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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशबॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले से भाजपा को राहत, मराठा समुदाय का आरक्षण बरकरार

बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले से भाजपा को राहत, मराठा समुदाय का आरक्षण बरकरार

उच्च न्यायालय ने कहा कि आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा 'असाधारण स्थितियों में बढ़ाई जा सकती है.'

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मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण को संवैधानिक वैधानिकता को बरकरार रखा. अदालत ने, हालांकि, समुदाय के लिए बढ़ाए गए 16 प्रतिशत कोटा को मंजूरी नहीं दी. महाराष्ट्र विधानसभा ने 30 नवंबर, 2018 को, मराठा आरक्षण विधेयक पारित किया था, जिसने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था.

राज्य विधायिका के निर्णय के बाद, इसके विरोध में कई याचिकाएं दायर की गई थीं कि समुदाय को आरक्षण से राज्य में कोटा 52 प्रतिशत से बढ़ाकर 68 प्रतिशत हो जाएगा, जो उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित सीम से 18 प्रतिशत अधिक है.

इस पर, उच्च न्यायालय ने कहा कि आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा ‘असाधारण स्थितियों में बढ़ाई जा सकती है.’
अदालत ने महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा समुदाय के ‘पिछड़ेपन’ के बारे में की गई सिफारिशों को भी बरकरार रखा, जिसे सरकार ने कोटा बढ़ाते समय माना था.

मराठा समुदाय, जिसे राज्य सरकार द्वारा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) घोषित किया गया है, राज्य में कुल आबादी का 33 प्रतिशत हिस्सा रखता है.

6 फरवरी, 2019 को, न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और भारती डेंजर की खंडपीठ ने मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण के खिलाफ राज्य सरकार और लोगों की कई सारी याचिकाओं की सुनवाई की. दो महीने से अधिक समय तक लंबी सुनवाई के बाद, उच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं पर 26 मार्च को आदेश सुरक्षित रखा था. 8 मार्च को, देवेंद्र फड़नवीस की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण लागू करने के लिए एक अधिसूचना जारी की.

राज्य की विधान परिषद ने 21 जून को, एसईबीसी अधिनियम में एक संशोधन पारित किया, जिससे मराठा समुदाय के छात्रों को मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर (पीजी) पाठ्यक्रमों में प्रवेश में 16 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया.

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