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Thursday, 24 July, 2025
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ऑपरेशन सिंदूर से जन्मा ऑपरेशन कालनेमि – कैसे उत्तराखंड पुलिस नकली साधुओं की कर रही है पहचान

तीर्थ सीज़न के दौरान धार्मिक स्थलों के पास नकली साधुओं की सूचना के आधार पर शुरू हुआ ऑपरेशन कालनेमि. अब तक पुलिस 500 से ज्यादा ऐसे फर्जी साधुओं की पहचान कर चुकी है.

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नई दिल्ली: जुलाई की एक गरम दोपहर, देहरादून पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी को अपने ऑफिस जाते वक्त एक अजीब नज़ारा देखने को मिला.

उत्तराखंड विधानसभा के पास सड़क किनारे एक तंबू लगा था, जिसके बाहर लंबी कतार लगी थी. तंबू के अंदर एक “बाबा” बैठे थे. उनके चारों ओर चावल के दाने, रुद्राक्ष की मालाएं, तिलक के लिए सिंदूर और अन्य पूजा सामग्री रखी थी.

गले में भगवा रंग का गमछा डाले ये बाबा लगातार आने वाले लोगों को उनकी समस्याओं का “हल” दे रहे थे.

जब पुलिस अधिकारी ने रुककर बाबा से बात की, तो बाबा ने उन्हें भी एक ऐसा “उपाय” बताया जिससे वे कम से कम 100 साल जी सकें.

अधिकारी ने बताया, “उसने बेहिचक मुझसे अपनी सारी चीज़ें खरीदने को कहा, जबकि मैं पुलिस वाला था. उसने कहा कि अगर मैं सफल नेता बनना चाहता हूं या 100 साल तक जीना चाहता हूं, तो मुझे उसके तिलक या अंगूठी जैसे उपाय खरीदने होंगे. जब मैंने इन सब चीज़ों को खरीदने से इनकार किया और उससे उसकी पृष्ठभूमि के बारे में सवाल पूछने शुरू किए, तो वह घबरा गया और मान गया.”

ये बाबा उन सैकड़ों फर्ज़ी साधुओं में से एक थे, जिन्हें उत्तराखंड पुलिस ने ‘ऑपरेशन कालनेमि’ के तहत चिन्हित किया है. यह राज्यव्यापी अभियान 11 जुलाई को शुरू हुआ था, जिसका मकसद ऐसे फर्ज़ी बाबाओं और साधुओं के खिलाफ कार्रवाई करना है जो लोगों को धोखा देकर उनके दुखों का समाधान बेचते हैं.

रामायण में कालनेमि वह राक्षस था जिसे रावण ने साधु का वेश देकर भेजा था ताकि वह हनुमान को संजीवनी बूटी लाने से रोक सके.

ऑपरेशन की योजना तब बनाई गई जब ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कुछ इनपुट मिले कि धार्मिक स्थलों के पास फर्ज़ी पहचान और भेष में लोग घूम रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सेना का अभियान था, जो जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों द्वारा 26 लोगों की हत्या के बाद पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों के खिलाफ शुरू किया गया था.

एक सरकारी अधिकारी ने बताया, “इस पृष्ठभूमि में कांवड़ यात्रा और चारधाम यात्रा जैसे संवेदनशील धार्मिक आयोजनों के दौरान दस्तावेज़ की गहन जांच और इंटेलिजेंस निगरानी की रणनीति बनाई गई.”

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर शुरू किए गए ऑपरेशन कालनेमि के तहत अब तक राज्य भर में 2,448 संदिग्ध साधुओं की जांच की गई, जिनमें से 500 से अधिक को फर्ज़ी पाया गया है. अधिकारियों ने बताया कि अब तक पुलिस ने 144 फर्ज़ी साधुओं को गिरफ्तार किया है, जबकि 337 को कार्यकारी मजिस्ट्रेट के सामने माफीनामा देकर छोड़ दिया गया है, जिसमें उन्होंने दोबारा ऐसा न करने की बात कही है.

