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Friday, 22 November, 2024
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राजनीति से ज्यादा सामाजिक कार्यों और मातृत्व को तवज्जो: कैसे काम करती है RSS की महिला विंग

हालांकि, आरएसएस की तुलना में राष्ट्र सेविका समिति का आकार बहुत छोटा है लेकिन समर्पित वालंटियर का नेटवर्क अपने कार्यक्रमों के जरिये देशभर में महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण में जुटा है.

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नई दिल्ली: गृहिणी, प्रोफेसर, डॉक्टर, अपराध विज्ञान में एमएससी, राजनीति विज्ञान में एमए—राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की महिला शाखा राष्ट्र सेविका समिति लगभग हर क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं को अपने साथ जुड़ने के लिए आकृष्ट करती है.

1936 में स्थापित यह हिंदू राष्ट्रवादी महिला संगठन दशकों से संघ के ढांचे में अपेक्षाकृत लो-प्रोफाइल बना रहा है. कई महिलाएं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुईं हैं, कुछ केंद्र और राज्य सरकारों में अपनी जगह बना रही हैं लेकिन लेकिन इनमें कोई समिति से जुड़ा प्रमुख नाम नहीं है.

आरएसएस की तुलना में राष्ट्र सेविका समिति का आकार काफी छोटा है. इसकी प्रमुख वी. शांता कुमारी (जिन्हें शांताक्का नाम से भी जाना जाता है) ने दिप्रिंट को बताया कि विभिन्न राज्यों में संघ के लगभग 3,000 प्रचारक हैं, जबकि समिति में केवल 52 प्रचारक और 150 विस्तारिकाएं हैं. हालांकि, समिति की वेबसाइट के मुताबिक इसकी 2,700 से अधिक शाखाओं में 55,000 से अधिक सेविकाएं हैं.

सेविकाएं वालंटियर होती हैं जो समिति के लिए काम करती हैं, जबकि विस्तारिकाएं अल्पकालिक सदस्य होती हैं जो कुछ साल के लिए संगठन में सक्रिय रहती है. हालांकि, प्रचारिकाएं वे सदस्य होती हैं जो अपना बाकी जीवन ब्रह्मचर्य और संगठन के कार्यों के लिए समर्पित करने की शपथ लेती हैं. इनकी उम्र 25 से 70 साल के बीच कुछ भी हो सकती है.

70 वर्षीय कुमारी बेंगलुरु के एक आरएसएस परिवार से ताल्लुक रखती हैं. वह गणित में एमएससी के बाद बतौर प्रोफेसर काम करती थीं. करीब 30 साल पहले उन्होंने समिति प्रचारिका के तौर पर शपथ लेने का फैसला किया और संगठन में आगे बढ़ती गईं. फिलहाल, वह नागपुर, महाराष्ट्र में बसी हुई हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि समिति तीन मूल सिद्धांतों पर चलती है—‘मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व’

उन्होंने कहा, ‘हम प्रचारकों की संख्या, या फिर राजनीति में उनके योगदान और भाजपा में प्रतिनिधित्व के मामले में संघ से कोई मुकाबला नहीं कर सकते, लेकिन सेविका समिति जीजा माता (छत्रपति शिवाजी की मां जीजाबाई भोसले) के आदर्शों पर चलती है, जिन्होंने शिवाजी महाराज का पालन-पोषण किया और उन्हें प्रशिक्षण दिया.’

कुमारी ने कहा, ‘हजारों की संख्या में गृहिणियां हमारी सदस्य हैं जो अपना घर-परिवार संभालने और अपने बच्चों की परवरिश के बाद सामाजिक कार्यों में योगदान देती हैं. हम उनसे कभी भी यह नहीं कहते कि शाखाओं में आएं या अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध समिति का हिस्सा बनें. मातृत्व और कर्तव्य हमारी प्राथमिकताएं हैं और यही महिलाओं में नेतृत्व के गुण उत्पन्न करते हैं.’


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फोकस में क्यों है समिति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस दोनों ने इस वर्ष दो अलग-अलग आयोजनों में महिला सशक्तिकरण के महत्व पर विशेष जोर दिया.

मोदी ने 15 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान ‘नारी शक्ति’ की बात की और कहा, ‘लैंगिक समानता एकता का एक अहम मानदंड है.’ इसके बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इस महीने की शुरुआत में ‘नारी शक्ति’ और ‘मातृ शक्ति’ का जिक्र किया.

भागवत नागपुर स्थित संगठन मुख्यालय में विजयादशमी के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में आरएसएस के सदस्यों को संबोधित कर रहे थे. सबसे अहम बात यह है कि 97 वर्ष पहले अस्तित्व में आए इस संगठन के लिए यह पहला मौका था जब कार्यक्रम में किसी महिला—पर्वतारोही संतोष यादव—को मुख्य अतिथि बनाया गया था.

