पटना: भाजपा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राज्य में 2020 के विधानसभा चुनावों के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का नेतृत्व करने के लिए चुना है, लेकिन कोविड-19 संकट के दौरान नीतीश की छवि को लेकर पार्टी के भीतर चिंता बढ़ रही है.
भाजपा में यह भी विश्वास बढ़ रहा है कि नीतीश अपनी पहचान खो रहे हैं. कुशल नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध मुख्यमंत्री पर कोविड-19 संकट से निपटने में लापरवाही का आरोप लगाया गया है, विशेष रूप से देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे राज्य से प्रवासी मजदूरों को नहीं लाने के लिए यह आरोप लगा है.
राज्य में रविवार को अपनी वर्चुअल रैली को भाजपा ने चुनावों से जोड़ने से इंकार किया, अपितु भाजपा ने जमीनी स्तर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ फैले गुस्से को शांत करने का प्रयास किया है.
उप मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस रैली का विधानसभा चुनावों से कोई लेना-देना नहीं था और यह केंद्र सरकार की उपलब्धियों के बारे में थी. लेकिन चूंकि यह एक चुनावी वर्ष है, इसलिए राजनीति तो होगी ही.’
लेकिन खुद मोदी ने 29 मई को बिहार पुलिस के एक पत्र द्वारा चर्चित ताजा विवाद का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रवासी श्रमिकों की भारी आमद से कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है.
सुशील मोदी ने वर्चुअल रैली के दौरान कहा, ‘बिहारी मजदूर चोर और लुटेरे नहीं हैं. वे अपने जीवन यापन के लिए काम करते हैं, यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह, जो इस आयोजन में मुख्य वक्ता थे, ने अन्य राज्यों के विकास में योगदान के लिए बिहारी प्रवासी मजदूरों की प्रशंसा की.
उतार चढ़ाव भरा गठबंधन
बिहार के पुलिस विभाग द्वारा किए गए कार्य, जो कि सीएम नीतीश कुमार के अधीन है ने स्पष्ट रूप से भाजपा को चिंतित किया है. यह उस रिश्ते से भी जुड़ा हुआ है, जिसने उतार-चढ़ाव को देखा है.
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश ने लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन किया था इस चुनाव को छोड़कर बीजेपी और नीतीश की जद (यू) ने पिछले दो दशकों में अधिकांश विधानसभाओं का चुनाव एक साथ लड़ा है.
लेकिन 2005 के विधानसभा चुनावों के बाद से भाजपा ने हमेशा नीतीश के फरमानों का पालन किया, जब उन्होंने खुद को एक स्वच्छ नेता, के रूप में स्थापित किया था इस हद तक कि 2013 के पूर्व गठबंधन में नीतीश गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को बिहार में नहीं मिले.
नीतीश के साथ न केवल एजेंडा तय करने बल्कि हमेशा स्टार स्पीकर होने के नाते संयुक्त रूप से चुनावी रैलियां भी की जाएंगी. यदि रविवार की वर्चुअल रैली कोई संकेत है, तो गठबंधन के भीतर सब ठीक नहीं है. शाह ने रैली के दौरान केवल एक बार नीतीश का जिक्र किया.
इस आयोजन ने जद (यू) को भी चिंतित कर दिया है.
जैसा कि शाह ने बिहार में वर्चुअल रैली को संबोधित किया, नीतीश ने अपनी पार्टी के नेताओं के साथ उत्तर बिहार के कई जिलों जैसे पाश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीहोर, मधुबनी और सीतामढ़ी में एक वीडियो कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जहाँ एक बड़ी प्रवासी श्रमिक आबादी है.
नीतीश ने विपक्ष द्वारा प्रसारित किए जा रहे झूठ का पर्दाफाश करने के लिए जदयू कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पर जोर दिया. ‘मेरी प्राथमिकता गरीब जनता को राहत पहुंचाना है. विपक्ष के पास झूठ फैलाने के अलावा और कोई काम नहीं है. उन्होंने कोविड-19 संकट के दौरान प्रवासी मजदूरों और समाज के सीमांत वर्गों के लिए अपनी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण भी दिया.
