पटना: बॉलीवुड सेट डिज़ाइनर से राजनेता बने मुकेश साहनी, जो नीतीश कुमार सरकार में एक मंत्री हैं,वह अब राज्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता के निशाने पर हैं.
यूपी असेम्बली चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधने के कारण, बीजेपी साहनी से बेहद नाराज़ है.
रविवार को, बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने साहनी को हटाने की मांग की, जिनका राजनीतिक संगठन विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), बिहार असेम्बली चुनावों में बीजेपी का सहयोगी था.
पटेल ने दिप्रिंट से कहा, ‘या तो मुकेश साहनी को छोड़ देना चाहिए, या सीएम को उन्हें बर्ख़ास्त कर देना चाहिए. उन्होंने यूपी में पीएम मोदी और सीएम योगी के खिलाफ बयान दिए हैं. उनकी पार्टी ने अख़बारों में विज्ञापन दिया, जिसमें उनके समुदाय (निषाद) से अपील की गई थी कि अगर वो उनकी पार्टी को वोट नहीं दे सकते, तो फिर उन्हें उस पार्टी को वोट देना चाहिए, जो बीजेपी को हरा सकती हो. ये गठबंधन के धर्म के विरुद्ध है’.
वरिष्ठ बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह ने कहा, ‘मुकेश साहनी ने वो तमाम सीमाएं तोड़ दी हैं जिनकी गठबंधन में अनुमति होती है. अब कुछ नहीं बचा है’.
2020 असेम्बली चुनावों से पहले, साहनी की वीआईपी पार्टी ने महागठबंधन छोड़ दिया था, और भारतीय जनता पार्टी के साथ हाथ मिला लिया था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के तहत पार्टी ने अपने कोटे से, चुनाव लड़ने के लिए उन्हें 12 असेम्बली सीटें दीं थीं. वीआईपी ने चार सीटें जीतीं लेकिन ख़ुद साहनी हार गए. इसलिए बीजेपी ने उन्हें अपने कोटे से उन्हें एमएलसी बना दिया, और वो पशुपालन एवं मत्स्यपालन मंत्री बन गए.
दो महीने पहले, उनके एक विधायक मुसाफिर पासवान की बीमारी से मौत हो गई. उस सीट के उपचुनाव अप्रैल में होने हैं. लेकिन इस बार, बीजेपी उन्हें वो सीट देने की इच्छुक नहीं है.
सिंह ने कहा, ‘हमारा एक अपना उम्मीदवार है, जो उस सीट से सिटिंग विधायक था, जिसके बाद हमने उसे वीआईपी को दिया था’.
UP चुनावों के बाद शुरू हुई मुसीबत
साहनी और बीजेपी के रिश्तों में यूपी चुनावों से पहले खटास आनी शुरू हो गई थी. साहनी को उम्मीद थी कि बीजेपी उन्हें ख़ासकर पूर्वी यूपी में कुछ सीटें देगी, जहां एक बड़ी निषाद आबादी है, जिस समुदाय से साहनी आते हैं.
बीजेपी सूत्रों ने कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ का रवैया, साहनी के प्रति ठंडा पड़ गया था, और उन्होंने संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ गठबंधन करना पसंद किया, जिसने अंत में यूपी विधान सभा चुनावों में 6 सीटें जीतीं, जिनके नतीजे 10 मार्च को घोषित किए गए.
साहनी ने फिर यूपी चुनावों में अपने 56 उम्मीदवार उतारे, और ऐलान किया कि वो 2022 में आदित्यनाथ, और 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी को हटा देंगे. नतीजों की तालिका में साहनी के हाथ कुछ नहीं लगा, लेकिन एक को छोड़कर उनके बाक़ी सभी उम्मीदवार, अपनी ज़मानतें बचाने में सफल रहे.
उसके बाद से ही प्रदेश के बीजेपी नेता उनके पीछे पड़े हुए हैं.
बीजेपी मंत्री सम्राट चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम ऐसे आदमी को कैसे छोड़ सकते हैं, जिसने पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां कीं’.
