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Thursday, 25 April, 2024
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दक्षिणपंथी प्रेस का दावा, गुजरात चुनाव में बिलकिस ने AAP की ‘मुस्लिम रैली’ में केजरीवाल की तारीफ की

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नई दिल्ली: गुजरात चुनाव नजदीक आने पर दक्षिणपंथी कॉलमनिस्ट और लेखकों ने इस सप्ताह अपने कॉलम और संपादकीय में ध्रुवीकरण के मुद्दों को उठाया. एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि पिछले महीने हुई एक रैली में सैकड़ों मुसलमानों ने आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन देने का वादा किया था.

30 नवंबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ ने दावा किया कि 27 नवंबर को अहमदाबाद के जुहापुरा में ‘मुस्लिम फाइटर्स क्लब’ की ओर से आयोजित एक रैली में, 3,000 मुसलमानों ने आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को अपना समर्थन देने का वादा किया है.

रिपोर्ट में लिखा गया, ‘नारा-ए-तकबीर-अल्लाहु अकबर’ के नारों के बीच, कुरान की आयतें पढ़ने वाले एक इस्लामी मौलवी की उपस्थिति में, ‘मुस्लिम फाइटर्स क्लब’ ने अरविंद केजरीवाल और आप के समर्थन की घोषणा की. वे ‘वोट फॉर MAGI ‘ जैसे नारे लगा रहे थे. यहां ‘MAGI’ का मतलब मनीष सिसोदिया (M), अरविंद केजरीवाल (A), गोपाल इटालिया (G), और इसुदन गढ़वी (I) से है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया, ‘बलात्कार पीड़िता बिलकिस बानो भी बैठक में मौजूद थीं. वहां उन्होंने कहा कि केजरीवाल एक पढ़े-लिखे नेता हैं और उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम किया है.’

जैसे-जैसे गुजरात में चुनावी माहौल गर्माता जा रहा है, कयासों का दौर भी चलने लगा है. दक्षिणपंथी लेखक हरि शंकर व्यास ने लिखा, मैं सोच रहा था कि राज्य भारतीय जनता पार्टी को एक और कार्यकाल दे सकता है. लेकिन अगर बीजेपी का वोट प्रतिशत गिर गया तो क्या जीत के उतने ही मायने रहेंगे.

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उन्होंने आगे लिखा, ‘नरेंद्र मोदी गुजरात जीतेंगे, लेकिन अगर वह योगी आदित्यनाथ की वजह से जीतते हैं, तो क्या यह मोदी-शाह के लिए डूबने वाली बात नहीं होगी?. लगभग हर दिन प्रधानमंत्री की रैलियां, तीन महीने तक लगातार चुनाव प्रचार, देश भर के बीजेपी नेताओं की कारपेट बॉम्बिंग, विपक्षी उम्मीदवारों को पानी की तरह पैसा बहाकर तोड़ना – तमाम हथकंडों के बावजूद अगर कांग्रेस 40 से 50 सीटें जीत जाती है और बीजेपी के वोट 40 फीसदी तक गिर जाते हैं और आप को 20-25 फीसदी वोट मिलते हैं, तो क्या यह नरेंद्र मोदी के लिए एक प्रशंसनीय जीत होगी?’

व्यास लिखते हैं. उनका मानना तो यही है कि अब चाहे दिल्ली हो, गुजरात हो या हिमाचल प्रदेश, मोदी अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर भी चुनाव जीतकर हार जाएंगे.

उन्होंने ‘नया इंडिया’ के लिए अपने कॉलम में लिखा, ‘क्योंकि असली जीत-जीत तभी होती है जब खेल निष्पक्ष होता है. इस तथ्य का क्या कि गुजरात और उसके मुख्य गढ़ सूरत में आप को अपने उम्मीदवार के अपहरण की चिंता करनी पड़ी थी.’ वह आप के उन आरोपों का जिक्र कर रहे थे जिसमें सूरत (पूर्व) के उम्मीदवार कंचन जरीवाला का भाजपा ने अपहरण करने की बात कही थी.


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‘हराम’ फीफा वर्ल्ड कप

आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ ने दोहा में चल रहे फीफा विश्व कप पर निशाना साधते हुए पूरे आयोजन में कतर पर इस्लाम को बढ़ावा देने का आरोप लगाया.

‘हराम फुटबॉल का हलाल विश्व कप’ शीर्षक वाले अपने संपादकीय में संघ के मुखपत्र ने यह भी चिंता व्यक्त की कि विवादास्पद इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक, जिन्होंने ‘पेशेवर फुटबॉल को ‘हराम‘ घोषित किया था, कथित तौर पर विश्व कप के मौके पर प्रशंसकों को अपना उपदेश देंगे.

