(जयंत रॉय चौधरी)
बोरल (प.बंगाल), दो मई (भाषा) महानगर कोलकाता के पुराने शहर के बाहर स्थित अर्द्ध-शहरी बोरल करीब 70 साल पहले एक साधारण-सा कस्बा ही था लेकिन प्रख्यात फिल्म निर्माता सत्यजीत रे ने अपने ‘मास्टरपीस’, ‘‘पथेर पांचाली’’ (राह का गीत) के दृश्यों को यहां फिल्माकर इसे इतिहास के स्वर्णाक्षरों में दर्ज करा दिया।
रे ने जिस तालाब के सामने ‘पथेर पांचाली’ के कुछ दृश्यों की शूटिंग की थी, वहां रहने वाले युवा कलाकार अभिषेक पॉल (31) ने बताया कि उन्होंने अपनी दादी से फिल्म की शूटिंग की कहानियां सुनी थी।
पॉल ने कहा, ‘‘फिल्म की शूटिंग हुई तो उस दौरान पूरा गांव उत्सुक था… आज हमें गर्व होता है कि उन्होंने हमारे इलाके को चुना।’’
सत्यजीत रे ने शूटिंग के लिए जिस मकान को किराये पर लिया था वहां से आगे सड़क के एक मोड़ पर उनकी एक छोटी आवक्ष प्रतिमा स्थापित है। स्थानीय लोगों ने आज प्रख्यात फिल्म निर्माता की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
‘माणिक-दा’ के नाम से मशहूर रे की जयंती आज दुनियाभर में मनायी जा रही है। उन्होंने इस गांव को इसलिए चुना था क्योंकि यह ‘‘शहर से महज चार मील दूर था और इसका मतलब था कि वह रोज यहां के चक्कर लगा सकते थे।’’ साथ ही उनकी फिल्म का बजट भी बहुत कम था और वह किसी दूरदराज के गांव में शूटिंग का खर्च नहीं उठा सकते थे।
गांव के जमींदार परिवार के 80 वर्षीय तुषार कांति घोष ने कहा, ‘‘वह हमारे घर तथा प्राचीन शिव मंदिर के बीच खेत में आते थे और एक पेड़ के नीचे घंटों खड़े रहकर आसपास घूरते रहते और एक रुमाल चबाते रहते थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पिता ने उनसे पूछा था कि वह क्या कर रहे हैं। रे ने उन्हें बताया कि यह अपने दिमाग में दृश्यों की कल्पना करने का उनका तरीका है।’’
घोष आठ साल की उम्र में रे से मिले थे और उन्होंने 1952 से 1955 के बीच फिल्मायी ‘पथेर पांचाली’ में गांव के एक स्कूल के छात्र की छोटी-सी भूमिका निभायी थी।
उस वक्त उनके साथ ही गांव के अन्य लोगों ने कभी नहीं सोचा था कि उनका यह साधारण-सा गांव फिल्म रिलीज होने के बाद अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित करेगा और उसे भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में कान फिल्म महोत्सव में दिखाया जाएगा।
सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म में ज्यादातर नौसिखिए कलाकारों से काम कराया जिसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर गिरवी रखकर पैसे जुटाए और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत डॉ. बिधान चंद्र रॉय से सब्सिडी मंजूर करायी थी।
प्रख्यात अमेरिकी फिल्म निर्देशक जॉन हस्टन ने रे की फिल्म के कुछ अधूरे असंपादित अंश देखे थे और इसे एक ‘‘महान फिल्मकार’’ का काम बताया था। इसके बाद न्यूयॉर्क के ‘म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट’ ने भी कुछ मदद की थी।
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने 1956 में एक लेख में कहा था, ‘‘किसी भी अन्य भारतीय फिल्म से इसकी तुलना करना बेकार है…पथेर पांचाली विशुद्ध सिनेमा है। इसमें थिएटर का कोई नामोनिशां तक नहीं है।’’
रे की तीन फिल्मों की श्रृंखला ‘‘अप्पू ट्रायलॉजी’’ का हिस्सा रहे बोरल को दुनियाभर के लोगों ने सिने पर्दे पर देखा है।
हालांकि, अब गांव में कला को लेकर कोई जुनून नहीं है। शहर बनने की दौड़ में इसके जंगल तथा खेत नदारद हो चुके हैं और वहां बिल्डरों ने मध्यमवर्ग की ‘ड्रीम’ गगनचुंबी इमारतें खड़ी कर दी है।
घोष ने कहा, ‘‘लेकिन कुछ चीजें अब भी वैसी हैं – हर कोई अब भी एक अच्छी कहानी से प्यार करता है। किसी दिन कोई और रे एक अन्य उत्कृष्ट फिल्म के निर्माण के लिए किसी और बोरल की खोज करेगा।’’
भाषा गोला मनीषा
मनीषा
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