दोनों पार्टी के नेता यह कहते रहते हैं कि सब ठीक है.
जद (यू) मंत्री श्याम रजक ने कहा, ‘यह भाजपा का कार्यक्रम था और हर पार्टी को अपना कार्यक्रम आयोजित करने का अधिकार है. हम और बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी संवाद करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं लेकिन मुझे किसी भी संयुक्त अभियान कार्यक्रम की जानकारी नहीं है. शायद बाद में इसका फैसला किया जाएगा.’
निजी तौर पर, जद (यू) के नेताओं का कहना है कि चूंकि विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, इसलिए वर्चुअल रैली का आयोजन संयुक्त रूप से होना चाहिए था। हालांकि, भाजपा के नेता बताते हैं कि नीतीश ने भी राजनीतिक कदम उठाए हैं, जैसे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करना.
भाजपा प्रवक्ता रजनी रंजन पटेल ने कहा, ‘बीजेपी ने जेडी (यू) को आश्वस्त किया है कि संयुक्त अभियान बाद में आयोजित किया जाएगा. यह एक चुनावी रैली नहीं थी. संयुक्त वर्चुअल रैलियां बाद में आयोजित की जाएंगी. यह केंद्रीय नेताओं द्वारा तय किया जाएगा.’
जद (यू) के नेता हालांकि खुश नहीं हैं. एक अन्य जद (यू) नेता ने कहा, ‘यह (वर्चुअल रैली) पहले की तरह संयुक्त रूप से किया जाना चाहिए था. हम एनडीए के साझेदारों ने हमेशा पटना के गांधी मैदान में संयुक्त रैलियों में चुनावी अभियान शुरू किया है.
ब्रांड नीतीश इस बार मजबूत नहीं हैं
जबकि नीतीश हमेशा गठबंधन में आगे रहे हैं, कोविड-19 संकट ने भाजपा को एक मौका दिया हैं कि अब वह शर्तों को निर्धारित करे.
रेल मंत्री पीयूष गोयल की याचिका के बावजूद, नीतीश कुमार ने मार्च के महीने में दिल्ली और मुंबई की गाड़ियों को बिहार में आने से मना कर दिया था. पटना के एक भाजपा विधायक ने कहा, ‘हमें प्रवासी मजदूरों और कोटा (राजस्थान) से छात्रों के परिवारों से प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं मिलनी शुरू हो गईं थीं. जबकि यूपी और गुजरात के सीएम और कुछ अन्य राज्य अपने लोगों को बचा रहे थे, यह कहा जाने लगा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने ध्यान नहीं दिया.’
आश्चर्य की बात नहीं है कि अमित शाह और सुशील कुमार मोदी दोनों ने प्रवासी मजदूरों के लिए उठाए गए कदमों के बारे में आंकड़े बताए. अनुमानित 30 लाख प्रवासी मजदूर हैं जो विधानसभा चुनावों में राजग के लिए कहर ढहा सकते हैं.
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने टिप्पणी की कि हमने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की. राज्य के चुनावों में, ब्रांड नीतीश पर्याप्त नहीं हो सकते हैं.’
जब भी जेडी (यू) और बीजेपी ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ा है, बीजेपी की संगठनात्मक ताकत ने हमेशा एनडीए उम्मीदवारों की मदद की है. 2015 से, पार्टी ने अपने पारंपरिक शहरी वोट-बैंक के अलावा, राज्य के ग्रामीण इलाकों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर दिया है.
रविवार को मेगा शो ने एक बार फिर अपनी संगठनात्मक क्षमता प्रदर्शित की – पार्टी ने बिहार के सभी 72,000 मतदान केंद्रों पर एलईडी स्क्रीन स्थापित करने में कामयाबी हासिल की.
भाजपा यह भी अनुमान लगा रही है कि 2020 आखिरी विधानसभा चुनाव होगा, जिसमें नीतीश सीएम उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे. पार्टी अब नीतीश से आगे निकल रही है और अपनी नई पीढ़ी के राजनेताओं जैसे नित्यानंद राय, संजय जायसवाल और मंगल पांडे को भविष्य में सत्ता संभालने के लिए संभावित नेताओं के रूप में पेश कर रही है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)