मुख्यमंत्री धामी ने 10 जुलाई को कहा, “जिस तरह राक्षस कालनेमि ने साधु का वेश धरकर लोगों को भ्रमित किया था, वैसे ही आज समाज में कई ‘कालनेमि’ हैं जो धर्म की आड़ में अपराध कर रहे हैं. हमारी सरकार जनभावनाओं, सनातन संस्कृति की गरिमा और सामाजिक समरसता की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. आस्था के नाम पर पाखंड फैलाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा.”

यह ऑपरेशन ऐसे समय चलाया जा रहा है जब कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तराखंड में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. लाखों लोग हरिद्वार, ऋषिकेश और केदारनाथ जैसे धार्मिक स्थलों की यात्रा पर आते हैं, जिससे इन स्थानों पर भीड़ बहुत बढ़ जाती है.


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ऑपरेशन सिंदूर से ऑपरेशन कालनेमि तक

राज्य सरकार के सूत्रों के अनुसार, पुलिस ने पहले भी ऐसे लोगों की पहचान की थी जो धार्मिक आयोजनों और मेलों का इस्तेमाल कर लोगों को धोखा देते थे, लेकिन इस बार कार्रवाई पहले से कहीं ज़्यादा संगठित और योजनाबद्ध तरीके से की गई.

अधिकारियों ने बताया कि पहले की कार्रवाई आमतौर पर सीमित और स्थानीय स्तर पर होती थी, जहां हर मामला अलग-अलग देखा जाता था और जिला पुलिस ही उसमें कार्रवाई करती थी.

इसके उलट, ऑपरेशन कालनेमि एक बड़े स्तर पर चलाया गया अभियान है, जिसे पुलिस मुख्यालय में डीजीपी दीपम सेठ के नेतृत्व में शीर्ष अधिकारियों ने मुख्यमंत्री धामी के निर्देश पर योजनाबद्ध किया.

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऑपरेशन कालनेमि को पहले के नियमित मामलों से अलग इसीलिए माना जा रहा है क्योंकि अब हर जिले की लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) को सीधे ऐसे संदिग्धों की पहचान कर थाने में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार दिया गया है. आम तौर पर LIU केवल जानकारी इकट्ठा कर अधिकारियों तक पहुंचाती है.

ऑपरेशन कालनेमि के तहत गिरफ्तार एक और संदिग्ध | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
ऑपरेशन कालनेमि के तहत गिरफ्तार एक और संदिग्ध | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान धार्मिक स्थलों पर फर्ज़ी साधुओं की मौजूदगी की खुफिया रिपोर्ट के आधार पर उत्तराखंड सरकार ने इन लोगों की पहचान करने और कार्रवाई करने के लिए एक रणनीति बनाई.

मुख्यमंत्री द्वारा अभियान की घोषणा के तुरंत बाद डीजीपी दीपम सेठ ने राज्य के सभी 13 पुलिस जिलों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए ऑपरेशन के उद्देश्य और नियमों की जानकारी दी.

अभियान के पहले 10 दिनों में, हरिद्वार जिला पुलिस ने कुल 2,448 संदिग्ध साधुओं में से ज़्यादातर की जांच की, जिनमें से 63 को संदिग्ध मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. देहरादून पुलिस ने 398 लोगों की जांच के बाद 122 संदिग्धों की पहचान की, जबकि टिहरी जिले में 94 लोगों की जांच में 87 संदिग्ध मिले.

नैनीताल जिले में 252 लोगों की जांच के बाद 44 संदिग्धों की पहचान हुई. उधम सिंह नगर, जहां अन्य राज्यों के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं, वहां 155 लोगों की जांच के बाद 17 को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया और 16 को गिरफ्तार किया गया.

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने देहरादून और हरिद्वार में संदिग्धों की संख्या ज्यादा होने की वजह बताई.

