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बिलकिस मामला: दोषियों को सजा में छूट के खिलाफ याचिकाओं पर न्यायालय सात अगस्त को करेगा अंतिम सुनवाई

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नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में सभी 11 दोषियों को पिछले साल दी गई सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करने के लिए सात अगस्त की तारीख तय की।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि दलीलें पूरी हो चुकी हैं और सभी दोषियों को समाचार पत्र प्रकाशनों के माध्यम से या सीधे नोटिस दिए गए हैं।

पीठ ने कहा, “हमारा मानना है कि मामले में दलीलें पूरी हो चुकी हैं और सभी प्रतिवादियों को सभी मामलों में समाचार पत्रों के प्रकाशनों के माध्यम से या सीधे तौर पर नोटिस दिए गए हैं। हम मामले को सात अगस्त को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हैं। सभी पक्षों को संक्षिप्त लिखित दलील, सारांश और तारीखों की सूची दाखिल करनी चाहिए।”

सुनवाई के दौरान, बिलकिस बानो की तरफ से पेश हुईं अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा कि स्थानीय समाचार पत्रों में एक जून को नोटिस प्रकाशित हुए थे और उन्होंने इस संबंध में सात जून को एक हलफनामा दाखिल किया था।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने भी कहा कि उनके मामलों में भी शीर्ष अदालत के निर्देशानुसार नोटिस प्रकाशित किए गए थे।

ग्रोवर ने कहा कि उन्हें गुजरात सरकार के मूल माफी आदेश को रिकॉर्ड पर रखने की जरूरत है और कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए अदालत से अनुमति मांगी है।

गुजरात सरकार और केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हालांकि मूल दंड छूट आदेश को राज्य द्वारा रिकॉर्ड पर रखा गया है, अगर याचिकाकर्ता इसे स्वयं रखना चाहते हैं, तो उन्हें इससे कोई समस्या नहीं है।

पीठ ने कहा कि चूंकि मामला निर्देशों के लिए सूचीबद्ध किया गया था, इसलिए वह अंतिम सुनवाई के लिए सात अगस्त की तारीख तय कर रही है और जो पक्ष अपना जवाब, लिखित दलीलें, सारांश और तारीखों की सूची दाखिल करना चाहते हैं, वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।

पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा, “आपकी लिखित दलीलें कुछ मुख्य मुद्दों और तर्कों पर केंद्रित होनी चाहिए।” पीठ ने उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया।

उसने दोषियों को सजा माफी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दायर करने की भी अनुमति दी।

शीर्ष अदालत ने नौ मई को उन दोषियों के खिलाफ गुजराती और अंग्रेजी सहित स्थानीय समाचार पत्रों में नोटिस प्रकाशित करने का निर्देश दिया था, जिन्हें नोटिस नहीं दिया जा सका, जिसमें वह व्यक्ति भी शामिल था, जिसके घर पर स्थानीय पुलिस ने ताला लगा हुआ पाया था और उसका फोन भी बंद था।

शीर्ष अदालत ने दो मई को सुनवाई तब टाल दी थी जब दोषियों के कुछ वकीलों ने उन्हें दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस नहीं दिए जाने पर आपत्ति जताई थी।

गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो की याचिका के अलावा इस मामले में दायर अन्य याचिकाओं के संबंध में प्रारंभिक आपत्तियां उठाई थीं और कहा था कि इसके व्यापक प्रभाव होंगे क्योंकि समय-समय पर तीसरे पक्ष आपराधिक मामलों में अदालतों का दरवाजा खटखटाएंगे।

सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने छूट दे दी और पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया।

बानो ने दोषियों को दी गई सजा में छूट को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की।

सजा में छूट के खिलाफ माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर की हैं।

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा ने भी दोषियों को दी गई सजा में छूट और रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है।

गोधरा ट्रेन अग्निकांड की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान बानो से दुष्कर्म किया गया था। बानो तब 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थी। दंगों में उसकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के सात सदस्यों को मार दिया गया था।

भाषा प्रशांत वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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