नई दिल्ली: दिल्ली से सटे नोएडा में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अंग्रेज़ी विभाग के एक प्रोफेसर हनी बाबू के घर मंगलवार सुबह पुणे पुलिस ने छापा मारा. उनकी पत्नी जेनी ने एक फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाया है कि पुलिस ने बिना वारंट ये छापा मारा. छापेमारी के पीछे प्रमुख वजह 2018 के जनवरी महीने में भीमा कोरेगांव में हुई जातिगत हिंसा बताई जा रही है. इस मामले में पहले हुई गिरफ्तारियों को लेकर काफी विवाद हुआ है.
पुणे क्राइम ब्रांच पुलिस टीम का नेतृत्व पुणे पुलिस के उपायुक्त बच्चन सिंह कर रहे थे. गौतमबुद्ध नगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण ने बताया, ‘पुणे पुलिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू एमटी के यहां छापा मारा है. छापा पुणे क्राइम ब्रांच के जांच अधिकारी सहायक पुलिस आयुक्त शिवाजी पवार की देखरेख में की गई.’
जेनी रोवेना ने इससे जुड़े एक फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाए, ‘आज सुबह 6.30 मिनट पर पुणे पुलिस हमारे घर में घुंस गई. उन्होंने कहा, ‘दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले हनी बाबू (मेरे पति) भीमा कोरेगांव हिंसा में लिप्त हैं.’ वो आगे लिखती हैं कि इस बात का हवाला देकर उन्होंने बिना वारंट उनके घर की तलाशी ली.
जेनी की मानें तो पुलिस ने छह घंटों तक उनके घर की तलाशी ली और किताबों से लेकर लैपटॉप तक जब्द कर लिए और हनी बाबू को लैपटॉप, फोन, हार्ड डिस्क और पेन ड्राइव भी जब्त कर लिया.
एसएसपी गौतमबुद्ध नगर के मुताबिक, ‘पुणे पुलिस ने पुणे शहर के थाना विश्रामबाग में 4/2018 को दर्ज मामले में यह छापा मारा है. एफआईआर किसी एलगार परिषद से संबंधित मामले की बताई जाती है. पुणे पुलिस ने गौतमबुद्ध नगर पुलिस से छापे में मदद मांगी थी जो, उसे मुहैया करा दी गई. छापे के दौरान कोई गिरफ्तारी नहीं की गई. पुणे पुलिस ने मौके से कुछ दस्तावेज जब्त किए हैं.’
वहीं, वैभव कृष्ण के मुताबिक, ‘छापे की पूरी वीडियो रिकॉर्डिग की गई है, ताकि बाद में कहीं कोई समस्या न पैदा हो.’ बता दें कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में दलितों ने एक समारोह का आयोजन किया था. यह आयोजन हर साल किया जाता है. समारोह में 260 गैर सरकारी संगठन शामिल हुए थे. सम्मेलन में 35 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे. सम्मेलन में गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी सहित राधिका वेमुला, दलित नेता प्रकाश आंबेडकर, भीम आर्मी के विनय रतन सिंह, उमर खालिद भी पहुंचे थे.
इस समारोह का आयोजन 200 साल पहले भीमा नदी पर हुए पेशवा और ब्रिटिश हुकूमत के बीच हुई लड़ाई में दलितों को मिली विजय की याद में किया जाता है. पेशवा सेना के खिलाफ जंग के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने महार रेजीमेंट को उतारा था. उस लड़ाई में कई सैनिक मारे गए थे और विजय का सेहरा महार रेजीमेंट के सिर बंधा था. तभी से हर साल इस समारोह का आयोजन होता आ रहा है.
पुणे में 31 दिसंबर, 2017 को हुए एलगार परिषद कॉन्क्लेव के अगले दिन हिंसा भड़क गई. हिंसा में एक शख्स की मौत हो गई, जबकि कई अन्य लोग जख्मी भी हुए थे. पुणे पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच-पड़ताल शुरू की. शक है कि हिंसा के पीछे कथित तौर पर प्रतिबंधित संगठन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) का हाथ था. तब से ही पुलिस कार्यक्रम में शरीक होने और आयोजन में हिस्सेदारी निभाने वालों की तलाश में जुटी है.
(आईएएनएस के इनपुट्स के साथ)