उन्होंने कहा, “हरिद्वार और देहरादून में मामलों की संख्या ज़्यादा होने की दो मुख्य वजहें हैं. एक तो यह कि यहां कांवड़ यात्रा जैसे बड़े धार्मिक आयोजन होते हैं, इसलिए निगरानी बहुत सख्त रही और दूसरी वजह यह थी कि पहले से ही इन जिलों को लेकर कुछ खास खुफिया इनपुट थे, इसलिए यहीं सबसे पहले रणनीतिक जांच अभियान शुरू किया गया.”

बांग्लादेशी ‘बाबा’ की हुई परिवार से मुलाकात

जब पुलिस देहरादून के ग्रामीण इलाकों में गश्त कर रही थी, तब लोकल इंटेलिजेंस यूनिट की टीम को सड़क किनारे एक 25 साल का युवक मिला, जो अधनंगा था और साधु के भेष में था. उसके गले में भगवान शिव, महाकाल और परशुराम की तस्वीरों वाले लॉकेट और अंगुलियों में कई अंगूठियां थीं.

उत्तराखंड पुलिस अधिकारी ने अपनी शिकायत में लिखा, “जब उस व्यक्ति से नाम और पता पूछा गया, तो वह कुछ नहीं बता पाया. वहां से गुज़र रहे लोग उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ समझ रहे थे क्योंकि वह किसी से बात नहीं करता था और भीख मांगकर अपना गुज़ारा कर रहा था.”

हालांकि, LIU टीम को उस पर तब शक हुआ जब उसने एक भी शब्द हिंदी में नहीं बोला, लेकिन थोड़ी-बहुत बंगाली ज़रूर बोल रहा था.

पुलिस को लगा कि वह शायद बांग्लादेशी नागरिक या रोहिंग्या समुदाय से हो सकता है. इसके बाद पुलिस ने कुछ स्थानीय बंगालियों की मदद ली.

बातचीत में उस व्यक्ति ने खुद को बांग्लादेश के टांगेल जिले का रुकन रकाब उर्फ शाह आलम बताया. कथित तौर पर उसने कबूल किया कि वह करीब एक साल पहले किसी बात से नाराज़ होकर घर से निकल गया था और गलती से भारत-बांग्लादेश सीमा पार कर पश्चिम बंगाल पहुंच गया.

कोलकाता में कुछ समय तक बस स्टॉप के पास भीख मांगने के बाद वह ट्रेन से देहरादून आ गया. पकड़े जाने से बचने के लिए वह गूंगे का नाटक करता रहा.

LIU अधिकारी ने अपनी शिकायत में लिखा, “वह यहां छुपकर बाबा के भेष में रह रहा था.”

शिकायत के अनुसार, जब रुकन रकाब की तलाशी ली गई, तो उसके दोनों हाथों में अलग-अलग कंपनियों की 17 पुरानी घड़ियां, 42 मेले जैसी अंगूठियां और 13 धातु की पुरानी चेन मिलीं.

पुलिस को उसकी कमर पर बंधा एक बड़ा गोल लॉकेट भी मिला, जिसमें एक तरफ भगवान परशुराम का नाम और तस्वीर थी और दूसरी तरफ मां रेणुका जी की तस्वीर. उसके हाथ में एक छोटा लॉकेट भी था, जिसमें एक तरफ भगवान शिव की तस्वीर थी और दूसरी ओर “महाकाल” लिखा हुआ था.

चूंकि, वह बिना पासपोर्ट और वैध वीज़ा के भारत में घुसा था, इसलिए उत्तराखंड पुलिस ने उसे पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और विदेशियों अधिनियम, 1946 के तहत गिरफ्तार किया.

देहरादून एसएसपी अजय सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “वह अभी न्यायिक हिरासत में है और उसे वापस भेजने (डिपोर्ट) की प्रक्रिया चल रही है.”

