नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में मौजूदा गतिरोध शीर्ष अदालत में नई नियुक्तियां के सामने बाधा बने हुए है. भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ के पास 18 रिक्तियों को भरने के लिए दो साल का समय होगा. इसमें से चार पद तो वर्तमान में खाली हैं और बाकी के 14 पद अक्टूबर 2022 और सितंबर 2024 के बीच रिक्त होने वाले हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ 8 नवंबर को भारत के 50वें CJI के रूप में शपथ लेंगे और ठीक दो साल बाद 9 नवंबर 2024 को अपना पद छोड़ देंगे. 14 आसन्न रिक्तियों में से – इस साल के अंत में दो, 2023 में नौ और 2024 में तीन और आखिरी पद उनकी सेवानिवृत्ति से ठीक दो महीने पहले, सितंबर 2024 को खाली होगा.
सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकृत पदों की संख्या 34 है. अगले महीने सीजेआई यूयू ललित सहित दो और न्यायाधीशों के रिटायर हो जाने बाद यह संख्या (29) घटकर 27 हो जाने की संभावना है.
ललित के नेतृत्व वाला वर्तमान कॉलेजियम दो कारणों से शीर्ष अदालत में कोई नया न्यायाधीश नियुक्त नहीं कर सकता है. पहला कारण उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया को लेकर कॉलेजियम के सदस्यों के बीच चल रहा गतिरोध है. तो वहीं इसका दूसरा कारण, एक निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश के पद से एक महीने पहले नई नियुक्तियों पर विचार-विमर्श करने के लिए कोई बैठक नहीं करने की सदियों पुरानी परंपरा है.
ललित का कार्यकाल 7 नवंबर को खत्म हो जाएगा. इसका अर्थ है कि वह 7 अक्टूबर के बाद नियुक्तियों के लिए कोई बैठक नहीं बुला सकते हैं. अदालतें वैसे भी दशहरा अवकाश पर हैं और 10 अक्टूबर को ही फिर से काम शुरू कर पाएंगी.
उधर अगले सीजेआई को नामित करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ललित को एक पत्र लिखकर उत्तराधिकारी की सिफारिश करने के लिए कहा है.
एक महीने पहले नई नियुक्ति न किए जाने के इसी नियम के कारण ललित के पूर्ववर्ती, सीजेआई एन.वी. रमण को उनके सहयोगियों ने उनके कार्यकाल के अंत में नई नियुक्तियां करने से रोक दिया था. इसी तरह CJI एसए बोबडे को कॉलेजियम में उनके सहयोगियों ने अप्रैल 2021 में शीर्ष अदालत के लिए नामों को अंतिम रूप देने के लिए एक बैठक आयोजित करने से रोका था.
दोनों मौकों पर CJI ललित कॉलेजियम का हिस्सा थे. कॉलेजियम पांच सदस्यीय उच्चस्तरीय नियुक्ति पैनल है जिसमें शीर्ष अदालत के सीनियर-मोस्ट जज शामिल होते हैं.
CJI ललित के प्रपोजल पर कॉलेजियम को आपत्ति
नई नियुक्तियों को लेकर कॉलेजियम के सदस्यों के बीच मतभेद पिछले हफ्ते तब सामने आया जब इसके दो सदस्यों ने CJI ललित के ‘अभूतपूर्व’ प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए चार व्यक्तियों को शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नत करने के लिए उनकी लिखित सहमति मांगी.
एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए जर्मनी के म्यूनिख शहर जाने से पहले 30 सितंबर को लिखे एक पत्र में CJI ललित ने कॉलेजियम के सदस्यों को एक लिखित प्रस्ताव भेजा. इसमें शीर्ष अदालत में चार मौजूदा रिक्त पदों को भरने की मंजूरी मांगी गई थी. वर्तमान कॉलेजियम के चार न्यायाधीशों में से एक ने प्रस्ताव का समर्थन किया लेकिन दो ने इस पर आपत्ति जताई और चौथे जज ने कहा कि वह शहर से बाहर हैं और नई दिल्ली लौटने पर ही अपने विचार साझा करेंगे.
कॉलेजियम के सदस्यों से लिखित सहमति लेने के ललित के प्रस्ताव की निंदा करने वाले दो न्यायाधीशों ने कहा कि उच्च संवैधानिक पद और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति कभी भी सर्कुलेशन के जरिए नहीं की जानी चाहिए. उनके मुताबिक, शीर्ष अदालत में नियुक्तियों पर आम सहमति तक पहुंचने के लिए मिलकर विचार-विमर्श करने की लंबी प्रथा को ही अपनाया जाना चाहिए.
इसके अलावा दोनों न्यायाधीशों ने इस आधार पर अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया कि उनका मानना है कि ललित द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया ‘संवैधानिक रूप से त्रुटिपूर्ण’ थी. न्यायाधीशों ने हालांकि जोर देकर कहा कि उन्हें मुख्य न्यायाधीश द्वारा सुझाए गए नामों पर कोई आपत्ति नहीं है.
हालांकि ललित ने वापस लिखा और दोनों जजों को अपने विचारों पर फिर से विचार करने के लिए कहा. सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ललित ने अभी तक उनके पत्र का जवाब नहीं दिया है.
ललित शायद एक अक्टूबर को एक पत्र लिखने के लिए मजबूर हो गए क्योंकि 29 सितंबर को कॉलेजियम के सदस्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ अदालत में भारी काम के बोझ के कारण नियुक्तियों पर चर्चा करने के लिए पूर्व निर्धारित बैठक के लिए अनुपलब्ध थे.
ललित ने जोर देकर कहा कि उनके द्वारा सुझाए गए चार नामों को अंतिम रूप दे दिया गया है, लेकिन कॉलेजियम के कुछ सदस्य कुछ और ही कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले की बैठकों में 11 नामों पर चर्चा की गई थी और उम्मीदवारों द्वारा लिखे गए निर्णयों को कॉलेजियम के सदस्यों के मूल्यांकन के लिए सर्कुलेट किया गया था, लेकिन सदस्य भारी काम के बोझ के कारण उसका अवलोकन नहीं कर पाए.
इसके अलावा एक वरिष्ठ अधिवक्ता की नियुक्ति पर भी आपत्तियां उठाई गई हैं, जो अब नियुक्त होने पर 2030 में सीजेआई बन सकते हैं. सूत्रों ने कहा कि एक वकील को ऐसे समय में पदोन्नत करना आदर्श नहीं होगा जब संवैधानिक अदालतों में काफी अनुभव वाले उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश कतार में हों.
न्यायमूर्ति ललित के सीजेआई के रूप में पदभार संभालने के एक महीने से भी कम समय में उनके नेतृत्व वाला कॉलेजियम बॉम्बे एचसी के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता को शीर्ष अदालत में पदोन्नत करने की सिफारिश की गई थी.
हालांकि, सरकार ने अभी तक जस्टिस दत्ता की नियुक्ति को अधिसूचित नहीं किया है.
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