(कुमार राकेश)
नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) खराब दौर में भी दक्षिण भारत में अपनी मजबूती बरकरार रखने वाली कांग्रेस का लगातार हो रहा पतन और पांरपरिक रूप से ताकतवर रहे क्षेत्रीय दलों के भी कमजोर होने के विपरीत भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत कर रही है, जिससे उसे उम्मीद जगी है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में वह दक्षिण भारत के राज्यों में भी वर्ष 2019 में पश्चिम बंगाल और ओडिशा में किए प्रदर्शन को दोहरा सकती है।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में दक्षिण भारत को लक्षित किया, जहां पार्टी को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक को छोड़कर बाकी चार राज्यों की कुल 101 सीट में से महज चार सीट पर जीत मिली थी।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के महज कुछ दिनों के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार ने दक्षिणी राज्यों के चार प्रमुख लोगों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करने के वास्ते चुना, जिससे पार्टी की राजनीति स्पष्ट हो गई।
भाजपा ने वर्ष 2014 और 2019 के चुनाव में उत्तर और पश्चिम भारत में लगातार बड़ी जीत दर्ज की तथा पार्टी लगातार अपनी उपस्थिति पूर्वी भारत और दक्षिण भारत में बढ़ाने की कोशिश कर रही है, ताकि उसकी सीट संख्या में किसी कमी से उसकी राष्ट्रीय महत्वकांक्षा पर कोई असर नहीं पड़े।
भाजपा ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों में नयी जमीन तैयार की और पूरे पूर्वोत्तर में सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी, लेकिन विंध्य के पार उसकी कोशिश अब तक उतनी लाभदायक साबित नहीं हुई है।
हालांकि, कर्नाटक भाजपा का मजबूत गढ़ बना हुआ है और इसलिए लोकसभा चुनाव में पार्टी बाकी बचे चार राज्यों-आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु पर ध्यान दे रही है, जो मोदी लहर और वर्ष 1984 के बाद लगातार दो बार एक ही पार्टी की सरकार बनने की उपलब्धि के बावजूद भगवा लहर से अछूते हैं।
भाजपा नेताओं का मानना है कि इस समय उनके लिए पूर्व के मुकाबले कहीं अनुकूल परिस्थितियां हैं क्योंकि पारंपरिक रूप से मजबूत रहीं क्षेत्रीय पार्टी जैसे आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक कमजोर हुई हैं तथा क्रमश: वाईएसआर कांग्रेस और द्रमुक सरकार को चुनौती देने में संघर्ष का सामना कर रही हैं।
मौजूदा हालात में कांग्रेस भी राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर खुद को पेश करने की स्थिति में नहीं है, जिससे भाजपा के लिए नयी संभावनाओं के द्वार खुले हैं। हालांकि, वाम दलों द्वारा शासित केरल जहां की 45 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यक है, भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पेश कर रहा है।
भाजपा की दक्षिणी प्रायद्वीप पर अपनी स्थिति मजबूत करने की नयी कोशिश करीब दो दशक बाद हो रही है। पिछली बार वह कर्नाटक से आगे अपनी विजय पताका फहराने में असफल रही थी। पार्टी कर्नाटक की सत्ता में पहली बार वर्ष 2008 में आई थी।
दक्षिणी राज्य अधिकतर भारतीय राज्यों के मुकाबले आर्थिक-सामाजिक संकेतकों में बेहतर हैं और ऐसे में भाजपा के कल्याणकारी मॉडल के कम ग्रहणकर्ता हैं तथा हिंदुत्व का दूसरा मुद्दा भी यहां अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक प्रभावी तरीके से काम नहीं करता।
भाजपा आक्रामक और महत्वकांक्षी अवतार में है और पार्टी अपने विरोधियों से मोर्चा लेने के लिए तेलंगाना और तमिलनाडु में पार्टी अध्यक्षों क्रमश: बी. संजय कुमार और के. अन्नामलाई को तैयार कर रही है। आंध्र प्रदेश में पार्टी ने तेदेपा को जाने दिया और तेलंगाना में सत्तारूढ. तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) पर लगातार हमला कर खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रही है। इसने भाजपा को पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले अब संसद में अधिक अनुकूल अवस्था दी है जबकि वह पूर्व में अपने सहयोगियों पर निर्भर थी।
भाजपा ने तेलंगाना में अपने आधार में सुधार भी किया है। उसने वर्ष 2018 के चुनाव में केवल एक विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की थी जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में 17 में से चार सीट पर जीत दर्ज की और वृहद हैदराबाद नगर निगम चुनाव में मजबूत चुनौती दी।
पार्टी के एक नेता ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘‘ इन चारों राज्यों में प्रत्येक में विपक्ष का क्षेत्र खाली है और हम इसे भरने की बेहतरीन स्थिति में हैं।’’
हलांकि, भाजपा को अगर वर्ष 2024 के चुनाव में इस क्षेत्र में बड़ी बढ़त हासिल करनी है, तो सभी चारों राज्यों में सीट पर जीत दर्ज करनी होगी। पार्टी को वर्ष 2019 के चुनाव में चार सीट तेलंगाना में मिली थीं जबकि आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में उसकी झोली खाली रही थी।
भाषा धीरज नेत्रपाल
नेत्रपाल
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