ऋषिकेश/हरिद्वार/देहरादून: उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के गंगा भोगपुर गांव में एक पांच सितारा रिसॉर्ट की इमारत के सामने बिना पॉलिश वाले कुछ फर्नीचर बिखरे पड़े हैं. इसके पीछे स्थित आंवला प्रोसेसिंग फैक्ट्री में भीड़ के हमले के निशान भी साफ नजर आ रहे हैं. घने पेड़ों और एक छोटी सी बहती नदी के बीच स्थित यह रिसॉर्ट और फैक्ट्री अब एक क्राइम सीन है, जिसकी निगरानी में सात पुलिसकर्मी तैनात हैं.
वनंत्रा रिसॉर्ट में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करने वाली 19 साल की अंकिता भंडारी गत 18 सितंबर की रात लापता हो गई थी. उसका शव छह दिन बाद चिल्ला नदी बैराज से मिला था.
अंकिता की हत्या के बाद अधिकारियों ने वनंत्रा होटल के लिए बुलडोजर भेजे और कुछ कमरों सहित पूरी इमारत को आगे से ध्वस्त कर दिया गया. हालांकि इस तोड़फोड़ से महत्वपूर्ण फोरेंसिक सबूत नष्ट होने की आशंका है लेकिन उत्तराखंड सरकार ने इसे रिसॉर्ट मालिक पुलकित आर्य के खिलाफ कार्रवाई के अपने संकल्प के संकेत के तौर पर पेश किया है जो कि अंकिता केस में मुख्य आरोपी और एक प्रमुख पूर्व भाजपा नेता का बेटा है. किशोरी की रहस्यमय मौत को लेकर राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा को हरिद्वार और अन्य जगहों पर विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ा है.
दिप्रिंट ने अपनी पड़ताल में पाया कि अब सील की जा चुकी इस प्रॉपर्टी में चल रहे दो वाणिज्यिक प्रतिष्ठान वनंत्राऔर स्वदेश आयुर्वेद नामक फैक्ट्री के संचालन के लिए सरकारी विभागों से कोई अनुमति नहीं मिली थी. रिसॉर्ट कथित तौर पर दो साल से अधिक समय से चल रहा था और दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, राज्य सरकार की मेहरबानी से फैक्ट्री एक दशक से अधिक समय से चल रही थी.
दिप्रिंट को हासिल रिकॉर्ड से पता चलता है कि करीब 14 साल पहले खरीदी गई यह जमीन कृषि कार्यों के लिए थी. हालांकि, पुलकित आर्य ने उसी साल भूमि को गैर-कृषि उपयोग में परिवर्तित करा दिया था, लेकिन उसने कभी भी इस पर एक रिसॉर्ट संचालित करने की अनुमति के लिए आवेदन नहीं किया और फैक्ट्री भी बिना उचित नियामक मंजूरी के ही चल रही थी.
दिप्रिंट ने यमकेश्वर के एसडीएम प्रमोद कुमार, पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी विजय जोगदांडे और जिला पर्यटन अधिकारी प्रकाश खत्री से संपर्क साधने का तमाम प्रयास किया, लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
दिप्रिंट ने आर्य परिवार द्वारा संचालित स्वदेशी आयुर्वेद के निदेशकों से भी संपर्क साधा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. कोई बयान मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
इस बीच, उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (यूटीबीडी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वनंत्रा रिसॉर्ट की तरफ से कोई आवेदन हासिल नहीं हुआ है. नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया, ‘हमें वनंत्रा रिसॉर्ट मालिकों की तरफ से कभी कोई आवेदन नहीं मिला. यह अवैध रूप से चलाया जा रहा था.’ यूटीबीडी पहाड़ी राज्य में रिसॉर्ट चलाने के लिए लाइसेंस जारी करता है.
आर्य के परिसर में स्थित कारखाने को 2020 में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (एमएसएमई) में पंजीकृत कराया गया था. लेकिन कथित तौर पर इसके संचालन के लिए जिला औद्योगिक केंद्र (डीआईसी) की अनुमति नहीं ली गई. अग्नि सुरक्षा और अन्य सभी अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेने और उन्हें जमा करने के बाद डीआईसी की तरफ से ही कारखाना मालिकों को उत्पादन शुरू करने का लाइसेंस दिया जाता है.