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय सेविका समिति दोनों ही ‘व्यक्ति निर्माण’ की शाखा पद्धति पर अलग-अलग ढंग से अमल कर रहे हैं. अन्य सभी गतिविधियां पुरुष और महिलाएं समान रूप से संचालित करते हैं. भारतीय परंपरा हमेशा पूरकता के इसी दृष्टिकोण पर केंद्रित रही है. हालांकि, इस महान परंपरा को भुला दिया गया और हमारी महिला शक्ति ‘मातृ शक्ति’ के लिए कई सीमाएं निर्धारित कर दी गईं. इन झूठी प्रथाओं को हमारे देश में बार-बार हुए आक्रमणों ने और मजबूती दी और समय के साथ ये बाध्यताएं एक आदत बनती चली गईं.’

आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह विचार एकदम निराधार है कि आरएसएस ‘महिला विरोधी’ है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘आरएसएस को ‘महिला विरोधी संगठन’ कहे जाने को लेकर विवाद होते रहे हैं. कहा जाता है कि संघ महिलाओं को बढ़ावा नहीं देता या उन्हें आगे नहीं आने देता. राहुल गांधी भी उन लोगों में शामिल हैं जो गलत सूचनाओं के आधार पर संघ पर सवाल उठाते हैं.’

पदाधिकारी ने आगे कहा कि संघ की महिला शाखा की ‘संरचना भी पुरुषों के संगठन की तरह ही है.’

उन्होंने कहा, ‘सेविका समिति की भी रोजाना शाखाएं लगती हैं और उसमें भी विस्तारिका और प्रचारिका जैसे पदानुक्रम का पालन किया जाता है. हम महिलाओं को घर से बाहर निकलने और सांगठनिक कार्य करने के लिए मजबूर नहीं करते. कुछ अपना परिवार संभालने के साथ समाज के लिए काम करती हैं, जबकि कुछ सामाजिक कार्यों के लिए अपना जीवन समर्पित कर देती हैं और प्रचारिका बन जाती हैं. यही कारण है कि हम उन्हें राजनीति की ओर नहीं धकेलते. वे आमतौर पर देशभर में सामाजिक कार्य और महिला सशक्तिकरण में अधिक सक्रिय हैं.’

कुमारी ने भी बताया कि कैसे सेविकाओं के लिए समिति की गतिविधियों का हिस्सा बनना हमेशा आसान नहीं होता है.

कुमारी ने कहा, ‘हम महिलाओं से अपना घर-परिवार छोड़कर हमारे साथ आने को नहीं कह सकते. लेकिन हमने 2025 तक कम से कम 1,000 विस्तारिकाओं का एक मजबूत समूह तैयार करने और उसे आगे बढ़ाने का कार्यक्रम शुरू किया है. महिलाओं के लिए यह आसान नहीं है कि अपने परिवार को छोड़कर संगठन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दें. लेकिन हम युवा महिलाओं से माता-पिता को समझाने को कहते हैं और उन्हें राष्ट्र निर्माण में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं.’

समिति का क्या है कार्य

संघ की तरह समिति भी अपनी प्रचारिकाओं को सांगठनिक कार्यों पर अमल के लिए विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में भेजती है. यह ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए बहु-स्तरीय कार्यक्रम चलाती है, जिसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण और स्वास्थ्य प्रशिक्षण शामिल है. इसमें मासिक धर्म स्वच्छता और गर्भावस्था के दौरान देखभाल भी शामिल है.

समिति के देशभर में 30 हॉस्टल चलते हैं, जिसमें लगभग 6,000 लड़कियां रहती हैं.

समिति प्रचार प्रमुख (प्रवक्ता) सुनीला सोवानी ने बताया, ‘सिर्फ पूर्वोत्तर राज्यों में हमारे लगभग 18 गर्ल्स हॉस्टल हैं. प्रचारिकाएं हॉस्टल में रहती हैं और प्रवास पर भी जाती हैं. संघ प्रचारकों की तरह प्रचारिकाओं को भी आम तौर पर सांगठनिक कार्यों के लिए अपने मूल राज्य से दूर भेज दिया जाता है. शाखाएं सामान्तय: एक ही तरह की होती हैं. हम सेल्फ डिफेंस प्रोग्राम चलाते हैं और फिजिकल और सोशल ट्रेनिंग देते हैं.’

आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘सार्वजनिक जीवन में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी आम तौर पर कम होती है क्योंकि उन पर परिवार निर्माण की भी जिम्मेदारी होती है. सेविका समिति की (संगठन के) पूरे ढांचे में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है, और यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान देती है.’

(इस खबर लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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