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Friday, 29 March, 2024
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ब्रितानी मीडिया ने जलियांवाला बाग नरसंहार की सुध 8 महीने बाद ली थी

भारतीय मीडिया के एक भाग ने भी इस भयावह घटना को ज़्यादा महत्व नहीं दिया, और खबर को अखबारों के अंदर के पेजों में दबा दिया गया.

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भारत में ब्रितानी शासन को हिला कर रख देने वाला जलियांवाला बाग नरसंहार, वास्तव में अपने समय के सर्वाधिक दबाए गए समाचारों में से एक था.

मैनेचेस्टर गार्डियन अखबार की सुर्खी थी: ‘भारत से एक चौंकाने वाली खबर’. उपशीर्षक में घटना की जानकारी दी गई: ‘अप्रैल की अशांति में पंजाब की बैठक को गोलीबारी से भंग किया गया. करीब 400 स्थानीय निवासी मारे गए: इससे तीन गुनी संख्या में घायल हुए.’ खबर की प्रस्तुति से अधिक उल्लेखनीय है इसके छपने की तारीख. यह खबर 13 दिसंबर 1919 को छपी थी, यानी 13 अप्रैल 1919 को हुए हत्याकांड के ठीक आठ महीने बाद.

खबर की शुरुआत इस तरह होती है: ‘अखबारों को कल प्राप्त और नीचे प्रकाशित खबर में पहली बार पंजाब में अप्रैल में गंभीर अशांति के दौरान अमृतसर में हुई असाधारण घटनाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है. हमारे संवाददाताओं ने इसे ‘भारत तक के लिए हैरतअंगेज़ खबर’ बताया है  और लगता है भारत में भी लोगों को घटना की पूरी जानकारी नहीं थी, जब तक कि हंटर जांच कमेटी ने तथ्यों को सार्वजनिक नहीं कर दिया.’ (मैनचेस्टर गार्डियन, 13 दिसंबर 1919, पृ. 11, ‘एन एस्टोनिशिंग स्टोरी फ्रॉम इंडिया’)

जलियांवाला बाग नरसंहार को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया हंटर कमेटी के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्यों को सार्वजनिक किए जाने के बाद ही जगा. ब्रितानी सरकार ने पंजाब की घटनाओं की जांच के लिए इस कमेटी का गठन किया था.


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मैनचेस्टर गार्डियन के अगले संस्करण में छपे संपादकीय में चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन पर और ज़ोर दिया गया. इसमें कहा गया, ‘बेशक, ये ज्ञात था कि गंभीर अशांति फैली थी और उसे दबाने के लिए खासे सख्त कदम उठाए गए, पर इससे पहले बाहर आई कोई भी जानकारी इस देश में, या भारत में, लोगों को जांच आयोग के समक्ष प्रस्तुत सच्चाई का सामना करने के लिए तैयार नहीं कर सकती थी. ये तो कहा ही जा सकता है कि भारत में ब्रितानी शासन के इतिहास में उनके दमन की खबर के अलावा कुछ और भयावह घटनाओं का ज़िक्र पाया जा सकता है.’ (मैनचेस्टर गार्डियन, 15 दिसंबर 1919, पृ. 6)

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लंदन के एक अन्य अखबार ऑब्जर्वर ने भी इसी तरह आश्चर्य व्यक्त किया. ‘पंजाब में गत अप्रैल में अशांति की कुछ गंभीर घटनाओं की जानकारी पहली बार लॉर्ड हंटर की जांच कमेटी की रिपोर्टों के ज़रिए सामने आई है, जो कि भारत से डाक में आती हैं. अन्य बातों के अलावा, ये पता चलता है कि अमृतसर में एक मैदान में खचाखच भरी 5,000 लोगों की भीड़ पर सैनिकों ने गोलीबारी की, और 400 से 500 लोग मारे गए, तथा करीब 1,500 घायल हुए.’ (ऑब्जर्वर, 14 दिसंबर 1919, पृ. 14, ‘2,000 इंडियन्स शॉट डॉउन’)

भारतीय मीडिया ने कैसे रिपोर्ट किया

भारतीय मीडिया के एक भाग ने भी इस घटना को ज़्यादा महत्व नहीं दिया, और खबर को अखबारों के अंदर के पेजों में दबा दिया गया.

टाइम्स ऑफ इंडिया ने जलियांवाला बाग नरसंहार की खबर छापी, पर ये पहले पेज की खबर नहीं थी. यह खबर एसोसिएटेड प्रेस के चार पंक्ति के नोट के रूप में एक कॉलम में छपी थी. ‘पंजाब से खबर मिल रही है कि अमृतसर में भीड़ एक बार फिर अधिकारियों के खिलाफ हिंसक हो उठी. विद्रोहियों को सेना ने खदेड़ दिया और उनके 200 लोग मारे गए.’ (टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 अप्रैल 1919, पृ. 10). अखबार ने इसकी रिपोर्टिंग की जगह ‘सत्याग्रह संबंधी दंगों’ की आलोचना वाली खबरें प्रकाशित की.

