scorecardresearch
शनिवार, 17 मई, 2025
होमदेशबोफोर्स मामला : पत्रकार ने ‘सबूतों के डिब्बे’ में से मिली जानकारी को सार्वजनिक करने की मांग की

बोफोर्स मामला : पत्रकार ने ‘सबूतों के डिब्बे’ में से मिली जानकारी को सार्वजनिक करने की मांग की

Text Size:

नयी दिल्ली, नौ मार्च (भाषा) पत्रकार और लेखिका चित्रा सुब्रमण्यम ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से मांग की है कि वह बोफोर्स कांड में रिश्वत के संबंध में स्विट्जरलैंड से प्राप्त ‘‘सबूतों के डिब्बे’’ से मिली जानकारी को सार्वजनिक करे, जिसके बारे में पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि इसका इस्तेमाल जांच में किया गया था और आरोपपत्र में साक्ष्य के रूप में अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया था।

‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में ‘बोफोर्सगेट: ए जर्नलिस्ट्स परस्यूट ऑफ ट्रुथ’ की लेखिका सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘हमें बताया जाना चाहिए कि डिब्बा किसने खोला, कब खोला गया, डिब्बे में क्या था?’’

उन्होंने यह भी आश्चर्य जताया कि क्या सौदे में कमीशन 18 प्रतिशत था, जैसा कि स्वीडन की फर्म बोफोर्स द्वारा भारत सरकार को दिए गए सबूतों से पता चलता है।

सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘दूसरी बात, उस समय रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडीज ने 1999 के अंत में मुझे यह क्यों बताया कि उन्हें बृजेश मिश्रा ने डिब्बा न खोलने के लिए कहा था?’’

इस मुद्दे पर अपने रुख पर अडिग रहीं सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘सीबीआई वही कह रही है जो उसे कहना है। मुझे वही कहना है जो मुझे कहना है।’’

राजस्थान पुलिस के पूर्व महानिदेशक ओ पी गलहोत्रा, जिन्होंने सीबीआई में अपने कार्यकाल के दौरान बोफोर्स मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ने कहा कि एजेंसी ने स्विट्जरलैंड से प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर आरोप पत्र दाखिल किया।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ के सवालों के जवाब में कहा, ‘‘यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन दस्तावेजों को स्विट्जरलैंड की अदालत से भारतीय अदालत को सौंपा गया था, और निर्दिष्ट अदालत के निर्देश पर (सबूतों के) डिब्बे खोले गए थे।’’

गलहोत्रा ने कहा, ‘‘डिब्बे खोले गए, और हर चीज की जांच की गई। वास्तव में, दस्तावेज महत्वपूर्ण अज्ञैर संवेदनशील थे जिसके कारण एजेंसी को पूरक आरोप पत्र दाखिल करना पड़ा।’’

इस विषय पर हाल ही में लिखी गई किताब की लेखिका के बारे में चर्चा करने से इनकार करते हुए गलहोत्रा ने इस बात पर जोर दिया कि जांचकर्ता अदालतों के प्रति जवाबदेह हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आरोप पत्र अदालत में दाखिल किया जाता है और इसे एक सार्वजनिक दस्तावेज माना जाता है।’’

वर्ष 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी गलहोत्रा 1996 से 2004 तक और बाद में 2008 से 2015 तक सीबीआई में तैनात रहे।

बोफोर्स के दस्तावेजों को पूर्व सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय टीम के माध्यम से भारत भेजा गया और तीस हजारी अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजीत भरिहोके की अदालत को सौंपा गया।

सुब्रमण्यम की पुस्तक में किए गए दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पायी है।

सुब्रमण्यम ने बोफोर्स मामले में कथित रिश्वत के बारे में आधिकारिक बयान पर सवाल उठाया और कहा कि संभवत: 64 करोड़ रुपये की राशि पूरे भ्रष्टाचार को नहीं दर्शाती।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे विश्वास नहीं है, कोई भी यह नहीं मानता कि 18.5 प्रतिशत का भुगतान नहीं किया गया था। हम 64 करोड़, 64 करोड़, 64 करोड़ कह रहे हैं। वास्तविक प्रतिशत क्या है? क्योंकि स्टेन लिंडस्ट्रॉम (स्वीडिश पुलिस के पूर्व प्रमुख) नहीं मानते कि यह तीन प्रतिशत था। इतना बड़ा लोकतंत्र इतने कम पैसे के लिए क्यों इतनी मगज़ मारी करेगा?।’’

सुब्रमण्यम ने दावा किया कि सीबीआई ने जांच को पटरी से उतारने के लिए बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में कहानियां गढ़ीं और बच्चन परिवार के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध शुरू किया।

सुब्रमण्यम ने याद किया कि बच्चन उनके घर आए थे और पूछा था कि क्या उन्होंने उनका नाम देखा है।

सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘बड़े पैमाने पर जांच को पटरी से उतारने की कोशिश की गई। और फिर हमें पता चला कि बच्चन परिवार के बारे में कतई कुछ भी नहीं था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वह अपने आप में एक स्टार हैं। उन्हें न तो राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है और न ही पैसे की। वे उन्हें नीचे गिराने की कोशिश कर रहे थे। राजीव गांधी से लेकर वी पी सिंह तक सभी सरकारें उन्हें नीचे गिराने की कोशिश कर रही थीं। और आप जानते हैं, मुझे लगता है कि लोग इस आदमी से ईर्ष्या करते हैं। उसे किसी की जरूरत नहीं है।’’

बोफोर्स घोटाले और गांधी परिवार के बीच संभावित संबंधों के बारे में पूछे जाने पर सुब्रमण्यम ने कहा कि वह राजीव गांधी के बारे में निश्चित नहीं हैं, लेकिन पैसा इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची तक पहुंचा था।

अमेरिका से सहायता के लिए सीबीआई द्वारा हाल ही में किए गए अनुरोध के बारे में सुब्रमण्यम ने कहा, ‘‘और अब मैं कुछ अखबारों में पढ़ रही हूं कि एक अनुरोध पत्र (एलआर) संयुक्त राज्य अमेरिका को भेजा जा रहा है। स्वीडन क्यों नहीं? आखिरकार, यह सबसे बड़ी जांच है। मुझे यह अजीब लगता है कि भारतीय जांचकर्ता स्वीडिश जांचकर्ताओं से संपर्क नहीं करना चाहते। क्यों?’’

भाषा शफीक नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments