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Friday, 29 March, 2024
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हिमाचल में चुनाव से पहले ‘शहरी MGNREGA’ लाने की तैयारी में है BJP, बेरोजगारों को मिलेगी सहायता

BJP राज्य में कोविड के बाद पैदा हुए बेरोज़गारी के संकट से निपटने की तैयारी कर रही है, जो इसी साल होने वाले असेम्बली चुनावों में, उसे नुक़सान पहुंचा सकता है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को ज्ञात हुआ है, कि इसी साल होने वाले असेम्बली चुनावों से पहले, हिमाचल प्रदेश की बीजेपी सरकार एक ऐसा क़ानून लाने जा रही है, जो शहरी इलाक़ों के परिवारों को 120 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की गारंटी देगा.

क़ानून का उद्देश्य कोविड महामारी के बाद, रोज़गार जाने से पैदा हुए शहरी संकट को कम करना है- एक ऐसा मसला जो, बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, आने वाले प्रदेश चुनावों में पार्टी की संभावनाओं के लिए ख़तरा बन सकता है.

शहरी क्षेत्रों के लिए मनरेगा की तर्ज़ का ये क़ानून, मौजूदा मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना (एमएमएसएजीवाई) की जगह लेगा, जिसका ऐलान राज्य ने 2020 में किया था. ये क़दम एक क़ानूनी गारंटी के साथ बेरोज़गारी से निपटने का सरकार का एक प्रयास है.

2005 में केंद्र द्वारा पारित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), ऐसे हर ग्रामीण परिवार को जिसका एक वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करता है, एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का, मज़दूरी रोज़गार उपलब्ध कराता है.

हिमाचल शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने दिप्रिंट से कहा, ‘पीएम नरेंद्र मोदी की निगरानी और नेतृत्व में, बीजेपी सरकार ने इसी तरह का एक क़ानून बनाने का निर्णय किया है, और हमारा प्रदेश ऐसा क़दम उठाने वाला पहला राज्य होगा.’

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जयराम ठाकुर की हिमाचल सरकार के एक सूत्र ने कहा, ‘क़ानून का मसौदा अपनी अंतिम अवस्था में है’, और इसमें प्रावधान है कि अगर क़ानून के मुताबिक़, मांगे जाने पर काम उपलब्ध नहीं कराया जाता, तो उस स्थिति में बेरोज़गारी भत्ता दिया जाएगा’.

सूत्र ने आगे कहा, ‘ऐसा विधेयक लाने के बारे में क़ानूनी जांच की जा रही है ताकि शहरी परिवारों को 120 दिन के रोज़गार की गारंटी दी जा सके. इसे इसी महीने जारी किया जा सकता है और देरी होने की सूरत में इसे मॉनसून सत्र में लाया जा सकता है. ये क़ानून शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी की समस्या से निपटने के लिए एक आधारभूत आय की सुरक्षा उपलब्ध कराएगा और ये हर शहरी परिवार के लिए होगा, जहां एक वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए तैयार हो.’

राज्य शहरी विकास मंत्रालय के निदेशक मनमोहन शर्मा ने कहा कि, ‘हिमाचल प्रदेश पहला राज्य है जो ऐसा क़ानून लाने की तैयारी कर रहा है कि जो रोज़गार मुहैया न करा पाने की सूरत में सरकार को क़ानूनी रूप से बाध्य करेगा, कि 120 दिनों के लिए रोज़गार या मज़दूरी भत्ता उपलब्ध कराया जाए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ राज्यों ने शहरी क्षेत्रों में रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए स्कीमें शुरू की हैं, लेकिन वो गारंटी नहीं हैं.’

कोविड के बाद शहरी बेरोज़गारी की समस्या से निपटने के लिए, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु जैसे राज्यों में योजनाएं शुरू की गई हैं और राजस्थान ने एक शहरी रोज़गार गारंटी स्कीम लाने का ऐलान किया है, जिसका 800 करोड़ रुपए का बजट होगा. केरल ऐसा पहला राज्य था जिसने 2010-11 में ही इस तरह का प्रावधान कर लिया था.


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शहरी रोज़गार गारंटी की ज़ोरदार मांग

चूंकि कोविड लॉकडाउन में फैक्ट्रियां और रोज़गार के स्थल बंद कर दिए गए थे इसलिए 2020 के प्रवासी संकट के दौरान लाखों की संख्या में लोगों को- अक्सर पैदल ही- अपने गृह राज्यों को लौटते देखा गया.

बेरोज़गारी पिछली सरकारों के लिए भी चुनौती रही है, लेकिन कोविड के बाद इसकी बढ़ती संख्या ने, मौजूदा बीजेपी सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर दीं- राज्य के रोज़गार कार्यालयों में कथित रूप से क़रीब 9 लाख लोग पंजीकृत हैं. 2021-22 की जून तिमाही के एक श्रम बल सर्वेक्षण में ख़ुलासा हुआ कि राज्य के सभी आयु वर्गों में बेरोज़गारी की दर 7.8 प्रतिशत से बढ़कर 9.6 प्रतिशत पहुंच गई.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के एक सर्वेक्षण में पता चला है कि देश भर के शहरी क्षेत्रों में जनवरी-मार्च 2021 में बेरोज़गारी दर 9.3 प्रतिशत पहुंच गई, जो पिछले साल की इसी अवधि में 9.1 प्रतिशत थी.

एक बीजेपी नेता ने कहा: ‘हिमाचल एक छोटा राज्य है जहां उद्योग दो-तीन क्षेत्रों तक सीमित हैं. पर्यटन और दवा कारख़ाने रोज़गार पैदा करते हैं, लेकिन दो वर्षों के कोविड चक्र ने हर उद्योग और रोज़गार सृजन को प्रभावित किया है. चुनावों से पहले, बेरोज़गारी संकट एक बड़ा असर डाल सकता है और समय रहते इससे निपटना हमारी ज़िम्मेदारी है’.

महामारी फैलने के तुरंत बाद राज्य में एमएमएसएजीवाई शुरू कर दी गई. भारद्वाज ने कहा, ‘सभी शहरी स्थानीय इकाइयों को निर्देश जारी किए गए कि योजना पर कारगर ढंग से अमल किया जाए. आज, 5,000 से अधिक लोग इससे लाभान्वित हो चुके हैं’.

एमएमएसएजीवाई के अंतर्गत, फरवरी 2022 तक 7,593 आवेदन स्वीकृत किए गए थे और इनमें से आधे महिलाओं की ओर से थे- एक ऐसा वोट बैंक जो लंबे समय से ‘बीजेपी के प्रति निष्ठावान’ रहा है. एक दूसरे वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘महिलाएं हाल में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक बनकर उभरी हैं, इसलिए वोटिंग के पैटर्न को देखते हुए, ऐसे हस्तक्षेप की ज़रूरत थी’.

अपेक्षा की जा रही है कि हिमाचल का ये आगामी क़ानून, आरएसएस से संबद्ध भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) और स्वदेशी जागरण मंच की लंबे समय से चली आ रही ‘शहरी मनरेगा’ की मांग को भी पूरा करेगा. ये भी अपेक्षा है कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर शहरी रोज़गार गारंटी क़ानून की मांग को भी बल मिलेगा.

बीएमएस के बिनॉय सिन्हा ने क़दम का स्वागत किया लेकिन कहा: ‘हम राष्ट्रीय स्तर पर एक शहरी मनरेगा चाहते हैं, जिसका प्रस्ताव हमने 2020 और 2021 के बजट परामर्श के दौरान वित्त मंत्री (निर्मला सीतारमण) को भी दिया था. हमने कोविड के दौरान प्रवासी संकट को देखा है और अगर हम वास्तव में ग़रीबी और बेरोज़गारी से निपटना चाहते हैं, तो बेहतर है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक क़ानून लाया जाए.’

2021 में, श्रम पर स्थायी समिति ने अपनी 25वीं रिपोर्ट में केंद्र से शहरी श्रमबल के लिए मनरेगा की तर्ज़ पर एक क़ानून लाने के लिए कहा था. लेकिन उसी साल, वित्त मंत्रालय ने संसद में इससे इनकार किया कि केंद्र सरकार ‘शहरी मनरेगा’ लाने के एक प्रस्ताव पर विचार कर रही है.


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दूसरे राज्यों की योजनाएं

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी बेंगलुरू में सस्टेनेबल इकॉनमी के प्रोफेसर अमित बसोले, जिन्होंने शहरी मनरेगा पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, ने कहा: ‘कुछ राज्यों ने शहरी मनरेगा की तरह स्कीमें तैयार की हैं, लेकिन उन्हें बंद किया जा सकता है, चूंकि उनमें कोई क़ानूनी गारंटी नहीं है.’

केरल ने 2010-11 में 200 करोड़ रुपए के बजट के साथ, अय्यनकली शहरी रोज़गार गारंटी स्कीम (एयूईजीएस) शुरू की थी और कुशल युवाओं को निजी उद्यमों में शामिल करने के लिए, एक इंटर्नशिप प्रोग्राम का प्रस्ताव रखा था, जिसमें उन उद्यमों को सब्सिडीज़ के तौर पर सरकारी पैसा दिया जाना था.

तत्कालीन सीएम कमलनाथ द्वारा 2019 में लॉन्च की गई, मध्यप्रदेश की ‘युवा स्वाभिमान योजना’ में केवल युवाओं के लिए 100 दिन के रोज़गार की गारंटी दी गई है.

ओडिशा की मुक्ता योजना कोविड के दौरान 114 शहरी स्थानीय इकाइयों में शुरू की गई थी और 2021 में स्थानीय निकाय चुनावों से पहले उसे विस्तार दे दिया गया था. ओडिशा सरकार के आंकड़ों के अनुसार इसके लॉन्च के बाद से राज्य ने 13 लाख दिनों का रोज़गार पैदा किया है.

निखिल डे ने, जो कि मनरेगा को लाने वालों में से एक थे, कहा कि जिन राज्यों ने इस तरह की योजनाएं शुरू की हैं, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है- कम बजट आवंटन. उन्होंने कहा, ‘व्यापक कवरेज के लिए उन्हें अधिक बजट की ज़रूरत है, और ये केवल केंद्र सरकार के अंतर्गत हो सकता है’.

बसोले को लगता है कि हिमाचल का प्रस्तावित क़ानून, आगे का रास्ता दिखाता है. ‘अच्छा है कि हिमाचल एक क़ानून ला रहा है और एक राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारंटी एक्ट की दिशा में ये एक अगला क़दम है. हो सकता है कि राज्य के अनुभव की समीक्षा करने के बाद केंद्र एक राष्ट्रीय योजना तैयार कर सकता है. कोविड ने साबित किया है कि सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के मामले में ऐसी स्कीमें कारगर साबित हो सकती हैं’.

केरल के ‘शहरी मनरेगा’ के अनुभव को साझा करते हुए,राज्य के शहरी विकास सचिव अरुण विजयन ने कहा: ‘हमारा अनुभव बहुत समृद्ध रहा है, और ये दिखाता है कि (रोज़गार के) मानव दिवसों का 100 प्रतिशत सृजन और उपयोग हुआ. महामारी के दौरान आजीविकाओं को बचाने में इससे बहुत सहायता मिली.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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