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Sunday, 22 December, 2024
होमडिफेंसलेह में तिब्बती-भारतीय SFF के नायक नइमा तेनजिन को दी गई अंतिम विदाई, राम माधव हुए शामिल

लेह में तिब्बती-भारतीय SFF के नायक नइमा तेनजिन को दी गई अंतिम विदाई, राम माधव हुए शामिल

29-30 अगस्त की रात को चुशुल में मारे गए न्यिमा तेनजिन को लद्दाख में तिब्बती समुदाय और राम माधव श्रद्धांजलि देने के लिए एक साथ जुटे. 

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नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में 29-30 अगस्त की रात को मारे गए विशेष गुप्त अर्धसैनिक इकाई, स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के एक तिब्बती-भारतीय नायक नइमा तेनजिन को 21 -तोपों की सलामी के साथ अंतिम विदाई दी गई.

सेना के सूत्रों ने बताया कि 51 वर्षीय सैनिक की मौत उस समय हो गई, जब वह पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर, 1962 की पुरानी एंटी-कार्मिक खदान के पास कदम रख दिया.

यह घटना उस समय घटी जब भारतीय सेना ने एक बड़ा ऑपरेशन शुरू किया और चुशुल सेक्टर के दक्षिणी बैंक पैंगोंग त्सो के प्रमुख जगहों पर कब्जा करते हुए चीन को मात दिया.

सोमवार को लद्दाख में तिब्बती समुदाय के लोग सैनिक को श्रद्धांजलि देने के लिए एक साथ आए, जो एसएफएफ की 7 विकास बटालियन से जुड़े थे, जिसे प्रतिष्ठान 22 के रूप में भी जाना जाता है.

भाजपा के वरिष्ठ नेता राम माधव ने अंतिम संस्कार में भाग लिया और तेनजिन को श्रद्धांजलि दी.


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माधव ने एक ट्वीट में कहा कि एक तिब्बती, एसएफएफ नइमा तेनजिन के अंतिम संस्कार में शिरकत की, जिन्होंने लद्दाख में हमारी सीमाओं की रक्षा करते हुए अपना जीवन गंवा दिया, श्रद्धांजलि के रूप में उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की.’ हालांकि, बाद में उन्होंने अपने ट्वीट को हटा दिया जिसमें साइट पर उनकी तस्वीरें थीं.

साइट के वीडियो के अनुसार, तेनज़िन का शव एसएफएफ ट्रक की निगरानी में लेह में सोनमलिंग तिब्बती शरणार्थी बस्ती में उनके घर तक पहुंचाया गया, यह भारतीय तिरंगे और तिब्बती ध्वज दोनों में लिपटा हुआ था.

गैर-कमीशन अधिकारी (NCO), तिब्बती शरणार्थी समुदाय से संबंध रखने वाले जो चीनी अत्याचारों के कारण भारत में बस गए हैं.

अंतिम संस्कार में, जिसमें काफी सारे स्थानीय लोगों शामिल थे, ने ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए जो हवा में गूंज उठे.

एसएफएफ

नइमा तेनज़िन एक भारतीय सुरक्षा इकाई एसएफएफ के सदस्य थे जो मुख्य रूप से उन हजारों तिब्बती शरणार्थियों से ली जाती है जो अब भारत को घर कहते हैं. इसका गठन चीन के साथ 1962 के युद्ध, जिसमें भारत को पराजय हुई थी, के तुरंत बाद हुआ था.

पुरुषों और महिलाओं दोनों की तुलना में, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से लेकर 1999 के कारगिल युद्ध तक- एसएफएफ ने कई सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है- लेकिन ज्यदातार परछाई के तहत काम किया है.

सात बटालियन वाली इकाई, कैबिनेट सचिवालय के प्रत्यक्ष दायरे में आती है, और यह सेना के साथ ऑपरेशन के तौर पर भी शामिल है. इस बल का नेतृत्व एक प्रमुख जनरल रैंक का सैन्य अधिकारी करता है, जो एसएफफ के महानिरीक्षक के रूप में कार्य करता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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