डीआईसी अधिकारियों ने बताया कि एमएसएमई मंत्रालय के साथ पंजीकरण के बाद प्रतिष्ठान उत्पादन शुरू कर सकते हैं बशर्ते वे घोषणा करें कि वे एक निर्धारित समय में सभी एनओसी हासिल कर लेंगे. लेकिन आर्य की जमीन पर फैक्ट्री चलाने संबंधी औपचारिकताएं पूरी नहीं की गई थीं.
डीआईसी पौड़ी में प्रभारी महाप्रबंधक, आर.सी. उनियाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि इसके पास एक एमएसएमई रजिस्ट्रेशन नंबर था, लेकिन डीआईसी की मंजूरी के लिए दाखिल आवेदन में कई दस्तावेजों की कमी पाई गई थी. हमने 2020 में कई सवालों के साथ आवेदन लौटा दिया था. इस पर अभी उनका कोई उत्तर नहीं मिला है. नतीजतन, डीआईसी टीम ने यूनिट का फील्ड वेरिफिकेश भी नहीं किया.’ साथ ही उन्होंने कहा कि चूंकि कारखाने को मंजूरी नहीं दी गई है, इसलिए इसके मामले में एमएसएमई को मिलने वाले टैक्स इन्सेन्टिव और अन्य रियायतें भी नहीं दी गई थीं.
फैक्ट्री को लेकर चलते रहे विवाद
पौड़ी गढ़वाल जिले के गंगा भोगपुर गांव के निवासियों के लिए आंवला प्रसंस्करण वाला यह कारखाना शुरू होने के दिन से ही परेशानी का सबब बना रहा है.
हरिद्वार निवासी आर्य 14 साल पहले 8 सितंबर 2008 को गांव पहुंचे थे, जब उन्होंने जगदीश राणाकोटी के चार भाइयों में से एक से 0.8 एकड़ कृषि भूमि का एक टुकड़ा खरीदा. राणाकोटी परिवार का दावा है कि आर्य को फार्मेसी फैक्ट्री के लिए जमीन की तलाश थी.
जगदीश को छोड़कर बाकी राणाकोटी बंधु उत्तराखंड के अलग-अलग शहरों में सरकारी कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं और अपना नाम नहीं जाहिर करना चाहते.
2008 में 5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के सर्किल रेट से खरीदी गई इस भूमि के लिए आर्य ने कथित तौर पर केवल 1.67 लाख का भुगतान किया और इसे कृषि उपयोग के लिए दर्ज कराया. लेकिन भूमि रिकॉर्ड के मुताबिक, एक माह के भीतर 11 अक्टूबर 2008 को आर्य ने इसे गैर-कृषि भूमि में बदल दिया. इस रिकॉर्ड की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.
हालांकि, दिप्रिंट उस तारीख की पुष्टि नहीं कर सका है जिस दिन आर्य ने कारखाना शुरू किया क्योंकि इसके बारे में कोई आधिकारिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. उत्तराखंड सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक, इस फैक्ट्री के बारे में अधिकारियों को जानकारी 2020 में तब मिली जब अनुमति के लिए डीआईसी के पास दस्तावेज भेजे गए. लेकिन स्थानीय ग्रामीणों का दावा है किया कि यह फैक्ट्री करीब 10-15 श्रमिकों के साथ एक दशक से अधिक समय से चल रही है.
गांव राजाजी टाइगर रिजर्व के नजदीक एक वन क्षेत्र में आता है और अन्य जंगली जानवरों के अलावा तेंदुए, जंगली सूअर और हाथी आमतौर पर यहां देखे जाते हैं. ग्रामीणों का दावा है कि आर्य के भूखंड पर चल रही फैक्ट्री कथित तौर पर उचित अपशिष्ट निपटान प्रणाली के अभाव में पानी को प्रदूषित कर रही थी.
एक दिन नाराज ग्रामीण एक नाले के पास जमा हो गए, जिसका पानी कारखाने के कचरे के कारण काला हो गया था. उनके मवेशी उसी पानी को पी रहे थे और बीमार पड़ रहे थे.