साहनी के बग़ावती तेवर
साहनी एक मुश्किल स्थिति में हैं. उनका एमएलसी कार्यकाल जून में पूरा हो रहा है, और अगर बीजेपी उन्हें नहीं दोहराती, तो उनका मंत्रालय भी चला जाएगा. उनके सभी तीन विधायक पूर्व बीजेपी नेता हैं, और अगर साहनी को हटाया जाता है, तो विधायकों के उनके पीछे जाने की संभावना नहीं है.
लेकिन, यूपी चुनावों तथा उनकी बर्ख़ास्तगी की मांग से अडिग, साहनी ने अब आगे बढ़कर झारखंड में पार्टी इकाई खड़ी कर दी है.
वहां भी, उन्होंने ये ऐलान करके बीजेपी को और नाराज़ कर दिया, कि वो सीएम नीतीश कुमार के प्रमुख विरोधी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुखिया, लालू प्रसाद के राजनीतिक दर्शन में विश्वास रखते हैं.
आरजेडी की प्रतिक्रिया ठंडी रही है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने शनिवार को पत्रकारों से कहा, ‘मैंने इसके (साहनी और बीजेपी के बीच गतिरोध) बारे में सुना है. लेकिन मेरे पास इन बातों के लिए समय नहीं है’.
साहनी के राजनीतिक सलाहकार देव ज्योति ने दिप्रिंट से कहा, ‘बिहार बीजेपी नेता क्या कहते हैं उससे फर्क नहीं पड़ता. ये गठबंधन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से बातचीत के बाद बना था. नड्डा जी को बयान देने दीजिए कि हम अब एनडीए का हिस्सा नहीं है, फिर गठबंधन ख़त्म हो जाएगा’.
ज्योति ने कहा, ‘हम एक लंबे समय से मल्लाह समाज के लिए एससी दर्जे की मांग करते आ रहे हैं. बीजेपी ने हमसे वादा किया था, कि वो समुदाय को एससी का दर्जा देगी, लेकिन अभी तक उसने ऐसा नहीं किया है’.
कौन हैं मुकेश साहनी?
साहनी का जीवन एक रंक से राजा बनने की कहानी है. दरभंगा के एक ग़रीब ‘मल्लाह’ (मछुआरे) समाज से आने वाले साहनी, 19 साल की उम्र में ही मुम्बई के लिए निकल गए थे. पहले उन्होंने मज़दूरी का काम किया, और अपनी खुद की फिल्म सेट प्रोडक्शन कंपनी शुरू कर दी.
2013 में, वो अख़बारों में पहले पन्ने के एक विज्ञापन के ज़रिए, बिहार के लोगों के सामने आए, और ‘मल्लाह के बेटे’ के तौर पर अपनी पहचान कराई. उन्होंने पटना में एक बड़ी रैली आयोजित की, और एक चॉपर में बैठकर रैली स्थल पहुंचे.
लेकिन, उनकी राजनीति बदलती रही है. 2015 के असेम्बली चुनावों में वो बीजेपी के साथ थे, और पीएम मोदी के साथ मंच साझा कर रहे थे. 2019 में वो विपक्षी महागठबंधन के साथ हो गए. 2020 के प्रदेश चुनावों में सीटों के बटवारे की घोषिणा होने तक वो महागठबंधन के साथ थे. फिर उन्होंने ये आरोप लगाते हुए गठबंधन छोड़ दिया, कि तेजस्वी यादव ने उनकी पीठ में छुरा भोंका है, और वापस बीजेपी के पास चले गए.
एक बीजेपी विधायक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘मुकेश साहनी की साख ख़त्म हो चुकी है, और अब कोई उनपर भरोसा नहीं करता’. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पार्टी के पास पहले ही, मुज़फ्फरपुर सांसद अजय निषाद के रूप में, एक मज़बूत निषाद नेता मौजूद है.
JD(U) फिलहाल ख़ामोश
नीतीश कुमार का सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) इस मामले में बचकर चल रहा है.
जेडी(यू) एमएलसी नीरज कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘हां, हमने उन्हें हटाए जाने की मांग करने वाले बीजेपी नेताओं के बयान देखे हैं, लेकिन वो निर्णय एनडीए नेतृत्व को लेना है. फिलहाल, मैं तो इस पर कोई टिप्पणी करने के योग्य भी नहीं हूं’.
लेकिन, जेडी(यू) सूत्रों ने कहा, कि अगर ये मांग बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से आ जाए, तो बिहार सीएम के पास उसे मानने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा.
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