संपादकीय में अमेरिकी पैनल के सामने सुनवाई के हवाले से लिखा, ‘कतर को आतंक के लिए खुले तौर पर फाइनेंस मुहैया कराने वाला माहौल देने के लिए जाना जाता है, कथित तौर पर हमास जैसे अमेरिकी नामित विदेशी आतंकवादी संगठनों और हमास जैसे कई चरमपंथी समूहों के संचालन के साथ-साथ सीरिया में सक्रिय कई चरमपंथी समूहों को धन मुहैया कराता है.’

वह सवाल करते है, ‘मेजबान देश ने विश्व कप के दौरान स्किन न दिखाने के इस्लामी नियम लागू किए हैं. महिलाओं को प्रतिबंधों और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. यहां तक कि खिलाड़ियों को अपनी टी-शर्ट निकालने की अनुमति नहीं है, जोकि फुटबॉल जैसे खेल में एक आम बात है. अगर तथाकथित इस्लामी संस्कृति इतनी ही महत्वपूर्ण थी तो दोहा ने आयोजन के लिए बोली क्यों लगाई?’

उसी प्रकाशन की एक रिपोर्ट में एक ट्वीट का हवाला दिया गया था, जिसमें लिखा था कि फीफा देखने आए 500 पर्यटकों ने इस्लाम धर्म अपना लिया.

‘फीफा विश्व कप’ 2022: फुटबॉल फेस्ट या दा, वह इन इस्लाम’ शीर्षक से छपी इस स्टोरी में अंदर लिखा था, बीबीसी और गार्जियन ने जिस शख्स को ‘गुड स्मार्टियन’ कहा था, उसी माजिद फ्रीमैन ने 22 नवंबर को एक ट्वीट में दावा किया कि 500 से ज्यादा लोगों (फीफा विश्व कप 2022 देखने के लिए कतर जाने वाले पर्यटक) ने इस्लाम धर्म अपना लिया है.’

उन्होंने लिखा कि फीफा विश्व कप 2022 के दौरान इस तरह के धर्म परिवर्तन का दावा करने वाले माजिद फ्रीमैन अकेले नहीं हैं. ‘एक और ट्विटर यूजर अबू सिद्दीक ने एक ट्वीट में दावा किया कि कतर में विश्व कप के मौके पर अब तक 558 लोग इस्लाम को अपना चुके हैं.’

ऑर्गनाइज़र की एक अन्य रिपोर्ट में कतर और 2022 विश्व कप के साथ पश्चिम बंगाल के ‘कनेक्शन’ की भी खबर थी.

रिपोर्ट में दावा किया गया है, ‘कथित तौर पर पश्चिम बंगाल कतर को बकरी के मांस और बिजली ट्रांसफार्मर जैसे कुछ सामानों की आपूर्ति कर रहा है,. इनका इस्तेमाल चल रहे फुटबॉल कप के दौरान किया जाएगा.’ आगे लिखा था ‘हालांकि कथित सच यह है कि कतर जैसे देश पश्चिम बंगाल की मस्जिदों को उन उद्देश्यों के लिए वित्त पोषण कर रहे हैं, जो पारदर्शिता से काफी दूर हैं. इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.’


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अपनी दादी को ‘झुठला’ रहे हैं राहुल गांधी

दक्षिणपंथी लेखकों ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उस टिप्पणी पर भी निशाना साधा, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदुत्व विचारक वीडी सावरकर ने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को धोखा दिया था.

आरएसएस के हिंदी मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’ ने अपने संपादकीय में कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों का आकलन करने की आदत न सिर्फ उनके साथ अन्याय करती है, बल्कि ऐसे सवाल उठाने वालों की देशभक्ति पर भी संदेह पैदा करती है.

उन्होंने कहा, ‘राहुल ने अपने बयान से अपनी दादी इंदिरा गांधी तक को झुठलाया दिया है. इंदिरा गांधी ने सावरकर की मौत पर शोक व्यक्त किया और 1970 में भारत सरकार ने उनकी याद में एक डाक टिकट जारी किया था. संपादकीय में लिखा है, ‘इंदिरा जी ने 20 मई 1980 को स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के (तत्कालीन) सचिव,पंडित बखले से सावरकर के योगदान का जिक्र किया था. अपनी बातचीत में उन्होंने उन्हें ‘भारत का (एक)उल्लेखनीय पुत्र’ कहा था.’

बीजेपी के पूर्व सांसद बलबीर पुंज ने भी सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी पर एक कॉलम लिखा था.