जब उन्होंने इस मामले को लेकर आर्य के साथ बहस की थी तो उसने तुरंत उस काले पानी को एक गिलास में भरकर पी लिया. इसी इलाके में स्थित राजाजी रिट्रीट रिसॉर्ट के मालिक मोहित शर्मा ने इस घटना के बारे में बताया, जिन्होंने खुद आर्य को वह गंदा पानी पीते देखा था.
उन्होंने बताया कि आर्य ने नाराज ग्रामीणों से कहा, ‘देखो, मुझे कुछ नहीं हुआ है. तब तुम्हारे मवेशी कैसे बीमार पड़ सकते हैं?’
खेतों के बीच स्थित आर्य की फैक्ट्री से निकलने वाला कचरा कथित तौर पर उन किसानों की फसलों में रिसता था जिनकी जमीन आसपास ही है. आर्य की प्रदूषणकारी फैक्ट्री से प्रभावित किसान जगदीश राणाकोटी ने कई बार काला पानी अपने खेतों में रिसने पर इसकी शिकायत भी की.
जगदीश के मुताबिक, लेकिन आर्य एकदम दबंग किस्म के थे. जगदीश के मुताबिक, ‘वह तो सभी को अपने नौकर की तरह समझते थे. उन्होंने हर किसी को दबाकर रखा और हमेशा ही अपने और अपने पिता के राजनीतिक संबंधों की धौंस दिखाई.’
आर्य के पिता विनोद आर्य एक पूर्व मंत्री और भाजपा ओबीसी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे, और बड़े भाई अंकित आर्य उत्तराखंड अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष थे. हालांकि, अंकिता हत्याकांड के बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है.
पुलकित आर्य के गंगा भोगपुर गांव में जमीन खरीदने से पांच दिन पहले 3 सितंबर, 2008 को एक निजी कंपनी स्वदेशी आयुर्वेद को आर्य नगर, ज्वालापुर में उनके पारिवारिक निवास के पते पर कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय में पंजीकृत कराया गया था.
कंपनी ‘खास स्टोर्स में नए माल का खुदरा व्यापार’ करती है, और आर्य की पत्नी स्वाति जुलाई 2019 से कंपनी के निदेशकों में से एक है. कंपनी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक यहां जूस, चूर्ण और कैंडी जैसे उत्पाद तैयार होते थे.
सीसीटीवी कैमरों से घिरे ज्वालापुर स्थित आवास पर लगे लोहे के बड़े-बड़े गेट अंदर से बंद हैं. गली के दुकानदारों ने बताया कि स्वदेशी फार्मेसी का बैनर करीब तीन दिन पहले गिरा दिया गया था और परिवार को आखिरी बार करीब एक हफ्ते पहले देखा गया था.
हाउस हेल्प ने दिप्रिंट को बताया कि वह घर में अकेली है और उसे नहीं पता कि मालिक लोग कहां गए हैं या कब तक वापस आएंगे.
नाम न छापने के अनुरोध पर सात साल तक इस परिवार के साथ काम करने वाले स्वदेशी आयुर्वेद के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि गंगा भोगपुर गांव में कारखाने का प्रबंधन आर्य खुद संभालते थे.
पूर्व कर्मचारी ने बताया कि एक चार्टर्ड अकाउंटेंट स्वाति की भूमिका सीमित थी. पूर्व कर्मचारी ने कहा, ‘स्वाति मैम केवल त्योहारों या कुछ विशेष अवसरों पर ही कारखाने आती थीं. उनका काम कारखाने के दैनिक कार्यों या उत्पादन से जुड़ा नहीं था. हमारे मालिक पुलकित और अंकित आर्य बहुत अच्छे इंसान हैं. हम मीडिया में उनके बारे में जो कुछ भी सुन रहे हैं, वह सब गलत है.’
जुलाई 2021 में आर्य और स्वाति ने सामाजिक कार्यों के लिए एक निजी कंपनी संयुक्त प्रयास फाउंडेशन का गठन किया. कंपनी का रजिस्ट्रेशन स्वदेशी आयुर्वेद के पते पर ही किया गया था. इस कंपनी के बारे में ज्यादा कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
दिप्रिंट ने स्वदेशी आयुर्वेद के रजिस्टर्ड फोन नंबरों और कंपनी की वेबसाइटों और सोशल मीडिया अकाउंट पर दिए गए कांटैक्ट नंबरों के जरिये स्वाति और सुनीता आर्य तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. स्वाति का निजी नंबर बंद था.
