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Saturday, 4 May, 2024
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BJP MP ने कहा- भारतीय मूल्यों से कम परिचित हैं एकल परिवार, इसीलिए होती हैं ज़्यादा तलाकें

BJP MP सरोज पाण्डेय ने ये टिप्पणियां बृहस्पतिवार को राज्यसभा में फैमिली कोर्ट्स (संशोधन) विधेयक, 2022 को पारित किए जाते समय कीं.

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नई दिल्ली: बीजेपी सांसद सरोज पाण्डेय ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में कहा, कि एकल परिवारों में रहने वाले लोग ‘भारतीय मूल्यों से कम परिचित होते हैं’ जिसके नतीजे में ज़्यादा वैवाहिक झगड़े और तलाक़ें होती हैं. फेमिली कोर्ट्स (संशोधन) बिल 2022, पर बहस में हिस्सा लेते हुए पाण्डेय ने ये भी कहा कि समलैंगिक विवाह ‘पश्चिमी असर’ का परिणाम हैं, और ‘भारतीय संस्कृति’ का हिस्सा नहीं हैं.

फैमिली कोर्ट्स अधिनियम, 1984, राज्यों को परिवार अदालतें स्थापित करने की अनुमति देता है. संशोधन विधेयक हिमाचल प्रदेश और नागालैण्ड में परिवार अदालतों को एक वैधानिक कवर देता है, जो क्रमश: 2019 और 2008 से प्रभावी माना जाएगा, और पूर्व प्रभावी रूप से उनके द्वारा उठाए गए सभी क़दमों को विधिमान्य कर देगा. बिल को लोकसभा में पहले ही पारित कर दिया गया था, और बृहस्पतिवार को इसे राज्यसभा ने भी पास कर दिया.

बिल पर चर्चा के दौरान, छत्तीसगढ़ से बीजेपी की राज्यसभा सांसद पाण्डेय ने कहा, ‘पश्चिमी संस्कृति ने भारतीय संस्कृति बुरी तरह कमज़ोर कर दिया है… संयुक्त परिवारों से एकल परिवारों की ओर एक स्पष्ट बदलाव हो रहा है. संयुक्त परिवारों में किसी एक व्यक्ति की बहुत सी समस्याओं का, परिवार के दूसरे सदस्य ख़याल कर लेते हैं. एकल परिवारों में उसके लिए कोई जगह नहीं होती. इसलिए एकल परिवारों के सदस्य भारतीय मूल्यों से कम परिचित होते हैं, जिसके नतीजे में ज़्यादा तलाक़ और वैवाहिक झगड़े होते हैं…इसलिए परिवार अदालतें और ज़्यादा होनी चाहिएं’.

आगे ये कहते हुए कि देश में परिवार अदालतों की संख्या बढ़ाने से, झगड़ों का तेज़ी से निपटारा सुनिश्चित होगा, सांसद ने कहा, ‘आज 11 लाख से अधिक मामले फैमिली कोर्ट्स में लंबित पड़े हैं. इतने ही परिवार परेशानी में हैं. इसलिए फैमिली कोर्ट्स और अधिक होनी चाहिएं…पारिवारिक झगड़ों को लेकर चल रहे क्लेश हमारी संस्कृति पर बुरा असर डालते हैं’.

‘भारतीय संस्कृति’ के बारे में बोलते हुए, पाण्डेय ने समलैंगिक विवाहों के विषय पर भी बात की, और दावा किया कि ‘एक और तरह की संस्कृति है जो अब देश में देखी जा सकती है. ये भी पश्चिमी प्रभाव का ही परिणाम है. इन दिनों हम अक्सर समलैंगिक शादियों के बारे में सुनते हैं. ये भारतीय संस्कृति नहीं है…’.

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हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में आपसी सहमति से समलैंगिक सेक्स को वैध क़रार दे दिया था, जिसे उससे पहले तक भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अंतर्गत ‘अप्राकृतिक अपराध’ माना जाता था, लेकिन फिर भी समलैंगिक विवाहों को देश में मान्यता हासिल नहीं है.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता सुप्रिया सुले ने, ऐसी शादियों को क़ानूनी रूप देने के लिए, अप्रैल में संसद में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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