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Friday, 22 November, 2024
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‘आंखों पर पट्टी बांधी, बिजली के झटके दिए’, अरुणाचल के युवक ने बताई चीनी सैनिकों के जुल्म की कहानी

17 वर्षीय मिरियम टैरॉन को 18 जनवरी को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने दोस्त के साथ लुंगटा जोर इलाके में शिकार यात्रा के दौरान उठाया था. 10 दिन बाद उन्हें भारतीय सेना के हवाले कर दिया गया.

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नई दिल्ली: पिछले महीने चीनी सेना ने कथित तौर पर अरुणाचल प्रदेश के जिस 17 साल के लड़के को अगवाकर वापस लौटाया था, उसने दावा किया है कि उसे बिजली के झटके दिए गए थे.

दिप्रिंट से फोन पर बात करते हुए, मिरियम टैरॉन ने उन्हें उठाए जाने के बाद के समय के बारे में बताया, टैरॉन ने कहा, ‘वे मेरी आंखों पर पट्टी बांधकर मुझे अपने शिविरों में ले गए. वहां ले जाकर उन्होंने मुझे लात मारी और बिजली के झटके देने वाली छड़ी का इस्तेमाल कर मुझे झटके दिए. पहले मेरे पीछे और फिर मेरी पीठ पर.’

दिप्रिंट तेजपुर के एक रक्षा मंत्रालय के जनसंपर्क अधिकारी के संपर्क में गए लेकिन वे टैरॉन के अकाउंट की पुष्टि करने में असमर्थ थे.

राज्य के ऊपरी सियांग जिले के जिदो गांव के रहने वाले टैरॉन को 18 जनवरी को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने उस समय उठाया था, जब वह लुंगटा जोर इलाके में अपने दोस्त के साथ शिकार की यात्रा पर था.

हालांकि, चीन ने अपहरण के आरोप से इनकार करते हुए कहा कि वह केवल “अवैध सीमा प्रवेश और निकास पर नकेल कसता है.

टैरॉन के अपहरण की खबर तब वायरल हुई जब अरुणाचल पूर्व से बीजेपी के सांसद तापीर गाओ ने 19 जनवरी को इस बारे में ट्वीट कर सरकार से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया.

फिर, 26 जनवरी को, अरुणाचल प्रदेश के सांसद और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भारतीय सेना और पीएलए के बीच “हॉटलाइन एक्सचेंज” के बारे में ट्वीट किया था, जिसको लेकर कहा गया था कि पीएलए ने
‘सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी’

इसके एक दिन बाद टैरॉन को वाचा-दमाई इंटरेक्शन पॉइंट पर लौटा दिया गया.

पीएलए शिविरों में 10 दिन

टैरॉन ने बताया कि वह और उनका दोस्त जॉनी यायिंग सुबह अपने गांव से 40 किमी दूर लुंगटा जोर के लिए निकले थे, उन्होंने आधी दूरी बाइक से और बाकी की दूरी जंगल के रास्ते तय की. जब वे वहां पहुंचे तब तक शाम में 6.30 बज चुके थे.

टैरॉन ने बताया, ‘हम कुछ भी नहीं देख सके. हम किसी भी शिकार (खेल) की तलाश में एक मशाल लेकर चल रहे थे. वे (पीएलए) हमें छिपकर से देख रहे थे, अचानक ही वर्दी पहने आदमी हमारे सामने आ गए. वे लगभग 15 लोग थे.’

टैरॉन ने बताया कि इस बीच उनका दोस्त यायिंग भागने में सफल रहा लेकिन खुद वह पकड़े गए.
वो कहते हैं, ‘उन्होंने मुझसे बात करने की कोशिश की लेकिन मैं उनकी बात समझ नहीं पाया. मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि मैं यहां सिर्फ शिकार करने आया हूं.’

इसके बाद उन्हें आंखों पर पट्टी बांधकर एक शिविर में ले जाया गया. जहां वह एक सप्ताह से ज्यादा समय तक कैद रहे. आंखों पर लगी पट्टी कभी नहीं हटाई गई. इसलिए टैरॉन अपने आस-पास कुछ भी नहीं देख पाए. उन्होंने कहा, ‘मैं सोचता रहा कि मैं मरने वाला हूं और मैं अपने परिवार से नहीं मिल पाऊंगा.’

उन्होंने बताया, ‘दूसरे दिन उन्होंने मुझे खाना दिया – चावल, चिकन. जब मुझे बाथरूम जाना होता था, तो मैं इशारा करता था और वे मेरी सहायता करते थे.’

आखिरकार, उन्हें एक वाहन द्वारा दूसरे शिविर में ले जाया गया, और एक दिन बाद भारतीय सेना को सौंप दिया गया.

परिवार की परीक्षा

वे 10 दिन टैरॉन के परिवार के लिए भी एक कठिन परीक्षा की तरह थे. टैरॉन के पिता ने ओपांग कहा, ‘हमें उसकी जिंदगी की फिक्र थी. मेरी पत्नी की हालत बहुत खराब थी उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.

यह ओपांग था जिसने यायिंग द्वारा उसे अपने बेटे के “अपहरण” के बारे में बताए जाने के बाद प्राथमिकी दर्ज की थी, और स्थानीय अधिकारियों के साथ-साथ सांसद तपीर गाओ को भी सूचित किया था.

ओपांग ने कहा, ‘आप सोच सकते हैं कि हमें कैसा लगा होगा, यह देखते हुए कि जब हमारा बेटा दुश्मन के खेमे से वापस आया, तो हर कोई खुशी से रोने लगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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