नयी दिल्ली, 21 फरवरी (भाषा) भारतीय न्यायपालिक के ‘भीष्म पितामह’ माने जाने वाले और केशवनंद भारती मामले सहित कई महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रियाओं का हिस्सा बन आधुनिक भारत को आकार देने में मदद करने वाले कानून विशेषज्ञ एवं दिग्गज अधिवक्ता फली एस नरीमन का बुधवार को 95 वर्ष की आयु में यहां निधन हो गया।
केशवनंद भारती मामले को उच्चतम न्यायालय के मूल सिद्धांतों को निर्धारित करने वाले मामले के तौर पर भी देखा जाता है।
नरीमन के परिवार में उनके बेटे और उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन, बेटी अनाहिता और बहू सनाया हैं। उनकी पत्नी बाप्सी नरीमन का 2020 में निधन हो गया था।
फली एस नरीमन हृदय संबंधित परेशानियों सहित कई बीमारियों से जूझ रहे थे।
उनके बेटे, बेटी और बहू ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा, ”हमें बेहद दुख के साथ यह सूचित करना पड़ रहा है कि हमारे प्रिय पिता फली एस. नरीमन का निधन 21 फरवरी, 2024 को बुधवार सुबह हो गया। उनकी उम्र 95 वर्ष थी। उनका अंतिम संस्कार बृहस्पतिवार सुबह 10 बजे नयी दिल्ली के खान मार्केट के पास पारसी आरामगाह में किया जाएगा। प्रार्थना सभा, बृहस्पतिवार को शाम चार बजे बहादुर शाह जफर मार्ग, फिरोज शाह कोटला स्टेडियम के सामने पारसी अंजुमन (धर्मशाला) में होगी।”
नरीमन का जन्म 10 जनवरी 1929 को हुआ था। नवंबर 1950 में उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय से वकालत शुरु की और 1961 में उन्हें वरिष्ठ वकील का दर्जा हासिल हुआ।
नरीमन का जन्म रंगून (अब यांगून) में एक संपन्न कारोबारी परिवार में हुआ था। वर्ष 1942 में जापान की ओर से आक्रमण किये जाने के बाद उनका परिवार भारत आ गया। उस समय नरीमन 12 साल के थे।
उन्होंने 70 वर्षों से अधिक समय तक वकालत की। शुरुआत बंबई उच्च न्यायालय से हुई और फिर 1972 से उच्चतम न्यायालय में उन्होंने लंबा सफर तय किया।
नरीमन को मई 1972 में भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 26 जून 1975 को आपातकाल लागू होने के एक दिन बाद पद से इस्तीफा दे दिया था।
अपने लंबे और शानदार कानूनी करियर में नरीमन ने कई ऐतिहासिक मामलों में पैरवी की। इनमें भोपाल गैस त्रासदी, ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ और जयललिता का आय से अधिक संपत्ति जैसे मामले भी शामिल हैं। इसके अलावा वह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के चर्चित मामले से भी जुड़े रहे। इस आयोग को उच्चतम न्यायालय ने भंग कर दिया था।
भारतीय न्यायपालिक के ‘भीष्म पितामह’ कहे जाने वाले नरीमन ने ‘बिफोर द मेमोरी फेड्स’, ‘द स्टेट ऑफ द नेशन’, ‘इंडियाज लीगल सिस्टम: कैन इट बी सेव्ड?’ और ‘गॉड सेव द ऑनर्बेल सुप्रीम कोर्ट’ जैसी किताबें भी लिखीं।
नरीमन को जनवरी 1991 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
नवंबर 1999 में उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी मनोनित किया गया था।
उनके निधन की खबर पर वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, ‘‘ फली नरीमन का निधन एक युग का अंत है। एक दिग्गज, जो कानून और सार्वजनिक जीवन में हमेशा लोगों के दिलों-दिमाग में जीवित रहेंगे। अपनी सभी उपलब्धियों के अलावा, वह अपने सिद्धांतों पर अटल रहे और बिना लाग लपेट हर बात कहते थे। यही गुण उनके प्रतिभाशाली बेटे रोहिंटन में भी है।’’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उनके निधन से ना सिर्फ कानून जगत ने बल्कि देश ने एक ऐसी विशाल शख्सियत को खो दिया है, जिसकी बुद्धिमत्ता का हर कोई लोहा मानता था।
उन्होंने कहा, ‘‘देश ने धार्मिकता के एक प्रतीक को खो दिया। एक अग्रणी, आदर्श और एक दिग्गज हमें छोड़कर चले गये। उन्होंने न्यायशास्त्र को अपने अहम योगदान से समृद्ध किया है। मैंने अदालत में उनके खिलाफ जिरह करके भी कुछ नया सीखा।’’
कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, ‘‘बेहद दुखद समाचार। प्रख्यात न्यायविद् फली एस नरीमन का निधन। उन्हें वकील समुदाय का ‘भीष्म पितामह’ भी माना जाता था। वह एक महान अधिवक्ता और हमारे परिवार के करीबी दोस्त थे। उनका निधन हमारे देश के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।’’
वहीं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने नरीमन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वह (नरीमन) भारतीय समाज की विविधता को संजोते थे और सभी को उनकी कमी खलेगी।
अंसारी ने एक बयान में कहा, ”फली एस नरीमन के निधन से भारत ने एक प्रतिष्ठित शख्सियत को खो दिया है, जिनकी कमी उन्हें जानने वाले सभी लोगों को महसूस होगी। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।”
भाषा जितेंद्र माधव
माधव
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