टाइम्स ऑफ इंडिया में नरसंहार का अगला ज़िक्र 10 दिनों के बाद हुआ. खबर में जलियांवाला बाग या जनरल डायर का ज़िक्र नहीं था, पर ‘हिंदुस्तानी सिपाहियों’ की भूमिका की तारीफ की गई थी.

‘बताया जाता है कि 13 को अमृतसर में उन्मादी भीड़ निषेधाज्ञा के बावजूद इकट्ठा हुई थी क्योंकि उन्हें नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि भारतीय सैनिक उन पर गोली नहीं चलाएंगे. वास्तव में, भारतीय सेना का व्यवहार शानदार था और हालांकि कतिपय सिपाही उन्हें भ्रष्ट करने के सतत प्रयासों से परेशान हुए हों, लेकिन बेहद कठिन परिस्थितियों में उनका आचरण बेहतरीन रहा है.’ (टाइम्स ऑफ इंडिया, 23 अप्रैल 1919, पृ. 7, ‘ट्रिब्यूट टू इंडियन सिपॉय्ज़’).

नरसंहार के बाद के हफ्तों में, अखबार ने ऐसी रिपोर्टें भी छापीं जिनमें स्वर्ण मंदिर पर बमबारी किए जाने का खंडन किया गया था. (टाइम्स ऑफ इंडिया, 22 अप्रैल 1919, पृ. 7, ‘सिचुएशन इन पंजाब’; टाइम्स ऑफ इंडिया, 28 अप्रैल 1919, पृ. 9, ‘रिवार्ड फॉर लॉयल इंडियन्स’)

हालांकि राष्ट्रवादी अखबार बॉम्बे क्रॉनिकल ने पंजाब सरकार की ‘यातना और आतंकी कृत्य’ की आलोचना की थी. और, टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसका बुरा मानते हुए क्रॉनिकल को लताड़ा था, और यहां तक कि उसके लाइसेंस को रद्द किए जाने तक की मांग की थी.


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‘हमारा समकालीन जिन ‘अत्याचारों’ की निंदा करता है उनका तो मतलब होता है विमानों से बम गिराना, मशीनगनों का इस्तेमाल, गिरफ्तारियां और निर्वासन और सड़कों पर कोड़े मारा जाना. जब एक अखबार सरकार के उत्पीड़न और आतंकवादी कृत्य की बात करने लगे तो, समय आ गया है कि सरकार की नरमी का विरोध किया जाए जो ऐसे वक्त इस तरह के बयानों के प्रसार की अनुमति देती है, और ऐसे अखबार को लाइसेंस दिए जाने का भी विरोध किया जाए जिसने कि उत्तरदायित्व के भाव को भुला दिया है. जैसे-जैसे हम सच्चाई के करीब पहुंचेंगे मार्शल लॉ के तहत किए गए उन कृत्यों के कारण साफ होते जाएंगे.’ (टाइम्स ऑफ इंडिया, 24 अप्रैल 1919, पृ. 6, ‘टॉर्चर एंड टेरराइज़ेशन’)

26 अप्रैल 1919 को बॉम्बे क्रॉनिकल के संपादक और राष्ट्रवादी मुद्दों के निर्भीक समर्थक बी.जी. होर्निमन को बॉम्बे सरकार ने निर्वासित कर दिया. (कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी, खंड 15: सात, प्रस्तावना)

जनरल डायर का उल्लेख नहीं

इस तरह की मीडिया कवरेज के मद्देनज़र, आश्चर्य की बात नहीं कि महीनों तक खबरों में जलियांवाला बाग नरसंहार के मुख्य अपराधी के रूप में जनरल डायर का उल्लेख तक नहीं हुआ.

रवीन्द्र नाथ टैगोर के 31 मई 1919 के प्रसिद्ध विरोध पत्र में, जिसमें कि उन्होंने वायसराय से उन्हें ‘नाइटहुड की उपाधि से मुक्त करने’ का आग्रह किया था, ‘बदकिस्मत लोगों को बेहिसाब सख्ती से दंडित किए जाने और दंड के तरीकों का ज़िक्र है’. हालांकि, पत्र में पंजाब में अत्याचारों की बात है, पर इसमें जलियांवाला बाग या जनरल डायर का उल्लेख नहीं है.

यहां तक कि ‘कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी’ में भी जनरल डायर का पहला उल्लेख नवजीवन के 14 दिसंबर 1919 के अंक में मिलता है. जबकि जलियांवाला बाग का पहला उल्लेख नवजीवन के 28 दिसंबर 1919 के अंक में है, यानि हंटर कमेटी की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने के बाद.

(लेखक अहमदाबाद स्थित वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक हैं.)

(इस खबर को अंग्रजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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