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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशबिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों का आंकड़ा जुटाएंगे DM, पीड़ित परिजनों को देंगे 4 लाख: एक्साइज मंत्री सुनील कुमार

बिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों का आंकड़ा जुटाएंगे DM, पीड़ित परिजनों को देंगे 4 लाख: एक्साइज मंत्री सुनील कुमार

बिहार सरकार ने मुआवाजा देने का निर्णय तब लिया है जब हाल ही में मोतिहारी में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की जान चली गई.

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पटना: बिहार सरकार ने ‘मानवता’ के आधार पर अपना कड़ा रुख बदलते हुए शराब पीने से जिन लोगों की राज्य में बीते सालों में मौत हुई है, उनके परिवारों को 4 लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया है. राज्य के मद्य, निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के मंत्री सुनील कुमार ने एक इंटरव्यू में दिप्रिंट को यह बताया.

पटना के विकास भवन में स्थित अपने दफ्तर में कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि इस दिशा में काम जारी है. राज्य के सभी जिलाधिकारियों को एक अप्रैल 2016 के बाद शराब पीने से हुई मौतों के आंकड़े जुटाने को कहा गया है. 2016 में ही राज्य में शराबबंदी लागू हुई थी.

उन्होंने कहा, “पोस्ट-मार्टम और सर्कमस्टेंशियल (परिस्थितिजन्य) सबूतों के आधार पर डीएम यह तय करेंगे कि बीते सात सालों में जहरीली शराब पीने से किन लोगों की मौत हुई है.” बता दें कि मुख्यमंत्री राहत कोष से मुआवजे की रकम पीड़ित परिवारों को दी जाएगी.

बिहार सरकार ने यह निर्णय तब लिया है जब हाल ही में राज्य में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की जान चली गई. अभी तक पूर्वी चंपारण के मोतिहारी में 31 लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हो चुकी है.

इस घटना के मद्देनजर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 17 अप्रैल को मुआवजे का ऐलान किया लेकिन इस शर्त के साथ कि पीड़ित परिवार जिला मजिस्ट्रेट को लिखित में देंगे की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है. वहीं उन्हें ये भी बताना होगा कि शराब कहां से खरीदी गई. हालांकि मुख्यमंत्री ने कहा कि वह इन मौतों से काफी दुखी हैं.

यह निर्णय नीतीश कुमार के बीते वक्त में दिए बयानों के बिल्कुल विपरीत है. पिछले साल दिसंबर में सारण में जहरीली शराब के कारण लगभग 50 लोगों की मौत हुई थी. उस वक्त नीतीश कुमार ने कहा था कि ‘जो पीएगा वो मरेगा ‘. उनके इस बयान की काफी आलोचना भी हुई थी.

क्या शराबबंदी कानून में कोई ढील देने की कोशिश हो रही है? सुनील कुमार ने इससे इनकार किया है.

उन्होंने कहा, “कानून में कोई बदलाव नहीं किया गया है. यह निर्णय मानवता के आधार पर लिया गया है क्योंकि ज्यादातर पीड़ित कमजोर वर्ग से आते हैं.”

उन्होंने माना कि “काफी लोगों ने डर के मारे अपने परिजनों का प्रशासन को जानकारी दिए बिना अंतिम संस्कार कर दिया” लेकिन साथ ही कहा कि 17 अप्रैल 2023 के बाद जो भी मौत होगी उसमें पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट के आधार पर ही मुआवजा दिया जाएगा.


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‘यूपी, एमपी, पंजाब में शराब से ज्यादा मौत होती है’

1987 बैच के एक पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी सुनील कुमार, जो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हुए, अभी भी पुलिसिंग में सक्रिय रुचि लेते हैं.

पिछले हफ्ते उन्होंने मोतिहारी का दौरा किया और स्थानीय प्रशासन को आदेश दिया कि जो भी जहरीली शराब की बिक्री से जुड़ा है, उसे गिरफ्तार किया जाए.

उन्होंने कहा, “शराबबंदी का जहरीली शराब से कोई लेना देना नहीं है. अवैध कमाई इसका ड्राइविंग फोर्स है.”

कुमार ने कहा, “पिछले सात सालों में हमने लाखों लीटर शराब पकड़ी है. वहीं 230 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को या तो कड़ी सजा दी गई है या निलंबित किया गया है, जो शराब माफिया के साथ मिले थे.”

सुनील कुमार ने शराबबंदी को पूरी तरह लागू न कर पाने में बिहार से लगी अलग-अलग राज्यों की सीमाओं को कारण बताया. उन्होंने कहा कि बिहार की नेपाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से सीमा लगती है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “हमने एंटी-लिकर टास्क फोर्स का गठन किया है वहीं राज्य भर में 84 चेक पोस्ट बनाएं हैं, 74 स्पेशल कोर्ट बनाए हैं. और दूसरे राज्यों से अवैध शराब की बिक्री करने वाले 500 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी की है.”

