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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशबीएचयू के विवाद से परे फिरोज खान के गांव का हाल आम दिनों जैसा, पिता ने कहा ‘संस्कृत हमारी रगों में’

बीएचयू के विवाद से परे फिरोज खान के गांव का हाल आम दिनों जैसा, पिता ने कहा ‘संस्कृत हमारी रगों में’

बगरू के पास रघुनाथधाम मंदिर के संत सौरभ राघवेन्द्रचार्य ने मुस्लिम के नाम पर विरोध को निंदनीय बताया और असहिष्णुता को रोकने की बात की.

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जयपुर : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत का सहायक प्राध्यापक बनने के कारण विवाद एवं चर्चा में आए फिरोज खान के गांव बगरू में माहौल सामान्य है और वक्त आम दिनों की तरह ही गुजर रहा है. फिरोज के पिता रमजान खान भगवान कृष्ण की भक्ति करते हैं और मंदिरों तथा धार्मिक कार्यक्रमों में भजन गाते हैं. उनका कहना है कि ‘संस्कृत हमारी रगों में दौड़ती है.’

फिरोज को वाराणसी के बीएचयू में संस्कृत विषय का सहायक प्राध्ययापक नियुक्त किया गया है और कुछ छात्र उनके धर्म के चलते इस पद पर उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं. यद्यपि, पिछले कुछ दिन से यह मुद्दा काफी चर्चा में है लेकिन फिरोज का पैतृक गांव बगरू इससे अछूता दिखता है.

फिरोज के पिता रमजान खान स्वयं संस्कृत भाषा में अध्ययन किया है और उनके पास ‘शास्त्री’ की डिग्री है. वे भजन लिखते हैं और गाते हैं तथा गांव की एक गौशाला में गउओं की सेवा करते हैं. वह मस्जिद जाते हैं, नमाज अदा करते हैं और इलाके में लोगों में उनका सम्मान है.

बगरू के श्री रामदेव गौशाला चेतन्य धाम के मंदिर में रमजान शाम की आरती में हारमोनियम बजाते हुए भजन वाणी करते हैं तो लोग उन्हें सुनने के लिए उमड़ पड़ते हैं.

उन्होंने कहा, ‘जब मेरे बेटे को प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में नियुक्ति मिली तो मैं बहुत खुश था. छात्रों का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण है और मैं आंदोलनकारी छात्रों से आग्रह करना चाहूंगा कि वे मेरे बेटे की योग्यता को पहचानें और उसकी पृष्ठभूमि पर गौर करें.’

उन्होंने कहा, ‘मेरा बेटा मेरी तरह संस्कृत सीखना चाहता था इसलिए मैंने उसे स्कूल में दाखिला दिलवाया. उसको शिक्षकों का आशीर्वाद मिला और उसने उच्च शिक्षा हासिल की तथा बीएचयू में (अध्यापक के तौर पर) चयन हुआ. मुझे विश्वास है कि अगर छात्र धैर्य से उनकी बात सुनेंगे और उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि देखेंगे तो वे आश्वस्त और संतुष्ट होंगे.’

खान ने कहा कि संस्कृत उनकी रगों में दौड़ती है.

उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता भी मंदिरों में गाते थे. मैंने उनसे सीखा. उन्होंने मुझे संस्कृत सिखाई और मैंने भी गौ-सेवा में समय देना शुरू किया. गीत लिखे. मेरा समय भी कृष्ण और भगवद भक्ति में बीतने लगा.’

उन्होंने बताया कि वह मंदिरों में वह भगवान राम, कृष्ण, शिव और अन्य हिंदू देवताओं को समर्पित भजन गीत गाते हैं.
इस बीच, स्थानीय हिंदू संत समुदाय के लोग भी फिरोज और उनके परिवार के समर्थन में आगे आए हैं.

बगरू के पास रघुनाथधाम मंदिर के संत सौरभ राघवेन्द्रचार्य ने कहा,’ यह बहुत ही निंदनीय है कि जो व्यक्ति संस्कृत भाषा में उच्च योग्यता रखता है और योग्यता के आधार पर नियुक्ति प्राप्त करता है, उसका केवल इसलिए विरोध किया जाता है क्योंकि वह मुस्लिम है. इस असहिष्णुता को रोका जाना चाहिए.’

एक अन्य मंदिर के पुजारी मोहन लाल शर्मा ने कहा,’ हमारे सभी धार्मिक कार्य और मंदिर की आरती रमजान खान के बिना अधूरी है. बड़ी संख्या में लोग उनकी बात सुनने के लिए उमड़ पड़ते हैं. वे भी संस्कृत के विद्वान हैं, गायों की सेवा करते हैं और उनसे प्यार करते हैं.’

रमजान ने कहा,’ धर्म के आधार पर मुझसे कभी भेदभाव नहीं हुआ. हम सब भाईचारे में रहते हैं. मैं मस्जिद जाता हूं और अक्सर नमाज अदा करता हूं. मैं मंदिर जाता हूं और कृष्ण भक्ति और गौ-सेवा करता हूं. मैंने संस्कृत सीखी है. मेरे सभी बेटों ने संस्कृत सीखी है. फिरोज ने संस्कृत में उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक प्रतिष्ठित संस्थान में नियुक्ति प्राप्त की.’

बीएचयू में फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध के चलते भी लोग उनसे मिलने आते हैं लेकिन उनके परिवार के अन्य सदस्य इस मुद्दे पर बात करने से बचते हैं.

रमजान ने कहा,’ मैं केवल यह कहना चाहता हूं कि लोगों को धर्म के आधार पर फैसला करने की बजाय मेरे बेटे की योग्यता देखनी चाहिए.’

रमजान जयपुर से लगभग 35 किलोमीटर दूर बगरू गांव में तीन कमरों के एक छोटे से घर में रहते हैं और उनकी आय का एकमात्र स्रोत गायन है.

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