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Sunday, 22 December, 2024
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बिहार: 83 बच्चों के इंसेफेलाइटिस का शिकार होने के बाद खुली सरकार की नींद

इस बीमारी से निपटने के लिए डॉक्टर की कमी तो है ही, इससे जुड़ी बेहद अहम दवाएं भी मौजूद नहीं हैं. इस जानकारी के सामने आने के बाद से एसकेएमसीएच में हड़कंप मचा हुआ है.

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नई दिल्ली: एक्यूट एंसेफिलाइटिस सिंड्रोम (इंसेफेलाइटिस) नाम की बीमारी से बिहार में अब तक 83 बच्चों की मौत हो गई है. दिप्रिंट को ये जानकारी मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन एसके सिंह ने दी. ताजा जानकारी के मुताबिक आज कुल 28 बच्चों को भर्ती कराया गया जिसमें 8 की मौत हुई है. शनिवार को इस मामले से जुड़े कई हैरत डालने वाली जानकारी सामने आई है. श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में इस बीमारी से निपटने के लिए डॉक्टर की कमी के साथ ही इसके इलाज में आने वाली अहम दवाएं भी मौजूद नहीं हैं. इस जानकारी के सामने आने के बाद से एसकेएमसीएच में हड़कंप मचा हुआ है.

वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मृतक बच्चों के परिवारों को 4 लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन रविवार को एसकेएमसीएच में बीमार बच्चों का हाल जानने पहुंचे. बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे भी इस दौरान मौजूद थे. इससे जुड़ा पहला मामला 16 दिन पहले सामने आया था. लेकिन सरकार के हरकत में आने से पहले कई मासूमों ने अपनी जानें गंवा दी. लगभग 16 दिन बीत जाने और 83 मासूमों की जान गवां देने के बाद मामला तूल पकड़ता देख, सरकार ने हालात से निपटने के लिए उच्चस्तरीय बैठक करने का फैसला किया है.

एक ही हॉस्पिटल से दो तरह के दावे

एक चैनल की रिपोर्ट में एसकेएमसीएच में तैनात रेज़िडेंट डॉक्टर एश्वर्य ने कहा, ‘डॉक्टरों की किल्लत है. हमारे पास बस (इकलौती दवा) आईवी फेनेटॉइन है. इस बीमारी में पड़ने वाले दौरे से निपटने के लिए भी हमारे पास बस एक दवा है.’ उन्होंने कहा कि इस दवा को आप एक समय के बाद नहीं दे सकते क्योंकि ये ब्लडप्रेशर घटाता है.

एश्वर्य ये भी कहते हैं कि दवा से ब्लडप्रेशर में जो कमी आती है उससे निपटने के लिए जो मशीन चाहिए वो भी नहीं है. डॉक्टर एश्वर्य ने मीडिया के कैमरे के समाने जो बातें कहीं उसे लेकर एसकेएमसीएच में लगभग चार दशक तक अपनी सेवा दे चुके डॉक्टर (रिटायर्ड) बृजमोहन का कहना है, ‘ऐसी बात उनके मुंह से ग़लती से निकल गई.’

1982 से एसकेएमसीएच को अपनी सेवा दे रहे डॉक्टर (रि.) बृजमोहन का दावा है कि यहां दवाएं पर्याप्त मात्रा में हैं. उन्होंने कहा, ‘जो दवा नहीं होती है उसे रोगी कल्याण समिति में मौजूद राशि से ख़रीदकर तुरंत मंगाया जाता है. यही बात स्वास्थ्य मंत्री को भी बताई गई है कि दवा से लेकर डॉक्टरों तक की कोई कमी नहीं है.’

जब वो दिप्रिंट से बात कर रहे थे तो बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे एसकेएमसीएच के दौरे पर थे और डॉक्टर बृजमोहन की बातों में स्वास्थ्य मंत्री के वहां होने का दबाव महसूस हो रहा था.

