जैन/दिप्रिंट

‘इन वर्दी की भारी मांग’

इम्फाल में मैतेई लोगों का दबदबा है, जबकि चुराचांदपुर कुकियों का गढ़ है. फिर भी, इस विभाजन के बीच, एक आम बात है- सैन्य गियर की बढ़ती मांग.

इंफाल का मुख्य बाजार न केवल सैन्य और अर्धसैनिक बलों की वर्दी की खुदरा बिक्री करता है, बल्कि केंद्रीय सशस्त्र बलों द्वारा पहनी जाने वाली पोशाक की याद दिलाने वाले बुलेटप्रूफ जैकेट, जूते और हेडगियर से भी भरा हुआ है.

इंफाल के एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि ये सभी गियर सिलचर, गुवाहाटी और दिल्ली से खरीदा जाता है.

वर्दी की कीमत लगभग 800 रुपये, बुलेटप्रूफ जैकेट की कीमत आकार के आधार पर 2,000-2,500 रुपये और जूते और हेडगियर की कीमत लगभग 500 रुपये है.

सैन्य 'सहायक उपकरण' इंफाल की दुकानों में रोजमर्रा की जरूरी वस्तू और कपड़े/ प्रवीण जैन/दिप्रिंट
सैन्य ‘सहायक उपकरण’ इंफाल की दुकानों में रोजमर्रा की जरूरी वस्तू और कपड़े/ प्रवीण जैन/दिप्रिंट

हालांकि, मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार, आईपीएस कुलदीप सिंह (सेवानिवृत्त) ने सोमवार को दिप्रिंट को बताया कि इस खतरे को रोकने के लिए उपाय किए जा रहे हैं.

उन्होंने कहा, “सेना की वर्दी बेचने के लिए किसी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है. इसलिए दुकानदारों को रोकना कठिन है. हम वर्दी का दुरुपयोग करने वालों पर कड़ी नजर रख रहे हैं और उन्हें पकड़ रहे हैं.’ हमने रविवार को इंफाल ईस्ट से पांच बुलेटप्रूफ जैकेट, पांच खाकी शर्ट और दो खाकी पतलून जब्त किए.”

बंदूकें, मोर्टार और मैच करने योग्य पोशाकें

मणिपुर से बमुश्किल 60 किलोमीटर दूर चुराचांदपुर जिले में अब भी बेचैनी का माहौल है. केंद्रीय सुरक्षा बलों की यहां जबरदस्त उपस्थिति है, जो प्रवेश करने वाले और बाहर निकलने वाले हर व्यक्ति की गहन जांच करते हैं और उनके सरकारी आईडी प्रूफ भी देखते हैं.

सेना के ट्रक राष्ट्रीय राजमार्ग पर गश्त करते हैं, जबकि बारूदी सुरंग-रोधी और एम्ब्यूज़-संरक्षित वाहन पहाड़ियों के किनारे बसे गांवों पर नजर रखते हैं . सड़क के किनारे, जले हुए घर पांच महीने पहले मैतेई और कुकी समुदायों के बीच भड़की क्रूर हिंसा की आज भी याद दिला रहे हैं.

गोथोल गांव में, कम से कम 18 लोगों को राइफल चलाने और पंपिस नामक तात्कालिक मोर्टार का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. सभी लोगों को मिजोरम सीमा के पास एक अज्ञात स्थान पर हथियार और युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया है. उनकी वर्दी उन्हें विश्वसनीयता और अधिकार का आभास देती है.

सशस्त्र नागरिकों द्वारा संचालित बंकर के बगल में, असम राइफल्स के तीन जवान एक लकड़ी की बेंच पर बैठे हैं, वे भी ड्यूटी पर हैं. लेकिन ग्रामीणों का अपनी सशस्त्र इकाई को ख़त्म करने का कोई इरादा नहीं है.

कुकी गांव के गार्ड ने पहले कहा था, “हम बारी-बारी से पहरा देते हैं और हर समय पहरा देते हैं.” “सबसे युवा स्वयंसेवक लगभग 17 वर्ष का है, सबसे बुजुर्ग लगभग 40 वर्ष का है. परिस्थितियों ने हमारे पास कोई विकल्प नहीं छोड़ा है. हम प्रशिक्षण जारी रखेंगे.”

बंकर के बगल में, एक मंजिला घर को “स्वयंसेवक कार्यालय” में बदल दिया गया है, जहां लोग आराम करते हैं, संचालन का समन्वय करते हैं और अपने हथियारों का भंडारण करते हैं. सीढ़ी के नीचे एक हस्तनिर्मित पम्पी रखी गई है, जिसमें स्क्रैप लोहे का गोला-बारूद एक बंद अलमारी के अंदर रखा गया है जिसकी चाबी केवल कमांडर के पास होती है.

जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था, ऐसे ग्राम रक्षा समूह सामुदायिक स्तर पर स्थापित किए जाते हैं और मैतेई-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों सहित पूरे मणिपुर में मिल जाते हैं.

कुकियों की रक्षा के लिए मिज़ो स्वयंसेवक

जेट-काली पोशाक पहने, सौ से अधिक युवा चूराचांदपुर बाजार के पास “पासिंग-आउट परेड” में भाग ले रहे हैं, मार्च कर रहे हैं और नारे लगा रहे हैं.

उनके चेहरे काले कपड़े से ढंके हुए हैं और उनकी बांहों पर एमवीवी अक्षर अंकित है. इसका मतलब मिज़ो विलेज वालंटियर्स है, जो कुकियों की रक्षा के लिए बनाई गई एक स्वयं-भू सेना है. इस नागरिक इकाई को मैतेई द्वारा हमलों की स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा और ग्रामीणों की सहायता करने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया है.

मणिपुर में कुकी या ज़ो जनजातियां मिज़ोरम के मिज़ोस के साथ घनिष्ठ जातीय संबंध साझा करती हैं.

एक प्रशिक्षक ने अपना नाम थर्रा बताते हुए कहा कि यह युवाओं का तीसरा बैच है जिसे कुकियों की रक्षा के लिए हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया है. और पहली बार महिलाओं को बल में शामिल होने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. चौबीस महिलाएं अब एमवीवी का हिस्सा होंगी.

उन्होंने कहा, “पहले बैच में 66 लोग थे, दूसरे में 87 लोग थे, और अब इसमें 123 लोग हैं. हम उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण देते हैं, लेकिन चूंकि हमारे पास ज्यादा समय नहीं है, इसलिए हम उन्हें पूरे गांव में, तैनात करने से पहले दो सप्ताह के भीतर उन्हें गहन प्रशिक्षण देते हैं.”

थार्रा के मुताबिक, सैनिक 17-25 साल के हैं और उनमें से कई छात्र हैं. उन्होंने कहा, छह कमांडर विभिन्न टीमों की देखरेख कर रहे हैं.

पासिंग आउट परेड में कुकियों की सुरक्षा के लिए अभ्यास और शपथ ग्रहण शामिल था. दो घंटे तक चला यह कार्यक्रम स्वयंसेवकों की भलाई और सुरक्षा के लिए प्रार्थना और भजन के साथ समाप्त हुआ.

ट्रेनर ने कहा, “आने वाले दिनों में हमें स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है. हमने जो क्रूर हिंसा देखी है उसके बाद हम कोई जोखिम नहीं उठा सकते.”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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