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Thursday, 7 November, 2024
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बिहार: बुजुर्ग माता-पिता को किया परेशान तो खानी पड़ेगी जेल की हवा

बच्चों की प्रताड़ना झेल रहे बुजुर्गों को न्याय के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता था लेकिन अब यह मामला डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी सुलझा सकते हैं.

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नई दिल्ली: बुढ़ापे में मां-बाप को घर से बाहर का रास्ता दिखा देने वाले और उनकी सेवा न करने वाले बेटे-बेटियों की खैर नहीं. बिहार में ऐसा करना महंगा पड़ सकता है और जेल भी जानी पड़ सकती है. बिहार मंत्रिमंडल में यह फैसला लिया गया कि बिहार में रहने वाली संतानें अगर अब माता-पिता की सेवा नहीं करेंगी तो उन्हें जेल की सजा हो सकती है. माता-पिता की शिकायत मिलते ही ऐसी संतानों पर कार्रवाई होगी.

बेटे-बेटियों और निकट संबंधियों से प्रताड़ित होनेवाले बुजुर्ग अपनी प्रताड़ना को लेकर अब डीएम के पास न केवल अपील कर सकेंगे बल्कि प्रताड़ना झेल रहे माता-पिता को अब अपनी शिकायत के लिए परिवार न्यायालय जाने की जरूरत भी नहीं रही है. बच्चों की प्रताड़ना झेल रहे बुजुर्गों को न्याय के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता था लेकिन अब यह मामला डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी सुलझा सकते हैं. राज्य सरकार ने कानूनविदों की सलाह के बाद परिवार न्यायालय से इस मामले की सुनवाई का अधिकार डीएम को सौंप दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को आयोजित कैबिनेट की बैठक में समाज कल्याण विभाग के प्रस्ताव पर माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम-2007 के तहत में गठित अपील अधिकरण के अध्यक्ष अब डीएम को बनाने की मंजूरी दी गयी. इस बैठक में कुल 15 एजेंडों पर मुहर लगाई गई.

इसमें माता-पिता और वरीय नागरिकों के भरण-पोषण और सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी संतान या निकट संबंधी द्वारा नहीं निभाने पर वे अनुमंडल स्तर पर एसडीओ की अध्यक्षता में गठित ट्रिब्युनल में आवेदन कर सकते थे. एसडीओ के ट्रिब्यूनल के फैसले का पालन नहीं होने पर माता-पिता व वरीय नागरिकों को जिले के परिवार न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के कोर्ट में अपील के लिए जाना पड़ता था.

बता दें कि बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित कर रहे बच्चों को सजा दिलाने के लिए बिहार में 2007 में कानून बनाया गया था. लेकिन देखा गया कि अभी तक इस कानून के तहत कोई भी वरिष्ठ नागरिक फैमिली कोर्ट नहीं पहुंचा है और न ही संतान के खिलाफ कोई अपील ही की है. उनके पास साधन नहीं थे या कोर्ट के चक्कर में वह अदालत जाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. इसे देखते हुए विभाग ने कानूनविदों से राय लेकर अपनी अनुशंसा राज्य सरकार के पास भेजी, जिसकी स्वीकृति मिल गयी है. अब डीएम के पास कोई भी वरीष्ठ नागरिक सरलता से पहुंच सकता है और अपनी बात कह सकता है.

अधिक से अधिक बुजुर्ग अपनी शिकायत लेकर पहुंचे इसे देखते हुए यह शक्ति डीएम को दी गई है. इससे एक बड़ा फायदा होगा कि समाज कल्याण विभाग भी समय-समय पर माता-पिता व वरीष्ठ नागरिकों की समस्याओं की देख-रेख कर सकेगा. फैमिली कोर्ट में होने की वजह से विभाग उसकी समीक्षा नहीं कर पा रहा था.

2007 के एक्ट में क्या है नियम

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम-2007 की धारा 25 (2) में सजा का प्रावधान  है. इसके मुताबिक बुजुर्ग मां-बाप को परेशान करने वाली औलादों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. और यह जमानती अपराध है. इस मामले में दोषी को थाने से भी जमानत मिल सकती है. लेकिन इस मामले में माता-पिता बच्चे को पैतृक संपत्ति से बेदखल भी कर सकता है.

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