नयी दिल्ली, 27 जून (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक सांसद ने उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 को निरस्त करने की मांग उठाते हुए राज्यसभा में एक गैर सरकारी विधेयक पेश किए जाने की अनुमति मांगी है।
भाजपा सांसद की ओर से यह कदम वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के एक हिस्से में ‘‘शिवलिंग’’ होने के दावों और प्रतिदावों के साथ ही मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद को लेकर जारी ताजा विवादों के बीच उठाया गया है।
उपासना या पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 के मुताबिक 15 अगस्त, 1947 के समय जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में होगा, उसके बाद वह वैसा ही रहेगा और उसकी प्रकृति या स्वभाव नहीं बदली जाएगी। वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के शासनकाल में यह कानून पारित हुआ था।
अयोध्या में रामजन्भूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल को इस अधिनियम से छूट दी गई थी। इस छूट के चलते अयोध्या मामले में इस कानून के लागू होने के बाद भी सुनवाई चलती रही और अंतत: अदालत के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
उत्तर प्रदेश से भाजपा के राज्यसभा सदस्य हरनाथ सिंह यादव ने संसद के आगामी मानसूत्र में उपास्थना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 को निरस्त करने के प्रावधान वाले एक गैर सरकारी विधेयक पेश किए जाने की के लिए राज्यसभा सचिवालय को एक नोटिस दिया है।
पीटीआई-भाषा के पास उपलब्ध इस नोटिस की प्रति के मुताबिक यादव ने दावा किया है कि 1991 का अधिनियम समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का तो हनन करता ही है, बल्कि यह नागरिकों को संविधान प्रदत्त धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी की भी अवहेलना करता है।
नोटिस के मुताबिक यादव ने कहा, ‘‘उपास्थना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 अदालतों को ऐसी किसी भी याचिका को स्वीकार करने से रोकता है, जो धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त, 1947 की यथास्थिति को बदलने से जुड़ी हो। इस प्रकार यह कानून न्यायिक समीक्षा के प्रावधानों का भी उल्लंघन करता है, जो कि हमारे संविधान की एक बुनियादी विशेषता है।’’
पीटीआई-भाषा से बातचीत में यादव ने यह पुष्टि की उन्होंने इस कानून को निरस्त करने के विषय पर एक गैर सरकारी विधेयक पेश करने का नोटिस दिया है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि संसद के आगामी मानसून सत्र में उन्हें यह विधेयक पेश करने का मौका मिलेगा और इस पर चर्चा हो सकेगी।
यादव ने दावा किया कि 1991 का अधिनियम न्यायिक समीक्षा पर ‘‘अनुचित रोक लगाकर पूजा स्थलों पर आक्रांताओं के अवैध अतिक्रमण और उनके बर्बर कृत्यों’’ को न्यायोचित ठहराता है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह स्पष्ट रूप से भारत के नागरिकों के वैध अधिकारों के विरुद्ध विधायी शक्ति के अतिक्रमण को दर्शाता है।’’
उन्होंने इस नोटिस में उल्लेख किया है कि जहां राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है वहीं वह वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद मामलों में यथास्थिति बरकरार रखने का प्रावधान करता है।
नोटिस के मुताबिक यादव ने कहा, ‘‘यह विधेयक (उनका गैरसरकारी विधेयक) उपास्थना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 (1991 के अधिनियम संख्या 42) को निरस्त करने की मांग करता है।’’
ज्ञात हो कि करीब 31 साल पहले 1991 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार उपासना स्थल विधेयक (विशेष उपबंध) लेकर आई थी तब देश में राम मंदिर आंदोलन अपने उफान पर था।
राज्यसभा सचिवालय यदि जांच के बाद यादव के नोटिस को स्वीकार कर लेता है तो उन्हें इस गैर सरकारी विधेयक को उच्च सदन में पेश किए जाने की अनुमति मिल जाएगी।
संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई से 12 अगस्त तक होने की संभावना है।
संसद के ऐसे सदस्य जो केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री नहीं हैं, उन्हें संसद का गैर सरकारी सदस्य कहा जाता है और इन सदस्यों द्वारा पेश किये गए विधेयक को गैर सरकारी विधेयक कहते हैं।
इस विधेयक को पेश करने के लिये एक माह के नोटिस के साथ विधेयक के उद्देश्य और कारणों के विवरण की एक प्रति होनी चाहिए। गैर सरकारी विधेयकों को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है।
हालांकि आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो गैर सरकारी विधेयक नजरअंदाज ही किए जाते रहे हैं क्योंकि आम धारणा यह है कि किसी भी गैर सरकारी विधेयक का पारित होना, सरकार की कार्यक्षमता पर प्रश्नचिन्ह उठाता है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद महज एक ही गैर सरकारी विधेयक को राज्यसभा से मंजूरी मिल सकी है। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के सांसद तिरूचि शिवा द्वारा विपरीत लिंगी समुदाय के अधिकारों की रक्षा से संबंधित विषय पर पेश एक गैर सरकारी विधेयक को वर्ष 2015 में राज्यसभा में मंजूरी मिली थी।
यादव को जब यह याद दिलाया गया कि अभी तक केवल एक ही गैर सरकारी विधेयक राज्यसभा से पारित हो सका है तो उन्होंने जवाब दिया, ‘‘यह देश हित से जुड़ा मुद्दा है। हम आशा करते हैं कि इस पर चर्चा होगी और यह पारित भी होगा।’’
राज्यसभा की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक 1952 में अस्तित्व में आने के बाद से आज तक उच्च सदन में कुल 2008 गैर सरकारी विधेयक पेश किए गए हैं। इनमें से 937 विधेयक लैप्स हो गए यानी उनकी मियाद समाप्त हो गई जबकि 97 विधेयक अभी तक लंबित हैं।
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