scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशBJP नेता ने संसद में उठाई पूजा स्थल कानून 1991 को खत्म करने की मांग, जानें क्या है ये एक्ट

BJP नेता ने संसद में उठाई पूजा स्थल कानून 1991 को खत्म करने की मांग, जानें क्या है ये एक्ट

शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए भाजपा के हरनाथ सिंह यादव ने कहा कि यह कानून भगवान राम और भगवान कृष्ण में भेदभाव पैदा करता है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक सदस्य ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में केंद्र सरकार के पूजा स्थल कानून, 1991 को अतार्किक और असंवैधानिक बताते हुए इस समाप्त करने की मांग की.

शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए भाजपा के हरनाथ सिंह यादव ने कहा कि यह कानून भगवान राम और भगवान कृष्ण में भेदभाव पैदा करता है.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पूजा स्थल कानून, 1991 में ‘मनमाने और असंवैधानिक’ प्रावधान किए गए हैं.

उन्होंने कहा, ‘इसमें प्रावधान किया गया है कि पूजा स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. इस कानून में अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि को अलग रखा गया है. यह प्रावधान संविधान में प्रदत्त समानता और जीवन के अधिकार का ना सिर्फ उल्लंघन करते हैं बल्कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करते हैं.’

उन्होंने इसे संविधान की प्रस्तावना और मूल संरचना के विपरीत करार दिया और कहा कि इस कानून में कहा गया है कि श्रीराम जन्मभूमि मुकदमे के अतिरिक्त अदालतों में लंबित सभी ऐसे मुकदमे समाप्त माने जाएंगे.

यादव ने कहा, ‘आश्चर्य का विषय है कि इस कानून में प्रावधान किया गया है कि इस कानून के खिलाफ कोई नागरिक अदालत में भी नहीं जा सकता है.’

उन्होंने कहा कि इस कानून का स्पष्ट अर्थ है कि ‘विदेशी आक्रांताओं और द्वारा तलवार की नोंक पर श्रीकृष्ण की जन्मभूमि सहित अन्य स्थलों पर जो बलात कब्जा किया गया, उसे तत्कालीन सरकार ने कानूनी रूप दे दिया.’

उन्होंने कहा, ‘इस अतार्किक और असंवैधानिक कानून के द्वारा हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध लोगों के धर्म पालन और प्रचार के अधिकार से वंचित किया गया है. यह कानून राम और कृष्ण के बीच भेदभाव पैदा करता है जबकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं.’

यादव ने कहा कि ‘समान कृत्य और सामान परिस्थितियों’ के लिए दो कानून नहीं हो सकते और कोई भी सरकार न्यायालयों के दरवाजे अपने नागरिकों के लिए बंद नहीं कर सकती.

उन्होंने कहा, ‘यह कानून पूर्णतया अतार्किक और असंवैधानिक है. यह हिंदू सिख, जैन और बौद्ध धर्म लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ क्रूरता है. इस कानून को अविलंब समाप्त किया जाना चाहिए.’

उल्लेखनीय है कि श्री राम जन्मभूमि विवाद सुलझने के बाद से अब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विवाद गरमाने लगा है और इसको लेकर मथुरा की अदालत में कई मामले दर्ज हैं. पिछले दिनों एक नया मामला भी दर्ज कराया गया है.

क्या है प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991

इस एक्ट अनुसार 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है.

यह मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर धाराएं लागू नहीं होंगी. यह अधिनियम उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए लागू नहीं होता है.

इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से अयोध्या विवाद से संबंधित घटनाओं को वापस करने की अक्षमता को स्वीकार किया.
बता दें कि बाबरी संरचना को ध्वस्त करने से पहले 1991 में पी.वी नरसिम्हा राव द्वारा एक कानून लाया गया था.
यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में फैला हुआ है. राज्य के लिए लागू होने वाले किसी भी कानून को वहां की विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया करना होता है.

उपासना स्‍थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 ने कहा कि सभी प्रावधान 11 जुलाई, 1991 को लागू होंगे.
धारा 3, 6 और 8 तुरंत लागू होंगे. धारा 3 में पूजा स्थलों का रूपांतरण भी होता है. 1991 के इस अधिनियम के तहत अपराध एक जेल की अवधि के साथ दंडनीय हैं जो तीन साल तक की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है.

अपराध को जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8 (खंड ‘ज’ के रूप में) में शामिल किया जाएगा, चुनाव में उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराने के उद्देश्य से उन्हें अधिनियम के तहत दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जानी चाहिए.

share & View comments