राजवार: उत्तरी कश्मीर में रजवार क्षेत्र के जंगली इलाक़े में रहने वाली ज़्यादातर आबादी, जिसने बृहस्पतिवार को ज़िला विकास परिषद (डीडीसी) के लिए चल रहे, चुनावों के पांचवें दौर में मतदान किया, विकास और इनफ्रास्ट्रक्चर को सबसे ज़्यादा प्राथमिकता देती है.
अस्थिर नियंत्रण रेखा के पास स्थित रजवार इलाक़ा, जो तीन दशकों से उग्रवाद से बुरी तरह प्रभावित है, अभी तक विकसित नहीं है और यहां के लोग उसके बाद से आने वाली सरकारों पर, उनकी अनदेखी का आरोप लगाते हैं. मौजूदा प्रशासन के भी यहां ज़्यादा हिमायती नहीं हैं.
लेकिन, सीमावर्ती कुपवाड़ा ज़िले के स्थानीय निवासियों को लगता है, कि डीडीसी चुनावों से उन्हें न सिर्फ किसी स्थानीय या जाने पहचाने चेहरे, बल्कि किसी ऐसे शख़्स को चुनने का भी मौक़ा मिल रहा है, जिसने बाक़ी लोगों की तरह तकलीफें उठाई हों.
यहां के मतदाता आमतौर से अनुच्छेद 370 के बारे में, बोलने से बचते नज़र आए, लेकिन कुछ ने दबी ज़बान से बात की- ख़ासकर उसके बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से उठाए गए क़दमों की, जिनमें जंगल की ज़मीन से ‘कब्जा करने वालों’ को हटाना शामिल है.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 63,000 से ज़्यादा लोगों के नाम छपवाकर, उनपर 15,000 हेक्टेयर से ज़्यादा वन भूमि पर, क़ब्ज़ा करने का आरोप लगाया था.
लंगाते वन प्रभाग की 595 हेक्टेयर ज़मीन में से, जिसे सरकारी दावे के मुताबिक़ लोगों ने क़ब्ज़ाया हुआ है, 239.6 हेक्टेयर अकेले रजवार इलाक़े में है.
लेकिन यहां रहने वाले ज़्यादातर लोगों ने या तो सरकारी सूचियों के प्रति अनभिज्ञता ज़ाहिर की, या उम्मीद जताई कि प्रशासन, उन्हें उनके ‘घरों’ से बाहर निकालने का कड़ा क़दम नहीं उठाएगा.
एक वोटर ने कहा, ‘हम किसी को नाराज़ नहीं करना चाहते. आप नतीजे देखेंगे तो जान जाएंगे, कि हमने किसे वोट दिया है’.
ज़कलदेरा गांव के एक वोटर ने कहा, ‘ये ज़मीनें हमारी है; सरकार हमें यहां से कैसे निकाल सकती है? ये हमारा घर है. सरकार हमें यहां से नहीं हटा सकती’.
यह भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में रोशनी एक्ट के लाभार्थियों की पहली सूची में हसीब द्राबू, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के नेता शामिल थे
पीसी का गढ़
क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों ने, जो पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लरेशन का हिस्सा हैं, अपनी सियासत को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने के, मोदी सरकार के अगस्त 2019 के क़दम के इर्द गिर्द केंद्रित किया है.
रजवार उन जगहों में से एक है, जहां एलायंस को मज़बूत माना जाता है, चूंकि ये सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉनफ्रेंस का गढ़ समझा जाता है.
यहां एलायंस के काफी समर्थक हैं, जिनमें शमीम अहमद भी शामिल हैं, जो विदेशों में मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन इन दिनों घर पर हैं.
अहमद ने कहा, ‘ऐसा पहली बार हुआ है, कि सभी सियासी पार्टियां एक साथ आई हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘पहली बार वोटर होने के नाते मुझे लगा, कि मेरा फर्ज़ बनता है कि मैं उन लोगों को वोट दूं, जो धारा 370 को वापस लाना चाहते हैं. ये धारा हमारी पहचान का एक अहम हिस्सा है’.
