scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमदेशछत्तीसगढ़ सरकार वनाधिकार एक्ट 2006 लागू कर जनजातियों को देगी जंगल पर अधिकार, स्वागत के साथ आशंका भी

छत्तीसगढ़ सरकार वनाधिकार एक्ट 2006 लागू कर जनजातियों को देगी जंगल पर अधिकार, स्वागत के साथ आशंका भी

छत्तीसगढ़ सरकार ने वनवासियों और प्रदेश के वनों में रहने वाली पारंपरिक जनजातियों को वनों का प्रबंधन अधिकार कम्युनिटी फारेस्ट रिसोर्सेज राइट (सीएफआरआर) देने का निर्णय लिया है.

Text Size:

रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार ने वनवासियों और प्रदेश के वनों में रहने वाली पारंपरिक जनजातियों को वनों का प्रबंधन अधिकार कम्युनिटी फारेस्ट रिसोर्सेज राइट (सीएफआरआर) देने का निर्णय लिया है. यदि ऐसा होता है तो छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य होगा जो 2006 में भारत सरकार द्वारा पारित वनाधिकार अधिनियम के तहत वनों में रहने वाले परंपरागत वनवासियों को उनके निस्तारी वाले वन क्षेत्रों के प्रबंधन का अधिकार देगा. इससे पहले महाराष्ट्र सरकार द्वारा ऐसा ही निर्णय लिया गया था जो सरकारी हीला हवाली के चलते कारगर नहीं हो पाया था. हालांकि राज्य में सीएफआरआर सीमित दायरे में होगा क्योंकि वन ग्रामवासी इसका प्रयोग सिर्फ सामुदायिक स्तर पर ही कर पाएंगे.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के स्वयं लिये गए इस निर्णय के पीछे की मंशा आदिवासी समुदाय में अपनी पैठ और मजबूत करना है लेकिन यह वनांचलों में रहने वाले ग्रामीणों के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.

गौरतलब है कि अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी, वन अधिकारों की मान्यता, अधिनियम 2006 वनांचलों में रहने वाले सभी ग्रामवासियों को उनके जमीनों और वनोपज के हक-हकूकों की पूरी वकालत करता है लेकिन राज्य सरकार के वर्तमान निर्णय के मुताबिक इसका दायरा अभी सिर्फ ग्रामसभा द्वारा संचालित गतिविधियों तक ही सीमित रखा गया है. इसके तहत वनांचल में रहने वाले लोगों को वनों के संरक्षण, प्रबंधन में गांव के लोगों की भागीदारी और लघु वनोपज के दोहन के लिए ग्राम सभाओं को सामुदायिक वन अधिकार दिया जाएगा.


यह भी पढ़ेंः छत्तीसगढ़ में बदहाल क्वारेंटाइन सेंटर- कोविड-19 से नहीं, सांप काटने, आत्महत्या, गर्मी से जा रही हैं जानें


वनाधिकार अधिनियम 2006 लागू करने वाले आदेश की कॉपी.

वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा इस निर्णय के क्रियान्वयन की प्रक्रिया तय कर ली गई है और इसे जल्द ही लागू कर दिया जाएगा. राज्य सरकार ने वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत ग्रामसभाओं के माध्यम से सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के इस निर्णय को जमीन पर उतारने के लिए वन विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है.

वन विभाग के कुछ अधिकारियों ने दिप्रिंट को यह बताया है कि इस निर्णय से वनांचलों की ग्रामसभाओं को अब एक प्रकार से उनके क्षेत्रों में आने वाले सभी प्रकार के वन संसाधनों के दोहन का मालिकाना हक मिल जाएगा. वर्तमान में आदिवासी अंचलों के ग्रामीणों को अपने जमीनों और उनके वन क्षेत्र में इमरती लकड़ी के दोहन का अधिकार नही है. यहां तक की लघु वनोपजों का दोहन ये ग्रामीण स्वयं नहीं कर सकते, वन विभाग के अधिकारियों की देख-रेख में करने को बाध्य हैं जबकि वे उन क्षेत्रों में परंपरागत रूप से दशकों से रहते आए हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए इस संबंध में वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) राकेश चतुर्वेदी ने बताया, ‘राज्य ट्राइबल अफेयर विभाग द्वारा वन विभाग के सहयोग से ग्राम सभा को सामुदायिक संसाधन वनाधिकार (सीएफआरआर) प्रदान करने के लिए तय की गई प्रक्रिया के अनुसार गांवों की पारंपरिक सीमा का निर्धारण किया जाएगा.

‘इसके तहत एक से अधिक ग्राम सभा भी आ सकते हैं जो अपने अधिकार क्षेत्र का दावा अलग-अलग और संयुक्त रूप से भी कर सकते हैं. अपने अधिकार के लिए संबंधित ग्राम सभा की वन अधिकार समिति अपने गांव की सीमा से लगे अन्य ग्राम सभाओं को लिखित में सूचित करेगी. इसके बाद एक दूसरे के सहयोग से बैठक आयोजित कर नक्शा तैयार करेंगे और तभी उनके द्वारा वन संसाधनों के दोहन के लिए तैयार किये गए वर्क प्लान को लागू किया जाएगा.’