इंसेफेलाइटिस से जुड़े आंकड़े

साल                     मरीज             मौत
2010                   59               24
2011                   121             45
2012                   336            120
2013                   124             39
2014                   342             86
2015                   75               11
2016                   30               04
2017                   09               04
2018                   35               11

शनिवार तक का हाल

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक शनिवार को इस बीमरी से 12 बच्चों की मौत हो गई. एसकेएमसीएच में आठ और कांटी पीएचसी में चार चार मौतें हुईं. एसकेएमसीएच और केजरीवाल हॉस्पिटल में कुल मिलाकर 54 नए मरीज भर्ती हुए. एसकेएमसीएच में 34 और केजरीवाल हॉस्पिटल में 20 नए बच्चे भर्ती कराए गए हैं. चमकी के नाम से भी जाने-जाने वाले इस बुखार के 297 मामले सामने आ चुके हैं. इनमें 93 बच्चों ने दम तोड़ दिया. हालांकि, सरकारी जानकारी के मुताबिक अभी 220 मामले ही सामने हैं जिनमें 62 बच्चों की मौत हुई है. रविवार के आंकड़े अभी तक नहीं आए हैं.


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मंत्री और हॉस्पिटल के अपने अपने दावे

बिहार के नगर विकास एंवम् आवास मंत्री सुरेश शर्मा ने मीडिया से कहा कि सरकार इस बीमारी के ख़िलाफ़ शुरू से काम कर रही है. उन्होंने कहा कि दवाओं की कोई कमी नहीं है लेकिन उन्होंने माना कि वर्तमान में जैसे इमरजेंसी के हालात बने हुए हैं उसके लिहाज़ से बिस्तरों और आईसीयू की कमी है.

हालांकि, हॉस्पिटल प्रशासन ने दिप्रिंट से बातचीत में मंत्री शर्मा की बात को ग़लत ठहराते हुए दावा किया कि पहले दो आईसीयू थे और अब पांच काम कर रहे हैं. जिन मरीज़ों को सांस लेने में दिक्कत होती है उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट देना पड़ता है. प्रशासन का दावा है, ‘हमारे यहां चार वेंटिलेटर हैं.’ तय करना मुश्किल है कि सुरेश शर्मा सच बोल रहे हैं हॉस्पिटल का प्रशासन.

क्या है ये बीमारी और क्या है इसकी वजह

डॉक्टर (रि.) बृजमोहन ने कहा कि ये सारे मामले हाइपरग्लेसेमिया के हैं. इसमें ब्लड में शुगर की मात्रा घट जाती है और बोनस ग्लुकोज़ चढ़ाने से बच्चे ठीक हो जाते हैं. कॉन्ट्रैक्ट पर अभी भी एसकेएमसीएच को सेवा दे रहे डॉक्टर (रि.) बृजमोहन का दावा है कि ज़्यादातर मौतें देर से आने की वजह से होती हैं. दावा है कि यहां आने के पहले परिवार वाले झाड़-फूक और झोलाछाप डॉक्टरों का सहारा लेते हैं.

डॉक्टर बृजमोहन के मुताबिक इसका पता नहीं लगाया जा सका है कि ये बीमारी किस वजह से होती है. इस बीमारी के पीछे लीची को एक वजह बताया गया है. लेकिन उनके मुताबिक इसे कारण मानना असंभव है. उन्होंने कहा , ‘हाइपरग्लेसेमिया के सबसे ज़्यादा मामले 2014 में सामने आए. तब करीब 800 बच्चे बीमार हुए थे. इस बीमारी से जुड़े सबसे पहले मामले 1994 में आए थे जब करीब 400 से अधिक केस समाने आए थे.’

ये भी जानकारी मिली कि दिल्ली की नेशनल कम्युनिकेबल डिज़ीज की टीम ने 2014 के ऑउटब्रेक के दौरान कहा था कि ये किसी एक कारण से नहीं हो रहा बल्कि इस बीमारी के पीछे कई वजहें हैं. 2014 में ऐसे 700 के करीब मामले आए थे जिनमें से 150 से अधिक की जानें चली गई थीं. हालांकि, 2014 से जुड़ा सरकारी आंकड़ा 342 का है.

लगातार दौरा कर रहे हैं स्वास्थ्य मंत्री पांडे, रविवार को केंद्रीय मंत्री भी पहुंचे

साभार: वरिष्ठ पत्रकार, अमरेंद्र तिवारी

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन एसकेएमसीएच में बच्चों का हाल जानने पहुंचे. उनके साथ राज्य स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, सांसद अजय निषाद भी मौजूद थे. सबने पीआईसीयू में भर्ती बच्चों और उनके परिवार वालों से जानकारी ली. मिली जानकारी के मुताबिक मंत्री मामले पर उच्चस्तरीय बैठक करेंगे. देखने वाली बात होगी कि क्या ऐसी बैठक बच्चों के सिलसिलेवार मौत को रोकने का काम कर पाएगी?

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