कैसे चल रहा था रिसॉर्ट
बाल्कनी से जंगल के नजारों, बैक्वेंट, पूल और शानदार व्यंजन उपलब्ध कराने वाला वनंत्रा रिसॉर्ट क्षेत्र के आठ रिसॉर्ट में एक था और जैसा ऑनलाइन दावा किया जाता था, यह छुट्टियां बिताने के लिए एक लग्जरी डेस्टिनेशन था. बहरहाल, आसपास के अन्य रिसॉर्ट्स के कर्मचारियों का कहना है कि ऐसी सुविधाओं के साथ कोई यूनिट चलाना अपने-आप में एक बड़ा काम है. विभिन्न विभागों से अग्नि सुरक्षा, भोजन, बार, पूल, स्पा, आदि के लिए कई लाइसेंस और एनओसी लेने होते हैं.
आर्य के पास कथित तौर पर इसमें से कोई भी नहीं था. दिप्रिंट ने खाद्य और अग्नि सुरक्षा विभागों से जांच की, जिन्होंने बताया कि वनंत्रा रिसॉर्ट उनके रिकॉर्ड में नहीं है.
पौड़ी के खाद्य सुरक्षा अधिकारी अजब सिंह रावत ने कहा, ‘जिला खाद्य सुरक्षा विभाग ने रिसॉर्ट को कोई लाइसेंस जारी नहीं किया है. इसके रजिस्ट्रेशन के वैरिफिकेशन की जरूरत है. हमें यह देखना होगा कि क्या यह नए पंजीकरण का मामला है या समाप्त हो चुके किसी रजिट्रेशन को रिन्यू करने का मामला है.
दिप्रिंट स्वतंत्र रूप से यह पुष्ट नहीं कर पाया कि वनंत्रा को आधिकारिक तौर पर कब शुरू किया गया क्योंकि सरकार के पास इसके रजिस्ट्रेशन की कोई जानकारी नहीं है.
इस बीच, दिसंबर 2021 से मई 2022 के बीच बतौर प्रबंधक रिसॉर्ट में काम करने वाली एक पूर्व कर्मचारी रेणु का दावा है कि वह दिल्ली स्थित एक फर्म के लिए काम करती थीं जिसने आर्य से संपत्ति पट्टे पर ली थी.
स्थानीय लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि आर्य ने वनंत्रा शुरू करने से पहले इमारत को एक थर्ड पार्टी को पट्टे पर दिया था, जो रिसॉर्ट चलाता था और उसे सैम रिसॉर्ट्स कहा जाता था. राजाजी रिट्रीट रिसॉर्ट के मालिक मोहित शर्मा ने कहा, ‘लेकिन पुलकित के साथ कुछ बात बिगड़ी और थर्ड पार्टी ने तुरंत ही यह जगह छोड़ दी.’
दिप्रिंट ने सैम रिसॉर्ट के मालिकों को फोन किया, लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया. रेणु ने बताया कि आर्य रिसॉर्ट को किराए पर देने करने के बाद भी लगातार हस्तक्षेप कर रहे थे.
इस बीच, गांव के आसपास के नौ रिसॉर्ट्स ने बताया है कि विभिन्न सरकारी एजेंसियां नियमित तौर पर निरीक्षण करती थीं और यदि रिसॉर्ट्स में कोई कमी पाई जाती, तो उन्हें जुर्माना देना पड़ता या फिर उन्हें सील कर दिया जाता था.
चिल्ला नदी के पार वनंत्रा रिसॉर्ट के सामने स्थित नीरज रिवर फ़ॉरेस्ट रिसॉर्ट के महाप्रबंधक अंशुल राणा ने कहा, ‘सरकार नियमित तौर पर हमारे रिकॉर्ड की जांच करती है. पिछले महीने ही एक टीम आई थी, आबकारी विभाग हर महीने के अंत में बार चेक करने आता है. हर छह महीने में आग, भोजन, प्रदूषण जैसे अन्य विभागों की तरफ से जांच की जाती है.’
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