सरकार ने किया आदेश में संशोधन

छ्त्तीसगढ़ सरकार ने सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के लिए वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाए जाने के अपने पूर्व आदेश को वापस ले लिया है. सरकार द्वारा 1 जून को जारी नए आदेश में वन विभाग को नोडल एजेंसी के स्थान पर समन्वय का कार्य सौपा गया है. इस सबंध में राकेश चतुर्वेदी ने दिप्रिंट से कहा, ‘पहले जारी आदेश में कुछ कमी थी जिसे ठीक कर लिया गया है. वन विभाग का काम मात्र समन्वय का रहेगा.’

‘ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी वन क्षेत्र की पूरी जानकारी विभाग के पास ही रहती है. सीएफआरआर के लिए ग्राम सभाओं की सीमाएं तय करने के लिए भी डाटा वन विभाग के पास सी मौजूद है. ‘

वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और राज्य वन्यजीव प्रतिपालक अरुण कुमार पांडेय कहतें हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं कि देश में किसी सरकार द्वारा लिया गया यह एक ऐतिहासिक फैसला है. हालांकि ऐसा निर्णय पूर्व में किसी एक अन्य राज्य में भी लिया गया था लेकिन वह बहुत ही सीमित दायरे में था. केंद्र द्वारा पारित वनाधिकार अधिनियम 2006 अभी तक पूरे देश में एक प्रकार से सुतुप्ता अवस्था में ही है. शायद ही किसी राज्य सरकार ने उसमें निहित सीएफआरआर ग्रामीणों को देने के बारे में सोचा होगा. इससे वनांचलों में ग्रामीणों की आर्थिकी को काफी मजबूती मिलेगी क्योकि उन्हें अब वन संपदा के दोहन का मालिकाना हक मिल जाएगा, यद्यपि यह वन विभाग के आधिकारिक वर्कप्लान के अंतर्गत ही किया जाएगा.’

इस संबंध में बात करते हुए प्रदेश के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने हाल में अपने एक बयान में कहा था, ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 की धाराओं के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है. इसके तहत वन विभाग द्वारा सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है. इससे वनांचलों में रहने वाले लोगों को वनों के संवर्धन और विकास की योजनाओं में भागीदारी निभाने का मौका मिलेगा.’

ग्राम सभाएं वन्यजीव और जैव विविधिता का करेंगी प्रबंधन

सरकार के निर्णय के अनुसार ग्राम सभाओं द्वारा सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा. यह समिति सामुदायिक वन क्षेत्रों में वन, वन्य जीव और जैव विविधता के संरक्षण के लिए काम करेगी. इस समिति में ग्राम सभा के सदस्यों को शामिल किया जाएगा. ग्राम सभा को यह अधिकार होगा कि वह संयुक्त वन प्रबंधन समिति या ग्राम सभा के अपने सदस्यों को नामजद कर सके. इस समिति द्वारा वन विभाग के वर्कप्लान एवं वन्य वन्य प्राणी पबंधन योजना के अनुरूप ही अपनी योजना तैयार करना होगा.

समिति मुख्यतः विभागीय वृक्षारोपण में रखरखाव एवं वनों के सुरक्षा कार्य सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन के लिए भी जिम्मेदार होगी. इसके लिए आवश्यक राशि वन विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाएगी. समिति का लेखा परीक्षण वन विभाग द्वारा ही किया जाएगा. इसके अतिरिक्त लघु वनोपज का संग्रहण, उपयोग एवं बिक्री छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज सहाकारी संघ के माध्यम से किया जाएगा. सामुदायिक वन संसाधन अधिकार क्षेत्र में भी वनोपज की निकासी के लिए परिवहन परमिट वन विभाग द्वारा दिया जाएगा.


यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ सरकार का दावा- राजीव गांधी किसान न्याय योजना से लाभान्वित होंगे 90 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसान


सामाजिक कार्यकर्ता ने किया स्वागत लेकिन आशंकाओं के बीच

छ्त्तीसगढ़ सरकार द्वारा वनाधिकार अधिनियम 2006 को लागू करने की दिशा में वनवासियों को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार देने के निर्णय को सामाजिक कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है लेकिन आशंकाओं के बीच.

जनजातीय क्षेत्रों में कई दशकों से काम कर रहे नदी घाटी मोर्च के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार का फैसला सही है, यह वनाधिकार कानून का सम्मान करता है लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार की इच्छाशक्ति को परखा जाना अभी बाकी है. सरकार ने पहले वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाया था जो वनाधिकार अधिनियम 2006 की मंशा के खिलाफ था. हालांकि इसमें अब संशोधन कर लिया गया है और ट्राइबल वेलफेयर विभाग ही नोडल एजेंसी बना रहेगा. सरकार अपने निर्णय को लागू करना चाहती है तो ट्राइबल वेलफेयर विभाग को मजबूत करना होगा. फारेस्ट विभाग एक सहायक के रूप में काम कर सकता है लेकिन मुख्य भूमिका अदिम जनजाति विभाग की ही होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि इसके अलावा राज्य सरकार को वनवासियों, ट्राइबल वेलफेयर विभाग और वन विभाग के बीच कन्वर्जेन्स का तरीका अपनाना होगा. जनता और सरकार के बीच बड़े पैमाने पर कंसल्टेशन और समन्वयन की आवश्यकता है. साथ ही वनाधिकार कानून के तहत राज्यस्तरीय मॉनिटरिंग कमेटी को भी गतिशीलता देना होगी. यह कमेटी अभी निरर्थक साबित हो रही है. इसकी बैठक कई सालों से नहीं हुई है.

share & View comments