शमीम जैसे बहुत से लोग हैं, जो धारा 370 खत्म किए जाने, और पिछले एक साल में लाए गए, क़ानूनी और प्रशासनिक बदलावों के बारे में, जिनमें जम्मू-कश्मीर वन संरक्षण एक्ट रद्द करना शामिल है, इसी तरह के विचार रखते हैं. रजवार और कश्मीर के दूसरे उत्तरी हिस्सों के ज़्यादातर लोगों के लिए, इनफ्रास्ट्रक्चर विकास की कमी, सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है.
उत्तराखंड से फूड टेक्नॉलजी में पीएचडी कर रहे वारिस अहमद ने कहा, ‘लोगों को किसी सरकारी स्कीम का फायदा नहीं पहुंचा है. स्थानीय पार्टियों ने वाक़ई उतना ज़्यादा ध्यान नहीं दिया है, और यहां बद-इंतज़ामी ही फैलाई है’.
‘अब हम चाहते हैं कि यहां ठीक से काम हो. अब हम किसी ऐसे उम्मीदवार को चुनना है, जो स्थानीय हो और हमारे बीच का हो. ऐसा, जिसे हम जवाबदेह ठहरा सकें’.
ज़कलदारा के गांव प्रमुख अब्दुल रशीद मगरे के विचार भी यही थे. मगरे ने कहा, ‘पिछली सरकार और मौजूदा सरकार ने भी, हमें मायूस ही किया है. सड़कों की हालत देखिए ज़रा; ये इंसानों के सफर करने लायक़ नहीं है’.
‘कोई बिजली नहीं है, और कश्मीर में जल संसाधनों की बहुतायत के बावजूद, हमारे टैप सूखे रहते हैं. हम उम्मीद कर रहे हैं कि किसी लो-प्रोफाइल आदमी को चुनने से, जो हमारे साथ तकलीफें उठा चुका है, कोई हमारी हालत का ध्यान करने वाला होगा’.
मतदाताओं की सबसे बड़ी इच्छा- खेल का मैदान
इलाक़े के जिन चार गांवों का दिप्रिंट ने दौरा किया, वहां एक भारी मांग किसी खेल के मैदान की थी, जो मतदाताओं के मुताबिक़ न सिर्फ बच्चों के संपूर्ण विकास, बल्कि उनके तनाव को दूर करने के लिए भी ज़रूरी है.
वदूरा गांव के मोहम्मद शफी ने कहा, ‘कश्मीर में हालात कभी सामान्य नहीं रहे हैं. हमारे यहां एक के बाद एक दो लॉकडाउंस हुए हैं. सरकार कम से कम ये तो कर ही सकती है, कि हमें कुछ खेल के मैदान मुहैया करा दे, लेकिन उन्हें ये भी एक बड़ा काम लगता है’.
‘हम सिर्फ इसलिए वोट देने आए हैं, कि सरकार के प्रशासन और सियासी पार्टियों की तवज्जो, अपनी तरफ खींचने का कोई और तरीक़ा नहीं है. लोग काफी तादाद में वोट डालने आए हैं, लेकिन क्या सरकार इसका इनाम देगी? मुझे इसमें शक है’.
प्रशासन के मुताबिक़ जम्मू-कश्मीर में बृहस्पतिवार को 51.2 प्रतिशत वोट डाले गए, जिसमें जम्मू में 66.67 प्रतिशत, और घाटी में 33.57 मतदान देखा गया.
सबसे अधिक मतदान, 70.95 प्रतिशत, जम्मू के डोडा ज़िले में दर्ज किया गया, जबकि सबसे कम मतदान (5.52 प्रतिशत) शोपियां में दर्ज हुआ. उत्तर कश्मीर के सीमावर्ती ज़िले कुपवाड़ा में 52.35 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे)
य़ह भी पढ़ें:बुरहान, नाइकू, मूसा की मौत के साथ कश्मीर एक बार फिर ‘फेसलेस’ आतंकवाद की ओर बढ़ता दिख रहा