पुंज ने अपने कॉलम में कहा, राहुल को सावरकर को अंग्रेजों को लिखे गए अपने पत्र को समाप्त करते हुए यह लिखने पर कि – सर, मैं आपके सबसे आज्ञाकारी सेवक बने रहने की विनती करता हूं- को जज नहीं करना चाहिए.

पुंज ने द इंडियन एक्सप्रेस में लिखा, ‘यहां तक कि सावरकर के कट्टर आलोचक भी इसका इस्तेमाल उन्हें देशद्रोही या धोखेबाज के रूप में चित्रित करने के लिए नहीं करेंगे. हालांकि महात्मा गांधी भी अंग्रेजों के साथ पत्राचार करते समय इस तरह के भावों का इस्तेमाल किया करते थे. क्योंकि तब यह आदर्श वाक्य हुआ करता था.

उन्होंने लिखा, ‘कांग्रेस ने देश के संभावित विभाजन को रोकने के लिए एक मायावी हिंदू-मुस्लिम एकता पर भरोसा किया. जबकि सावरकर ने ‘अखंड भारत’ के लिए प्रयास करते हुए, सांप्रदायिक दंगों और देश के विभाजन के रूप में उन पर प्रहार करने के लिए हिंदुओं को तैयार करने पर ध्यान दिया.’

उन्होंने कहा कि मोदी या बीजेपी को निशाने पर लेते हुए राहुल के नैरेटिव में अक्सर कम्युनिस्ट टॉक्सिसिटी की बू आती है.

‘आईएफएफआई में वामपंथी झुकाव’

दक्षिणपंथी लेखक और टिप्पणीकार मिन्हाज मर्चेंट ने मई 2020 के गलवान झड़प पर अभिनेत्री ऋचा चड्ढा के ट्वीट की निंदा करने पर बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार का बचाव किया.

कुमार ने अपने ट्वीट के लिए चड्ढा की आलोचना की थी. लेकिन प्रकरण पर बोलने के तुरंत बाद ही उनकी आलोचना भी शुरू हो गई.

टाइम्स ऑफ इंडिया में अपने कॉलम में मर्चेंट ने पूछा कि क्या कनाडाई पासपोर्ट प्राप्त करने से कुमार ‘देशभक्त नहीं’ रहे हैं.

‘क्या अभिनेता अक्षय कुमार ने कनाडाई पासपोर्ट प्राप्त करके देशद्रोह का काम किया है? अभिनेत्री आलिया भट्ट और कैटरीना कैफ के बारे में क्या? दोनों के पास ब्रिटिश पासपोर्ट हैं.

‘क्या यह उन्हें देशद्रोही बनाता है?’

इस बीच गोवा में भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को शामिल करने पर इज़राइली फिल्म निर्माता नादव लापिड के अपमानजनक बयान को लेकर हिंदू दक्षिणपंथियों ने समान रूप से तीखी टिप्पणी की.

लैपिड ने अपने बयान में फिल्म को ‘एक प्रोपेगेंडा बेस्ड, वल्गर मूवी बताते हुए कहा था कि इस तरह की फिल्म एक प्रतिष्ठित फिल्म समारोह में शामिल होने लायक नहीं है.

इस विषय पर अपने कॉलम में दक्षिणपंथी झुकाव वाले लेखक और प्रोफेसर मकरंद परांजपे ने लिखा कि IFFI में ‘निश्चित रूप से वामपंथी’ झुकाव है और लैपिड इजराइल के ‘कठोर आलोचक’ रहे हैं.

उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट में लिखा, ‘आईएफएफआई न सिर्फ सबसे महत्वपूर्ण ‘थर्ड वर्ल्ड’ फिल्म समारोहों में से एक हुआ करता था, बल्कि अपने झुकाव में निश्चित रूप से वामपंथी भी है. क्या इसीलिए लैपिड को इसकी जूरी का प्रमुख चुना गया? या सिर्फ इसलिए कि वह इज़राइल से हैं? लेकिन 47 वर्षीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता इजरायल के एक कठोर आलोचक भी रहे हैं, जिसे वह अपनी फिल्मों में दम घुटने वाले निरंकुश और असहिष्णु के रूप में दिखाते हैं.’

परांजपे ने कहा कि लैपिड की टिप्पणियों ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ को फिर से सुर्खियों में ला दिया है.

उन्होंने अपना कॉलम में लिखा, ‘फिल्म महान हो या न हो, सच पर आधारित हो या फिर प्रोपेगेंडा, पसंद हो या न हो, महत्वपूर्ण यह है कि इसने कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में लाकर नैरेटिव को बदल दिया है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य)
(संपादन: आशा)


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