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Friday, 22 November, 2024
होमदेशभगवंत मान कहते हैं कि अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई को लेकर वह अडिग हैं, पर उसे महीनों तक छूट दी जाती रही

भगवंत मान कहते हैं कि अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई को लेकर वह अडिग हैं, पर उसे महीनों तक छूट दी जाती रही

पंजाब पुलिस द्वारा 5वें दिन भी राज्यव्यापी तलाश जारी है. लेकिन कानून-व्यवस्था से जुड़ी घटनाएं और उन पर पुलिसिया कार्रवाई की मांग पिछले अक्टूबर से ही चल रही है.

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चंडीगढ़: पंजाब पुलिस द्वारा खालिस्तान एक्टिविस्ट अमृतपाल सिंह की राज्यव्यापी तलाश अभियान के चौथे दिन अपनी चुप्पी तोड़ते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मंगलवार को कहा कि उनकी सरकार ने नफरत और हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है.

एक वीडियो संदेश में मान ने कहा कि उनकी सरकार राज्य में शिक्षा सुविधाओं में सुधार के लिए किए जा रहे सभी प्रयासों का समर्थन करेगी, लेकिन असामाजिक तत्वों को पंजाब में अशांति पैदा करने की अनुमति नहीं देगी.

जबकि सीएम अब अमृतपाल पर पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, शनिवार तक – जिस दिन तलाशी शुरू हुई – उनकी सरकार राज्य में अमृतपाल और उनके कट्टरपंथी समर्थकों के खुलेआम भाग जाने को चुपचाप देखती रही.

दिवंगत पंजाबी अभिनेता और वकील दीप सिद्धू द्वारा स्थापित एक सामाजिक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ का नया प्रमुख बनने के बाद अमृतपाल पहली बार पिछले साल 29 सितंबर को सुर्खियों में आए थे. रोड़े गांव में अपनी दस्तरबंदी (पगड़ी बांधने की रस्म) के दौरान, उन्होंने एक अलग सिख राज्य खालिस्तान के विचार के बारे में भाषण दिया था.

अपने बाद के भाषणों, मीडिया से बातचीत और साक्षात्कारों में, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वह न केवल नशा मुक्ति या अमृत संस्कार (बैपटिज़म) के माध्यम से सिख धर्म के प्रसार के जरिए सामाजिक सुधार के लिए काम कर रहे थे, बल्कि अलग सिखों के लिए अलग राज्य खालिस्तान की दिशा में भी काम करता रहा.

कानून-व्यवस्था से जुड़ी कई घटनाओं के बाद पुलिसिया कार्रवाई की मांग की गई. हालांकि, पिछले महीने अमृतपाल और उसके आदमियों के खिलाफ तब तक कार्रवाई नहीं हुई जब तक पिछले महीने उनके खिलाफ मारपीट की शिकायत नहीं दर्ज कराई गई. बाद में इसकी वजह से अमृतपाल के लोगों ने अजनाला पुलिस स्टेशन का घेराव किया.

दिप्रिंट ने फोन कॉल और संदेशों के माध्यम से पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गौरव यादव और पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) सुखचैन सिंह गिल जो कि पंजाब पुलिस के प्रवक्ता भी हैं, के मुख्यालय से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन टिप्पणी के लिए दोनों कार्यालय उपलब्ध नहीं थे. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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ईसा मसीह पर टिप्पणी से लेकर अजनाला थाने के घेराव तक

पिछले अक्टूबर से कट्टरपंथी अमृतपाल से को दी गई छूट से जुड़े कई उदाहरण सामने हैं. 17 अक्टूबर को, ईसा मसीह के बारे में उसकी टिप्पणी के विरोध में ईसाई समुदाय के सदस्यों ने जालंधर की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया. एक धार्मिक समारोह में बोलते हुए, उन्होंने कथित तौर पर कहा: “ईसाइयों के भगवान खुद को नहीं बचा सके.” उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि वे ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले पादरियों को अपने गांवों में प्रवेश न करने दें.

पंजाब क्रिश्चियन मूवमेंट के अध्यक्ष हामिद मसीह ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश के आधार पर अमृतपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी.

जालंधर में दिन भर के विरोध के बावजूद, पुलिस ने अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई नहीं की, जो कि जीसस क्राइस्ट के बारे में अपनी टिप्पणी को दोहराता रहा. जालंधर में विरोध प्रदर्शन के तुरंत बाद एक अन्य धार्मिक कार्यक्रम में उसने कहा, “मुझे परवाह नहीं है अगर मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है, लेकिन मैं वही बोलूंगा जो मुझे विश्वास है.”

उसी महीने, पुलिस को स्वतंत्र पत्रकार भगत सिंह दोआबी की एक लिखित शिकायत भी मिली थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अमृतपाल और उसके आदमियों ने उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी और उनके परिवार का पीछा भी कर रहे थे. दोआबी ने अपनी शिकायत में कथित रूप से अमृतपाल द्वारा धमकाने और मौखिक रूप से गाली देने का ऑडियो अटैच किया था. बाद में, एक साक्षात्कार के दौरान, दोआबी ने दावा किया कि पुलिस अमृतपाल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है.

