नई दिल्ली: भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने कहा है, कि ऐसे समय जब यूके दोनों देशों के बीच, रक्षा और व्यापारिक रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है, इंडो-पैसिफिक सामरिक निर्माण में भारत की एक केंद्रीय भूमिका है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ग्लासगो में सीओपी 26 शिखर सम्मेलन, और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ द्विपक्षीय बैठक के लिए यूके जाने से पहले, उच्चायुक्त ने दिप्रिंट के साथ एक ख़ास बातचीत में कहा कि भारत के पैमाने और आकार की वजह से, उसकी भूमिका और जलवायु परिवर्तन के लिए उठाए गए उसके क़दमों का पूरी दुनिया पर असर पड़ेगा.
इस ओर इशारा करते हुए, कि दोनों प्रधानमंत्री एक दूसरे के ‘लगातार संपर्क’ में हैं, ब्रिटिश दूत ने कहा कि यूके का मानना है कि इंडो-पैसिफिक दुनिया के केंद्र में है, और भारत उसका एक आवश्यक अंग है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यूके ने इस साल मार्च में जो एकीकृत समीक्षा की थी, उसमें दुनिया के इस हिस्से इंडो-पैसिफिक के लिए, उसने अपनी महत्वाकांक्षा पहले ही निर्धारित कर ली है. ये एक दीर्घ-कालिक रणनीति दस्तावेज़ है. ये वास्तव में आने वाले सालों में, इंडो-पैसिफिक को दुनिया के केंद्र में रखता है, और भारत इंडो-पैसिफिक के लिए बेहद अहम है’.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो फिलहाल इटली में हैं, 1-2 नवंबर को सीओपी26 सम्मेलन में शरीक होने के लिए यूके में ग्लासगो के दौरे पर होंगे, जहां सम्मेलन से इतर वो ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे.
यूके ने इस साल मार्च में एकीकृत समीक्षा 2021 जारी की थी, जिसमें उसने इंडो-पैसिफिक के लिए अपनी योजनाओं की व्याख्या की थी. उस दीर्घ-कालिक रणनीतिक दस्तावेज़ के तहत, ब्रिटिश विदेश सचिव एलिज़ाबेथ ट्रस ने 22-24 अक्तूबर तक, यूके के कैरियर स्ट्राइक ग्रुप 21 (सीएसजी21) के साथ भारत का दौरा किया, जिसकी अगुवाई एयरक्राफ्ट कैरियर एचएमएस क्वीन एलिज़ाबेथ कर रहा था.
भारत और यूके ने 18 अक्तूबर 2021 को वर्चुअल रूप में, अपनी पहली समुद्री वार्त्ता की.
उच्चायुक्त एलिस के अनुसार, भारत और यूके के बीच ‘ऐतिहासिक और जटिल रिश्ते’ हैं, और द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए, अब उन्होंने पांच स्तंभों पर अपना फोकस कर लिया है- रक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, लोगों के बीच सीधा संवाद, और व्यापार.
उन्होंने कहा, ‘रक्षा और सुरक्षा के मामले में, हमारे कैरियर अभी यहीं थे, जो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूके की सबसे बड़ी नौसेना तैनाती, और भारत की नौसेना, वायुसेना, और थल सेना के साथ अभूतपूर्व स्तर के अभ्यास थे. इसलिए इसका काफी हद तक कार्यान्वयन चल रहा है’.
उन्होंने आगे कहा कि दोनों पक्ष अब जल्द ही, भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को शुरू करने जा रहे हैं, चूंकि 2030 तक दोनों पक्ष अपने द्विपक्षीय व्यापार को, दोगुना करने का लक्ष्य रखते हैं. भारत-यूके द्विपक्षीय व्यापार 2020 में, 25.3 बिलियन डॉलर पहुंच गया था.
उन्होंने आगे कहा, ‘2030 तक हमें अपने व्यापार को दोगुना करने की ज़रूरत है. इसलिए उसके लिए एक व्यापार समझौता होना चाहिए. सभी व्यापार वार्त्ताएं जटिल होती हैं…लेकिन आख़िरकार रिश्तों में समग्र परिवर्तन के लिए, एक व्यापारिक समझौता करने में जो चीज़ काम करेगी, वो है दोनों पक्षों की ओर से राजनीतिक इच्छा शक्ति और सामरिक अनिवार्यता’.
