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Friday, 1 November, 2024
होमदेशबिहार एक अभिशप्त राज्य है, सरकार मजदूरों के खाते में कम से कम 4 हजार रुपए भेजे : मनोज झा

बिहार एक अभिशप्त राज्य है, सरकार मजदूरों के खाते में कम से कम 4 हजार रुपए भेजे : मनोज झा

मनोज झा ने कहा, 'मैं लॉकडाउन का पूरा समर्थन करता हूं लेकिन ऐसे निर्णय लेते समय पंक्ति के आखिरी व्यक्ति को ध्यान में नहीं रखा जाता. यही कारण है कि ऐसे निर्णय भारत और इंडिया के बीच का अंतर दिखाते हैं.'

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नई दिल्ली: कोरोनावायरस के खिलाफ चल रही लड़ाई में कई राज्य सरकारों ने तत्परता दिखाई है तो वहीं बिहार सरकार की आलोचना हुई है. जनता से लगातार सपंर्क में रहकर कोरोना की स्थिति से अवगत कराने वाले मुख्यमंत्रियों ने भी लोगों को चौंकाया है. लेकिन इस दौरान बिहार सरकार को अयोग्य कहा जा रहा है. फिर चाहे बात बिहार के प्रवासी मजदूरों की हो या फिर मेडिकल सुविधाओं की. इस संबंध में राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज झा ने दिप्रिंट से खास बातचीत की और सरकार का ध्यान कई महत्वपूर्ण मुद्दों की तरफ खींचा.

मजदूरों के पलायन पर आर्थिक नजरिए से डिबेट हुई है लेकिन इसके पीछे कई सामाजिक कारण भी रहे हैं. इन्हीं सामाजिक कारणों पर मनोज झा अपनी बात रखते हैं, ‘एक मजदूर जब बिहार में अपने घर की बेहतरी के लिए देश के दूसरे हिस्सों में जाकर घर ढूंढता है तब भी बिहार वाला घर उसकी स्मृति में रहता है. वो एक साथ दो घरों में रहता है. एक उसका मनोवैज्ञानिक स्पेस और एक उसका ठिकाना. हमें घर की अवधारणा को समझने की जरूरत है. नीति निर्धारक कभी भी मजदूर वाले घर के मतलब को समझने की कोशिश नहीं करते. मैं लॉकडाउन का पूरा समर्थन करता हूं लेकिन ऐसे निर्णय लेते समय पंक्ति के आखिरी व्यक्ति को ध्यान में नहीं रखा जाता. यही कारण है कि ऐसे निर्णय भारत और इंडिया के बीच का अंतर दिखाते हैं.’

लॉकडाउन के दौरान दूसरे हिस्सों में फंसे बिहार के लोगों तक मनोज झा सोशल मीडिया के जरिए मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में उन्होनें ट्विटर पर लिखा था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को मजदूरों के खाते में एक हजार नहीं बल्कि चार हजार रुपए भेजने चाहिए. वो कहते हैं, ‘ हम कोई अनाउंसमेंट करते हैं तो उसका आज भी वही हाल होता है जैसा राजीव गांधी ने बताया था कि यहां से हम एक रुपया भेजते हैं और आखिरी व्यक्ति तक मात्र 15 पैसे पहुंचते है. इसके पीछे कई ब्यूरोक्रेटिक बाधाएं हैं. अगर हमने इस स्ट्रक्चर को ठीक नहीं किया तो करोड़ों की आबादी को लगेगा कि ये देश मेरा नहीं है. वो ये सोचेंगे कि देश के नीतिनिर्धारकों को हमारे सरोकारों से कोई मतलब नहीं है.’

झा ने बिहार की स्वास्थ्य सुविधाओं और नीतिश कुमार की आलोचना पर भी अपनी बार रखते हुए कहा, ‘मेरा राज्य एक अभिशप्त राज्य है. हमारे डॉक्टरों के पास तक मास्क नहीं है. मैं जिलों के अस्पतालों की तो बात भी नहीं कर रहा यहां. बिहार देश का तीसरा सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है. ऐसे में नीतीश जी से आंकलन करने में गलती हुई है और वो केंद्र तक भी अपनी बात पहुंचाने में नाकामायब रहे हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि ‘मैं मानता हूं कि कभी-कभार सांकेतिक होना जरूरी होता है. लेकिन एक मुल्क अगर हमेशा ही सांकेतिकता में जीता रहे तो मानस क्षत-विक्षत होता है. समाजशास्त्र में अलगाववाद की भावना के बारे में बताया गया है. आगे चलकर ये कई तरह की परेशानियां खड़ी करता है.’

निजामुद्दीन मरकज वाले मामले पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि मीडिया ने सारा का सारा विमर्श एक तरफ लाकर खड़ा कर दिया है. मरकज वालों से चूक हुई है और वो इसका खामियाजा भी भुगत रहे हैं. लेकिन आप उसे क्रिमिनलाइज क्यों रहे हैं. आप उन्हें टेस्ट करिए और आइसोलेशन में रखिए.

आपको बता दें शनिवार को बिहार में में इस वायरस से संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर 32 हो गई है.

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