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Thursday, 19 December, 2024
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‘बिहारी कह कर चिढ़ाते थे,’ IPS विकास वैभव Bihar@2047 vision के जरिए राज्य को कैसे विकसित करने में जुटे हैं

विकास वैभव ने कहा कि भारत का लक्ष्य है 2047 तक विकसित देश बनना. इसमें बिहार को भी अपनी भूमिका निभानी होगी. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे. ये तभी संभव है जब उद्यमिता की क्रांति होगी. इसीलिए हम लोग ये अभियान चला रहे है. हर स्कूल, हर कॉलेज तक पहुचने की कोशिश कर रहे है.

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नई दिल्ली: बिहार@2047 यानि विकसित प्रदेश. बिहार को विकसित प्रदेश बनाने के लिए प्रदेश के आईपीएस विकास वैभव का लेट्स इंस्पायर बिहार अब राष्ट्रीय स्तर पर आकार ले रहा है.

बिहार के आईजी रैंक के अधिकारी विकास वैभव ने ‘आइए मिलकर प्रेरित करें’ अभियान के तहत 2047 तक राज्य को विकसित बनाने का लक्ष्य रखा है. हालांकि इस अभियान को देश-विदेश से खूब सराहना मिल रही है.

समाज के अलग-अलग क्षेत्र से आने वाले तबके के लोग, जिसमें आईटी, पत्रकारिता, व्यवसाय से जुड़े बिहार के लोग इसमें शामिल हो रहे हैं. 23 दिसंबर को नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में बिहार @2047 विजन कॉन्क्लेव में शिक्षा, रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसे विभिन्न मुद्दे पर पैनल डिस्कशन में विचार मंथन किया जाएगा.

बता दें कि बीते दिनों 10 दिसम्बर को बेगुसराय के जी डी कॉलेज के मैदान में हजारो लोगों की भीड़ उमड़ी. ‘लेट्स इन्सपायर बिहार’ अभियान के अंतर्गत प्रथम वृहद जन संवाद ‘नमस्ते बिहार’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. ये कोई धार्मिक उत्सव नहीं था, न ही कोई राजनीतिक रैली. सभा में लोग आईपीएस अफसर विकास वैभव को सुनने आए थे. विकास ने लोगों को बिहार के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराते हुए अपने राज्य के लिए कुछ करने का आह्वान किया. लोगों से सम्प्रदायवाद, जातिवाद और लिंगभेद से ऊपर उठकर मिलकर बिहार के लिए काम करने के लिए आग्रह किया.

आईपीएस विकास वैभव ने साल 2021 के 22 मार्च को ‘लेटस इंस्पायर बिहार’ अभियान की शुरुआत की थी. वे बताते है कि पिछले ढाई सालों में 35 जिलों में ‘युवा संवाद’ हुए है. 75 हजार लोग व्हाट्सप ग्रुप्स के माध्यम से इस अभियान से जुड़े है. इस अभियान तहत एक हजार से अधिक कार्यक्रम हो चुके है.


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विकसित देश विकसित बिहार

दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने बताया ‘भारत का लक्ष्य है 2047 तक विकसित देश बनना. इसमें बिहार को भी अपनी भूमिका निभानी होगी. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे. ये तभी संभव है जब उद्यमिता की क्रांति होगी. इसीलिए हम लोग ये अभियान चला रहे है. हर स्कूल, हर कॉलेज तक पहुचने की कोशिश कर रहे है’.

अपने स्कूली दिनों को याद करते हुए वे बताते है कि उनके पिता बरौनी रिफाइनरी में काम करते थे. जब वे 9वीं कक्षा में आए तो उनके पिता की पोस्टिंग भोपाल हो गई . भोपाल के केन्द्रीय विद्यालय मे पढ़ने के दौरान सहपाठी ‘बिहारी’ कह कर चिढ़ाने लगे. ये उनके जीवन का पहला बड़ा धक्का था. ये पहली घटना थी जिसने उन्हें बिहार के लिए कुछ सार्थक करने की प्रेरणा मिली.

उन्ही दिनों जब नालंदा घूमने गए तो बिहार के गौरवशाली इतिहास ने उन्हें बहुत प्रभावित किया. ये बात उन्हें बेचैन लगी कि जो बिहार पहले सम्मान का सूचक हुआ करता था, वो अपमान का सूचक कैसे बन गया. इतिहास में उनकी गहरी रुचि है. वे बताते है कि बगहा और रोहतास जिले में जब उनकी पोस्टिंग थी तब अपहरण और नक्सलवाद की समस्या की समाप्त करने में और लोगों से संवाद स्थापित करने उनके इतिहास प्रेम का बड़ा योगदान रहा है.

