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Friday, 22 November, 2024
होमदेशबिहार के व्यक्ति ने कोलकाता में गंवाई नौकरी, कश्मीर में चाट बेची, आतंकियों के हाथों मारा गया और बिना परिवार हुई अंत्येष्टि

बिहार के व्यक्ति ने कोलकाता में गंवाई नौकरी, कश्मीर में चाट बेची, आतंकियों के हाथों मारा गया और बिना परिवार हुई अंत्येष्टि

वीरेंद्र पासवान की आतंकवादियों ने 5 अक्टूबर को गोली मारकर हत्या कर दी, और परिवार की मौजूदगी के बिना 8 अक्टूबर को, श्रीनगर में उसका दाह संस्कार कर दिया गया.

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पटना: 56 वर्षीय वीरेंद्र पासवान के परिवार के लिए, जो श्रीनगर में 5 अक्टूबर को दहशतगर्दों के हाथों मार डाले गए चार शहरियों में ये एक था, एक और दुख ने उसकी क्षति को और ज़्यादा असहनीय बना दिया.

परिवार को इस बात का दुख है, कि वो पासवान के अंतिम संस्कार में शरीक नहीं हो सके, जो 8 अक्टूबर को श्रीनगर में किया गया.

उसके 19 वर्षीय बेटे विक्रम पासवान ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे पास जाने के लिए पैसे नहीं थे. श्रीनगर प्रशासन की ओर से भेजा गया पैसा (एक लाख रुपए का एक चेक, और 25,000 नक़द) भी, हमें उनके दाह संस्कार के बाद हासिल हुआ’.

वीरेंद्र पासवान परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था, जो बिहार में भागलपुर ज़िले के अपने पैतृक गांव बालेशदपुर में, अपने पीछे दो बेटे, चार बेटियां, और पत्नी छोड़ गया.

वो श्रीनगर के व्यापारिक इलाक़े में, एक ठेले पर पानी पूरी बेंचता था.

विक्रम पासवान ने कहा, ‘हमारे पिता जो पैसा भेजते थे, उसी से यहां हमारे परिवार का गुज़ारा होता था. उन्होंने हमसे कहा था कि वो दुर्गा पूजा के दौरान घर आएंगे’.

विक्रम के अनुसार, 2019 से पहले वीरेंद्र कोलकाता में एक कारख़ाने में वेल्डर का काम करता था, लेकिन उसे मजबूरन घर लौटना पड़ा, जब कारख़ाना बंद हो गया.

विक्रम ने कहा, ‘गांव के कुछ और लोग भी कश्मीर में काम करते थे, और उन्होंने ही पिता को वहां आने के लिए राज़ी किया, ये कहते हुए कि आमदनी अच्छी थी और वो परिवार का ख़र्च उठा सकते थे. इसलिए मेरे पिता वहां चले गए, और श्रीनगर में पानी पूरी का एक ठेला लगाने लगे’. उसने आगे कहा कि गांव के कम से कम 50 लोग, जम्मू-कश्मीर में काम करते थे.

विक्रम ने कहा, ‘उनमें से कुछ तो वहां एक दशक से भी ज़्यादा से हैं’.

उसने ये भी कहा कि अधिकारियों ने उनके शव को, पैतृक गांव लाने का कोई प्रयास नहीं किया.

भागलपुर डीएम सुब्रत कुमार सेन ने कहा कि उन्हें जानकारी नहीं है, कि शव को वापस घर क्यों नहीं लाया गया.

भागलपुर के कांग्रेसी विधायक अजीत शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, कि प्रशासन ने परिवार के लिए 2 लाख रुपए स्वीकृत किए हैं.

शर्मा ने कहा, ‘मैं परिवार से मिला और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाक़ात की. सीएम ने शोकाकुल परिवार के लिए 2 लाख रुपए मंज़ूर किए हैं. बृहस्पतिवार को भागलपुर प्रशासन के एक अधिकारी परिवार से मिलने गए, और 20,000 रुपए का एक चेक, और 50 किलोग्राम अनाज उनके हवाले किया’.

लेकिन पासवान बिहार से गया अकेला प्रवासी मज़दूर नहीं था, जो जम्मू-कश्मीर में मारा गया था.

पिछले महीने, कटिहार ज़िले के एक प्रवासी मज़दूर की भी, कश्मीर के कुलगाम ज़िले में दहशतगर्दों ने हत्या कर दी थी. 2006 में उसी ज़िले में, नौ बिहारी और नेपाली मज़दूरों को गोलियों से भून डाला गया था. विडंबना ये है कि वीरेंद्र 2019 में उस समय कश्मीर गया था, जब घाटी में 11 मज़दूरों की हत्या के बाद, प्रवासी श्रमिक सूबे से भाग रहे थे.

बिहार के प्रवासी मज़दूर

पासवान परिवार की त्रासदि ऐसी है, जिससे प्रवासी मज़दूर भली भांति वाक़िफ हैं, जिन्हें रोज़गार की कमी के चलते मजबूरन बाहर निकलना पड़ता है.

2020 में, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद जब बिहार में अपने घरों की ओर पैदल लौटते, प्रवासी श्रमिकों की तस्वीरें सामने आनी शुरू हुईं, तो नीतीश सरकार ने दावा किया कि 29 लाख श्रमिकों के खातों में, एक-एक हज़ार रुपए ट्रांसफर किए थे.

क़रीब 20 लाख प्रवासी श्रमिक वापस आ गए, चूंकि राज्य सरकार ने दावा किया कि वो बिहार में रोज़गार पैदा कर रही है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि कोविड लहर के थमने के बाद, ऐसे तक़रीबन सभी लोग पंजाब, महाराष्ट्र, बेंगलुरू, चेन्नई, यहां तक कि कश्मीर वापस लौट गए.

‘वीरेंद्र जैसे लोग कश्मीर जैसे प्रांतों तक जाते हैं, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं हैं. सरकार नए कारख़ाने लगाने और रोज़गार पैदा करने में विफल रही है,’ ये कहना था विधायक अजीत शर्मा का, जिन्होंने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया, कि बिहार की अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों का योगदान, जो वो वापस पैसे भेजकर करते हैं, 60,000 करोड़ रुपए के क़रीब होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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