फिर भी, आलोचकों ने राज्य में शराब से होने वाली मौतों के लिए शराबबंदी को जिम्मेदार ठहराया है, यह तर्क देते हुए कि प्रतिबंध ने बिना किसी नियमन के बूटलेगरों को काम करने में मदद की है, और यह गरीब लोग हैं जो सस्ती स्थानीय शराब खरीदते हैं जो असमान रूप से प्रभावित होते हैं. पिछले साल अक्टूबर में, पटना हाई कोर्ट ने भी एक आदेश में कहा था कि कानून शराब माफियाओं के बजाय गरीब लोगों को टार्गेट करता है और प्रतिबंध के बाद ड्रग कल्चर बढ़ रहा है.

शराब से संबंधित मौतों के बारे में पूछे जाने पर, सुनील कुमार कहते हैं कि 2021 और 2022 में मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई, लेकिन दावा किया कि कुछ अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में हताहतों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी.

उन्होंने कहा, “2016 से 2022 के बीच, बिहार में शराब पीने से होने वाली मौतें अन्य राज्यों की तुलना में बहुत कम रही हैं. यहां से ज्यादा मौतें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पंजाब में हुई हैं, जबकि यहां कोई पाबंदी नहीं है.”

यह ध्यान देने वाली बात है कि बिहार में जहरीली शराब से होने वाली मौतों के आंकड़े मिलना मुश्किल है. भाजपा सांसद और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने पिछले दिसंबर में सारण त्रासदी के बाद दावा किया था कि शराबबंदी लागू होने के बाद राज्य में नकली शराब के कारण “1,000 से अधिक लोग” मरे थे. वहीं राज्य सरकार ने दावा किया है कि यह संख्या लगभग 200 है.

चौंकाने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान बिहार में जहरीली शराब से केवल 23 लोगों की मौत हुई है.


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अदालतों में लंबित पड़े मामले

जबकि बिहार में शराब से संबंधित गिरफ्तारियां काफी संख्या में हुई हैं. राज्य की न्यायिक प्रणाली बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 के तहत लंबित मामलों से पटी पड़ी है. सजा की दर भी काफी कम है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2016 से अक्टूबर 2022 के बीच शराब कानून के तहत 4 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. सुनवाई के लिए गए 1.4 लाख मामलों में से 1 प्रतिशत से भी कम को सजा मिली है.

लंबित मामलों के बारे में पूछे जाने पर सुनील कुमार ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. हालांकि, उन्होंने बताया कि कानून में तीन बार संशोधन किया गया है.

उन्होंने कहा, “समय के साथ स्थितियां बदलती हैं. हमने उन लोगों को राहत दी जो पहली बार शराब पीते हुए पकड़े गए थे. इसके लिए कानून में भी संशोधन किया गया.”

संशोधन के अनुसार पहली बार शराब पीकर पकड़े गए लोगों को सिर्फ जुर्माना देकर छोड़ देने की बात है. पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य की अदालतों में शराब के मामलों पर बिहार सरकार को जमकर फटकार लगाई गई थी, जिसके बाद संशोधन किया गया.


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‘90% से ज्यादा लोग करते हैं शराबबंदी का समर्थन’

सुनील कुमार का दावा है कि शराबबंदी लागू होने के बाद से बिहार में घरेलू हिंसा, दुर्घटनाओं और “छेड़छाड़” की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी देखी गई है.

यही कारण है कि अधिकांश लोग, विशेषकर महिलाएं, शराबबंदी का समर्थन करते हैं. उन्होंने चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (सीएनएलयू) द्वारा पिछले साल सभी 38 जिलों में शराबबंदी के प्रभाव पर किए गए एक सर्वेक्षण के निष्कर्षों का जिक्र करते हुए यह बात कही.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “सर्वेक्षण के अनुसार, 90 प्रतिशत से अधिक लोग, विशेषकर महिलाएं शराबबंदी के पक्ष में हैं.”

उन्होंने कहा, “जब मुख्यमंत्री ने समाधान यात्रा निकाली, तो महिलाओं ने खुले तौर पर (शराबबंदी) की सराहना की. हालांकि, लोगों ने मांग की कि राज्य सरकार इन मामलों पर कड़ी कार्रवाई करे.”

सीएम नीतीश कुमार शराबबंदी और अन्य मुद्दों पर लोगों की नब्ज जानने के लिए पिछली जनवरी में समाधान यात्रा पर राज्य व्यापी दौरे पर गए थे.

मोतिहारी में हुई हालिया घटना के बाद विपक्ष नए सिरे से कानून को लेकर सवाल उठा रहा है.

22 अप्रैल को भाजपा के सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट कर नीतीश कुमार से शराबबंदी को लेकर 10 सवाल पूछे. उन्होंने कहा कि अमीर लोग आसानी से छूट जाते हैं जबकि शराबबंदी कानून के तहत केवल गरीबों को ही जेल में डाला जा रहा है.

हालांकि सुनील कुमार ने कहा कि कुछ असंतोष तो हमेशा ही रहते हैं.

उन्होंने कहा, “आप कोई भी कानून लाते हैं तो उसका विरोध होता ही है, चाहे वो सामाजिक नजरिए से हो या आर्थिक नजरिए से. लेकिन बिहार में हर किसी पार्टी ने इसका समर्थन किया है.”

साथ ही कुमार ने कहा कि शराबबंदी एक ‘सामाजिक कानून’ है जो राजनीतिक इच्छाशक्ति के पूरा नहीं हो सकता था. उन्होंने कहा, “हमारे नेता (नीतीश कुमार) ने ये इच्छाशक्ति दिखाई है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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