उन्होंने यह भी बताया कि उनके पुलिस जिले में ऑपरेशन कालनेमि के तहत 122 संदिग्धों की पहचान हुई, जिनमें से 80 अन्य राज्यों से थे और उत्तराखंड में उनके पास कोई रहने की जगह नहीं थी.

उत्तराखंड के डीजीपी दीपम सेठ ने दिप्रिंट से कहा, “ऑपरेशन कालनेमि के दौरान सहसपुर थाना क्षेत्र में एक बांग्लादेशी नागरिक को गिरफ्तार किया गया, जिसने अपना नाम बदल लिया था, हिंदू नाम अपना लिया था और खुद को ‘सिद्ध बाबा’ कहकर प्रचार कर रहा था.”

उन्होंने बताया, “उसके बारे में गुप्त सूचना एकत्र की गई, जिससे पता चला कि वह पहले बांग्लादेश से कोलकाता आया था. जब पुलिस ने उसका पीछा किया, तो वह अलग-अलग जगहों पर जाकर छिपता रहा और अंत में देहरादून आकर नाम और भेष बदलकर रहने लगा.”

एक अन्य मामले में हरिद्वार जिला पुलिस ने बताया कि उन्होंने ऐसे 13 लोगों की पहचान की है जो धार्मिक व्यक्ति बनकर लोगों को ठग रहे थे. इनमें यूपी के रहने वाले महबूब, मोहम्मद अहमद, सलीम मोहम्मद हसन और जैद शामिल हैं.

दो आरोपी — मोहम्मद जैन और साबिर — बिहार के हैं, जबकि एक आरोपी पश्चिम बंगाल और एक मध्य प्रदेश से है.

ऊधम सिंह नगर ज़िले की पुलिस ने उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती ज़िले पीलीभीत से सात लोगों को गिरफ्तार किया है. इन पर धार्मिक व्यक्ति बनकर लोगों को ठगने का आरोप है. गिरफ्तार लोगों में चुन्नू मियां, नाज़िम, अफज़ल, परवेज़, इम्तियाज़ अली, तारीख अहमद और मोहम्मद आसिफ शामिल हैं.

इसी तरह, देहरादून ज़िले की पुलिस ने यूपी से मोहम्मद याकूब, भिखारी लाल, कुलदीप शर्मा और हज़ारी लाल को गिरफ्तार किया, जबकि बिहार से सरयू यादव, झारखंड से बलदेव और उत्तराखंड के हरिद्वार और ऋषिकेश से बबली और वर्शराम को इस अभियान के तहत पकड़ा गया.

वहीं, उत्तराखंड पुलिस को यूपी के मुरादाबाद ज़िले के जितेंद्र नाम के एक व्यक्ति के बारे में पता चला, जो 2005 में लापता हो गया था. उसके परिवार ने उसकी वापसी की उम्मीद छोड़ दी थी.

हरिद्वार ज़िला पुलिस ने उसे उसके परिवार से मिलवाया. पहले वह पीरान कलीयर शरीफ थाना क्षेत्र में 13वीं सदी की एक दरगाह के पास कांवड़िया के भेष में दिखाई दिया था.

उसके पास कोई वैध पहचान-पत्र नहीं था, लेकिन वह अपने पिता का नाम और थाना कुछ-कुछ याद कर पा रहा था. पुलिस ने जब गहराई से जांच की, तो उसके परिवार को खोज निकाला.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अभियान की शुरुआत के समय कहा था कि “सनातन धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर उन्हें ठगने वालों के खिलाफ ऑपरेशन कालनेमि शुरू करने के निर्देश पुलिस को दिए गए हैं.”

धामी ने कहा, “राज्य में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां कुछ असामाजिक तत्व साधु-संत बनकर खासतौर पर महिलाओं को ठगने का काम कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “यह न केवल लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहा है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और सनातन परंपरा की छवि को भी नुकसान पहुंचा रहा है. ऐसी स्थिति में यदि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, इस तरह की हरकत करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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