नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) साल के अंत तक होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से पहले अपने सहयोगियों जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के बीच बढ़ती दरार को पाटने के लिए सामने आ गई है.
बीजेपी सूत्रों के अनुसार, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एलजेपी अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अपने हमलों को हल्का करने की सलाह दी है और युवा नेता से ये भी कहा है कि किसी सियासी दिग्गज का सामना करने से पहले अपनी ताक़त को ‘सही’ तरीक़े से आंक लें.
ऐसा लगता है कि सलाह काम कर गई है, चूंकि शनिवार को सीनियर एलजेपी नेताओं के साथ बैठक करने के बाद, जेडी(यू) को लेकर चिराग के रुख़ में कुछ नर्मी नज़र आई.
एलजेपी और जेडी(यू) के बीच रिश्तों में पिछले कुछ महीनों से खिंचावट रही है. चिराग मुख्यमंत्री बनने की अपनी आकांक्षा को बिल्कुल भी छिपा नहीं रहे हैं और अकेले दम पर विधान सभा चुनावों में जाने की धमकी तक दे रहे हैं.
ये मतभेद सीटों के बटवारे को लेकर रहे हैं, जिसमें केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के बेटे चिराग, एलजेपी के लिए एक बड़ी भूमिका चाह रहे हैं और उन्होंने नीतीश पर मनमाने ढंग से काम करने का आरोप भी लगाया है.
सूत्रों ने कहा कि बीजेपी पिछले हफ्ते उस समय दख़ल दिया, जब चिराग नीतीश के खिलाफ शिकायतें लेकर, नड्डा के पास गए.
बीजेपी के पास पहुंचे चिराग पासवान
सूत्रों ने बताया कि बृहस्पतिवार को चिराग ने बीजेपी अध्यक्ष नड्डा से बात की, और ‘नीतीश कुमार के मनमाने तरीक़े’ की शिकायत की. उनका कहना था कि नीतीश ने उनके पत्र का जवाब नहीं दिया और ये भी कहा कि ‘अगर उनके सम्मान की रक्षा नहीं होती, तो उनकी पार्टी अकेले दम पर बिहार चुनाव लड़ने को तैयार है.’
सूत्रों के मुताबिक़ नड्डा ने उन्हें ‘कहासुनी में संयम बनाए रखने’ और अपनी शक्ति का सही से आंकलन करने की सलाह दी. सूत्रों ने कहा कि चुनावों में जाने से पहले, बीजेपी नीतीश को बिल्कुल भी नाराज़ नहीं करना चाहती.
नीतीश कैबिनेट के एक बीजेपी नेता ने कहा, ‘दोनों दलों के बीच कुछ मसले हैं, लेकिन बड़ी बात ये है कि एलजेपी ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. इस पर सही समय पर विचार किया जाएगा, लेकिन चिराग को दिमाग़ में रखना होगा, कि उनकी पार्टी की वास्तविक ताक़त क्या है.’
‘राजनीति में महत्वाकांक्षा रखना स्वाभाविक है, लेकिन वो ऐसे लीडर के सामने खड़े हैं, जिसे सियासत में 35 साल से ज़्यादा हो गए हैं. वो तेजस्वी या उसी आयु वर्ग के किसी और लीडर के खिलाफ लड़ सकते हैं, लेकिन नीतीश के नहीं. उन्हें ये समझना होगा.’
बीजेपी नेता के अनुसार, ‘सीनियर पासवान इस वास्तविकता को समझते हैं, लेकिन जूनियर अपनी पार्टी का विस्तार करने की जल्दबाज़ी में हैं.’
‘पासवान एक अहम सहयोगी हैं, लेकिन नीतीश सरकार के मुखिया हैं, और बीजेपी बिना किसी राजनीतिक उद्देश्य के, नीतीश को नाराज़ नहीं करना चाहती.’
अनेक मतभेद
फिलहाल स्थिति ये है कि राज्य की सियासत में एलजेपी एक हाशिए की खिलाड़ी है. 2015 के विधान सभा चुनावों में, एलजेपी ने राज्य की 243 सीटों में से 45 पर चुनाव लड़ा. लेकिन केवल 2 सीटें ही जीत पाई. थोड़े समय अलग रहने के बाद, 2017 में जब नीतीश एनडीए में फिर वापस आए, तो उन्होंने चिराग के चाचा पशुपतिनाथ पारस को मंत्री बना दिया, लेकिन चूंकि वो 2019 में लोकसभा के लिए चुन लिए गए, इसलिए उसके बाद से राज्य के मंत्रियों में, एलजेपी का कोई सदस्य नहीं रहा है.