‘इसमें कोई शक नहीं कि हमारे सामने संवेदनशील मुद्दे हैं, ये हमेशा रहते हैं, लेकिन अगर इच्छा मौजूद है तो मुझे लगता है कि कोई रास्ता निकल आएगा.
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‘गंभीर रूप से हानिकारक जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए, ग्लासगो आख़िरी मौक़ा है’
इस साल यूके जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (यूएनएफसीसी) के अंतर्गत, ग्लासगो में 26वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (सीओपी26) की मेज़बानी कर रहा है. इसे 2020 में आयोजित किया जाना था, लेकिन कोविड महामारी फैलने की वजह से इसमें देरी हो गई.
ब्रिटिश दूत ने कहा, ‘गंभीर रूप से हानिकारक जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए, ग्लासगो सम्मेलन दुनिया के पास आख़िरी मौक़ा है…ये दुनिया के हर देश को प्रभावित करता है. हमने पहले ही योजनाएं बनाई हुई हैं, लेकिन हमें और आगे बढ़ने की ज़रूरत है. भारत राष्ट्रीय स्तर पर पहले ही आगे बढ़ चुका है, और उदाहरण के तौर पर, नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में काफी उपलब्धि हासिल कर रहा है.
उन्होंने आगे कहा, ‘हम चाहते हैं कि भारत समेत सभी देश, 2030 तक की योजनाओं में अपनी राष्ट्रीय उपलब्धियों को शामिल करें, और एक दीर्घ-कालिक योजना तैयार करें, कि वो अपनी अर्थव्यवस्था में किस तरह परिवर्तन लाएंगे’.
अपेक्षा की जा रही है कि सीओपी 26 शिखर सम्मेलन में, धनी देश भारत और दूसरे ग़रीब को, कार्बन उत्सर्जन शून्य करने के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे.
लेकिन भारत ने, जो दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, कथित रूप से ऐसे लक्ष्य रखने की मांगें ठुकरा दी हैं. चीन और अमेरिका क्रमश: पहले और दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक हैं.
ब्रिटिश दूत ने कहा, ‘अपने पैमाने की वजह से भारत उसके लिए बहुत ज़रूरी है, चूंकि वो तेज़ी से विकसित हो रहा है, तेज़ी से आगे बढ़ना चाहता है, और उसके पास मौक़ा है कि तकनीक के मामले में, रोज़गार के नए अवसर पैदा करने में, अर्थव्यवस्था को नए ढंग से चलाने में, तेज़ी से आगे छलांग लगाए. इसलिए हम भारत के लिए महत्वाकांक्षा की उम्मीद कर रहे हैं, बहुत से दूसरे देशों के लिए भी महत्वाकांक्षा रख रहे हैं… आंशिक रूप से उसके पैमाने और आकार की वजह से, भारत की महत्वाकांक्षा बाक़ी दुनिया को भी प्रभावित करती है’.
एलिस ने ये भी कहा कि पीएम मोदी और पीएम जॉनसन, कुछ पहलक़दमियां शुरू करने जा रहे हैं, जिनका एक ‘वैश्विक प्रभाव’ होगा.
एलिस ने कहा, ‘भारत में अक्षय ऊर्जा का जो विशाल अभियान चल रहा है, उससे भारत के पड़ोसियों को भी फायदा पहुंचेगा…जलवायु परिवर्तन का दुनिया के हर देश पर असर पड़ता है’.
उनका कहना था कि धनी देशों को ‘निश्चित रूप से अपना योगदान बढ़ाना होगा’.
उन्होंने कहा कि 1990 के स्तर के मुक़ाबले, यूके ने ग्रीनहाउस गैसों के अपने उत्सर्जन को तक़रीबन आधा कर लिया है, और उसकी योजना 2035 तक इसे और कम करके, 78 प्रतिशत कम करने की है.
100 अरब डॉलर की जलवायु निधि पर बात करते हुए, यूके उच्चायुक्त ने कहा कि ये देखना बहुत अहम है, कि उसे कैसे हासिल किया जाएगा, और 2023 तक कैसे रोल आउट किया जाएगा, और सम्मेलन में इस पर चर्चा की जाएगी.
उन्होंने कहा, ‘ये एक आवश्यक तत्व है, जिससे सुनिश्चित किया जा सकता है कि भारत समेत दुनिया का हर देश, बड़ा परिवर्तन करके एक टिकाऊ अर्थव्यवस्था में दाख़िल हो सके’.
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