1997 मे आईआईटी की परीक्षा का पेपर लीक होने की वजह से उन्हें दुबारा परीक्षा देनी पड़ी. आईआईटी कानपुर में अपनी पढ़ाई के दौरान गर्मी की छुट्टियों में परिवार घर आने से मना करते थे कि ‘अभी लग्न (शादी) का समय चल रहा है और पकड़ के लोगों की शादियां होती है’.

इन सब घटनाओं ने उन्हें बिहार के लिए कुछ करने को प्रेरित किया. जर्मनी मे सॉफ्टवेयर कंपनी के ऑफर को ठुकरा कर यूपीएससी की तैयारी मे लग गए. वे खुद को सौभाग्यशाली समझते है कि उन्हें आईपीएस और बिहार कैडर मिला.

2006-08 के दौरान विकास पश्चिम चंपारण जिले के ‘बगहा’ में एसपी रहे. विकास याद करते है, ‘जब मैं बगहा गया था थे तो लोग उसे ‘मिनी चम्बल’ कहते थे. लोगों का अपहरण बहुत समय से होता थी. इस तरह से संगठित अपराध यहां पर था. अपराधियों के बच्चे चुनाव भी लड़ते थे. लोग कहते थे कि ये ‘समस्या’ समाप्त नहीं हो सकती है. लोगों की मानसिकता बदलने के लिए पहले आर्थिक रूप से चोट की, गन्ना कटवाकर 2006-07 में. करीब 25 लाख रुपये का गन्ना सरकार के खजाने मे जमा हुआ. आर्थिक रूप से उनकी कमर टूटी. मुठभेड़ भी हुई. लेकिन असल बदलाव तब आया जब लोगों से हम लोगों से हमने संवाद करना शुरू किया. एक वर्ष की अंतराल में करीब 26 डकैतों ने समर्पण किया था. अपहरण की घटनाएं जो 50-100 हर साल होती थी, वो शून्य हो गई. इस तरह ये समस्या खत्म हुई’.

2008 के अगस्त महीने में विकास वैभव रोहतास जिले के एसपी बने. इस क्षेत्र मे नक्सल का प्रभाव था . हर साल अनेक पुलिसकर्मी नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद होते थे.

रोहतासगढ़ किले पर कभी तिरंगा नहीं फहराया गया था. नक्सलियों के डर से वहां कोई जाता नहीं था. इतिहास में गहरी रुचि होने के कारण इस किले को वे फिर से गौरवान्वित होते हुए वे देखना चाहते थे. इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे लोगों से जुड़े.

उन्होंने बताया, “पहले तो कई ऑपरेशन हुए…मेरे ऊपर भी गोलियां चली . फिर हमें लगा कि इस तरह समस्या का समाधान नहीं निकलेगा. हम आदिवासियों से संवाद करने लगे. धीरे धीरे करके लोगों को मुख्यधारा से हमने जोड़ा. उस क्षेत्र में पर्यटन की बहुत संभावनाएं थी. आदिवासी लड़के को बुलाकर हमलोगों ने टुरिस्ट गाइड बनने ट्रैनिंग दी. उस समय जो भी सुनता की टुरिज़म को हम बढ़ाना चाह रहे है तो हंसते थे की ये कैसे हो सकता है. बड़े बड़े हमने होर्डिंग्स लगाए. हमलोग सोच बदल रहे थे. एक समय ऐसा आया की वही आदिवासी लोग उग्रवादियों का विरोध करने लगे. वो कहने लगे की आपके कारण हमारे क्षेत्र का विकास बाधित हुआ. विरोध इस स्तर पर हुआ की उग्रवादियों को भी आत्मसमर्पण करना पड़ गया.”

रोहतास का किले पर 26 जनवरी 2009 को पहली बार तिरंगा लहराया, उसके बाद से हमेशा लहराता रहा. 2009 में ही पहली बार चुनाव भी हुए. 3 बिल्डिंग पर चुनाव कराने के लिए 16 कंपनी फोर्स लगी थी. इलेक्शन कमीशन ने विशेष तौर पर ये प्रावधान किया था.

साल 2011 में उनका तबादला दरभंगा जिला हो गया. उसके वे एन.आई.ए, दिल्ली मे बतौर पुलिस अधीक्षक भी कार्यरत रहे. साल 2020 में आतंकवादी निरोधी दस्ता में पुलिस उपमहानिरीक्षक नियुक्त हुए. उसके बाद उन्होंने होमगार्ड और अग्निशमन सेवा मे बतौर आई.जी पदभार संभाला. वर्तमान में बिहार राज्य योजना पर्षद में बतौर परामर्शी कार्यरत है.

आईपीएस विकास वैभव उपनिषदों को अपने जीवन में बड़ी प्रेरणा मानते है. वे कहते की उपनिषद के अनुसार हर व्यक्ति मे ईश्वर का अंश है. उनका मानना है की जो व्यक्ति वेदान्त के इस दर्शन का अनुसरण करेगा वो कभी किसी से भेदभाव नहीं करेगा.


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