एलजेपी और जेडी(यू) के बीच मतभेद इस बात को लेकर हैं कि चिराग सरकार में ज़्यादा दख़ल और आगामी चुनावों में, अपनी पार्टी के लिए 40 सीटें मांग रहे हैं. लेकिन माना जा रहा है कि नीतीश लिए तैयार नहीं हैं. सूत्रों के अनुसार, वो एलजेपी को 25 से ज़्यादा सीटें नहीं देना चाहते.
इस साल के शुरू से ही चिराग ने कई मुद्दों को लेकर नीतीश सरकार पर हमले किए हैं- कोविड-19 लॉकडाउन से उत्पन्न प्रवासी संकट से लेकर राज्य में क़ानून व्यवस्था की स्थिति तक- और जेडी(यू) ने भी पलटवार किए हैं.
ये दरार उस समय और बढ़ गई जब चिराग ने कोविड-19 पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दस मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बातचीत का एक अंश उठाकर ट्वीट कर दिया, जिसमें पीएम ने कहा था कि बिहार, उत्तरप्रदेश और गुजरात को टेस्टिंग बढ़ाने की ज़रूरत है. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘एलजेपी शुरू से ही मांग करती आ रही है, कि बिहार में टेस्टिंग बढ़ाई जानी चाहिए. पीएम के हस्तक्षेप के बाद हमें उम्मीद है, कि बिहार सरकार टेस्टिंग की दर में इज़ाफा करेगी.’
सीनियर जेडी(यू) लीडर और सांसद ललन सिंह ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘एनडीए का हिस्सा होते हुए भी’ चिराग विपक्ष का रोल निभा रहे हैं. संस्कृत के प्रसिद्ध कवि कालिदास के जीवन के एक मशहूर क़िस्से की मिसाल देते हुए जिसे अकसर अपने ही हित को नुक़सान पहुंचाने से बचने की, चेतावनी के तौर पर सुनाया जाता है. ललन ने कहा, ‘लेकिन नीतीश कुमार को इसकी चिंता नहीं है, और उनका ध्यान अपने काम पर है. कालिदास भी उसी टहनी को काट रहे थे जिसपर वो बैठे थे.’
एलजेपी प्रवक्ता मोहम्मद अशरफ ने तब ललन को ‘सूरदास’ की संज्ञा दी- प्राचीन भारत के एक और दिग्गज कवि, जो नेत्रहीन पैदा हुए थे.
प्रवक्ता ने आगे कहा, ‘चिराग पासवान ने वही दोहराया, जो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था…ललन सिंह सूरदास हो गए हैं, जो अच्छे और बुरे में अंतर नहीं कर सकते. नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के आशीर्वाद से ही बिहार के मुख्यमंत्री हैं, और वो उन्हीं पर उंगली उठा रहे हैं.’
इससे पहले 25 जून को चिराग ने, एक विडियो कॉनफ्रेंस में अपने पार्टी पदाधिकारियों से कहा था कि उनकी पार्टी केंद्र में एनडीए का हिस्सा है, बिहार में नहीं (चूंकि पार्टी का कोई मंत्री नहीं है). इसलिए उनका कहना था कि पार्टी, 2020 के विधान सभा चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ने को आज़ाद है. दूसरी बातों के अलावा उन्होंने एक दिन मुख्यमंत्री बनने की अपनी आकांक्षा का भी इज़हार किया.
लेकिन नड्डा से मिलने के बाद चिराग ने, ललन सिंह को अपना ‘अभिभावक’ बताया और सरकार से समर्थन वापस लेने के अपने दावों का कोई ज़िक्र नहीं किया.
शनिवार को मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं यहां एलजेपी नेताओं के साथ, कोरोनावायरस और बाढ़ से राहत के मुद्दों पर बातचीत करने आया हूं. मैं इन मुद्दों को भविष्य में भी उठाउंगा…मुझे विधानसभा चुनावों की चिंता नहीं है.’
एक एलजेपी सांसद ने कहा कि छोटे दलों को बरबाद कर देना नीतीश की ‘पुरानी राजनीति’ है. ‘उन्होंने सुनिश्चित किया कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से बाहर हो जाएं, और अब वो एलजेपी के साथ भी यही तरकीब अपना रहे हैं, लेकिन अगर चीज़ें हमारे हिसाब से नहीं चलीं, तो हम स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने को तैयार हैं.’
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