पटना, 11 अक्टूबर (भाषा) बिहार संग्रहालय ने 1912 में कुम्हरार इलाके में खुदाई के दौरान मिले मौर्यकालीन ‘रथ के पहिये’ और आभूषणों सहित कुछ प्राचीन कलाकृतियों का वैज्ञानिक संरक्षण करने का फैसला किया है ताकि उनके क्षरण को रोका जा सके। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
कुम्हरार, प्राचीन शहर पाटलिपुत्र का उत्खनन स्थल है।
संग्रहालय शुंग राजवंश की लोहे और तांबे से बनी मूर्तियों का भी वैज्ञानिक संरक्षण करेगा। बिहार संग्रहालय की प्राचीन कलाकृतियों का वैज्ञानिक संरक्षण चरणबद्ध तरीके से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किया जाएगा।
देश के सबसे बड़े संग्रहालयों में शुमार बिहार संग्रहालय में भारत के प्रमुख राजवंशों – मौर्य, नंद, शुंग और शिशुनाग – से संबंधित वस्तुएं हैं।
बिहार संग्रहालय के अतिरिक्त निदेशक रणबीर सिंह राजपूत ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘हां, बिहार संग्रहालय ने अपनी प्राचीन कलाकृतियों के वैज्ञानिक संरक्षण का फैसला किया है, जिनमें मौर्य काल के ‘रथ के पहिये’ और 1912 में कुम्हरार में खुदाई के दौरान मिले लोहे एवं तांबे से बने लगभग 500 आभूषणों के अलावा शुंग वंश की लोहे और तांबे की 20 मूर्तियां भी शामिल हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा उनके और अधिक क्षरण को रोकने के लिए किया जाएगा। वैज्ञानिक संरक्षण एएसआई द्वारा किया जाएगा। बिहार संग्रहालय और एएसआई जल्द ही इस संबंध में एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करेंगे।’’
जहां तक 1912 में कुम्हरार में खुदाई के दौरान मिले आभूषणों और शुंग वंश की मूर्तियों का सवाल है, उन्हें बिहार संग्रहालय के भंडार में रखा गया है और उनके वैज्ञानिक संरक्षण के बाद ही उन्हें प्रदर्शित किये जाने की संभावना है।
भाषा शफीक अविनाश
अविनाश
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