4 नवंबर को अमृतसर में दक्षिणपंथी नेता सुधीर सूरी की दिन दहाड़े हत्या के बाद, एक कार मिली जो कथित रूप से आरोपियों की थी और जिस पर अमृतपाल की रैली का पोस्टर लगा हुआ था. पुलिस के मुताबिक, गिरफ्तार हमलावर कथित तौर पर अमृतपाल से मिला था और उसके समागमो में शामिल हुआ था. यहां तक कि पीड़ित परिवार ने अमृतपाल पर आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग की. हालांकि पुलिस ने उससे पूछताछ नहीं की.

कुछ दिनों बाद, पुलिस ने जालंधर में अमृतपाल और सूरी के समर्थकों के बीच झड़प की संभावना को कम करने के लिए मोगा के पास सिंघावाला गांव में उसे नजरबंद कर दिया.

नवंबर-दिसंबर में पहले खालसा वाहीर, या धार्मिक मार्च के दौरान अमृतपाल और उसके आदमियों ने गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की तो पुलिस भी उसके खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रही. पूरे वाहीर के दौरान अमृतपाल ने अपने भाषणों के माध्यम से सिख युवाओं को सिख धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति देने की तैयारी करने के लिए कहा. उन्होंने उन्हें हथियार चलाने के लिए भी प्रोत्साहित किया.

9 दिसंबर को, अमृतपाल के आदमियों ने कपूरथला जिले के एक गुरुद्वारे के गर्भगृह से फर्नीचर हटा दिया और यह कहते हुए आग लगा दी कि गुरु ग्रंथ साहिब (सिखों द्वारा एक जीवित गुरु माना जाता है) की उपस्थिति में संगत (मंडली) के किसी भी सदस्य को एक ऊंचे आसन या मंच पर बैठने की अनुमति नहीं है.

13 दिसंबर को कुर्सियां और बेंच हटा दीं

13 दिसंबर को, उन्होंने इसी कारण का हवाला देते हुए जालंधर के मॉडल टाउन में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा में कुर्सियों और बेंचों को हटा दिया और उनमें आग लगा दी. 18 दिसंबर को, अमृतपाल और उनके समर्थकों ने शहीद भगत सिंह नगर जिले के एक गुरुद्वारे में मेमोरियल स्ट्रक्चर (मढ़ी) को नष्ट कर दिया. उन्होंने कहा कि गुरुद्वारे में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पूर्वजों की याद में ढांचा खड़ा करने के लिए कोई जगह नहीं है.

हालांकि, विपक्षी नेताओं द्वारा अमृतपाल और उसके आदमियों के खिलाफ कार्रवाई की बढ़ती मांगों के बावजूद, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.

अमृतपाल के खिलाफ किसी तरह की पहली कार्रवाई इस साल 18 जनवरी को हुई थी, जब उनके अंगरक्षक वरिंदर सिंह जौहल उर्फ फौजी को हवा में हथियार चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इस कार्रवाई का वीडियो वायरल हो गया था.

अमृतपाल, जिसे अमृतसर के एक अस्पताल से हाल ही में छुट्टी मिली थी, फौजी की रिहाई की मांग को लेकर अपने कुछ समर्थकों के साथ थाने पहुंचा. अमृतपाल के समर्थकों में से एक के फेसबुक पोस्ट के अनुसार, फौजी को 24 जनवरी को जेल से रिहा किया गया था.

जब 21 फरवरी को मीडियाकर्मियों के साथ बातचीत के दौरान अमृतपाल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को यह कहते हुए धमकी दी कि उनका हश्र भी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह होगा. ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए 1984 में इंदिरा की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी, जिसके तहत उन्होंने सेना के जवानों को अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने का आदेश दिया था ताकि इसे उग्रवादियों से मुक्त कराया जा सके.

उसी महीने, एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, वारिस पंजाब दे प्रमुख ने कहा कि वह संविधान में विश्वास नहीं करते हैं, न ही वह भारत के नागरिक हैं, और भारतीय पासपोर्ट को केवल “यात्रा दस्तावेज” के रूप में संदर्भित किया.

अमृतपाल सिंह के खिलाफ पहला ज्ञात एफआईआर 16 फरवरी को चमकौर साहिब के निवासी वरिंदर सिंह की शिकायत पर अजनाला में दर्ज की गई थी, जिन्होंने दावा किया था कि कट्टरपंथी अमृतपाल और उनके लोगों के खिलाफ बोलने की वजह से उसके लोगों ने उनका अपहरण कर लिया था और उन पर हमला किया था. मामले में अमृतपाल के अलावा अन्य 25 समर्थकों पर भी मामला दर्ज किया गया था. हालांकि अमृतपाल को गिरफ्तार नहीं किया गया था, लेकिन उसके सहयोगी लवप्रीत सिंह उर्फ तूफान को पुलिस ने उठा लिया था.

उसके बाद तो भगदड़ मच गई और अमृतपाल ने पंजाब पुलिस के खिलाफ एक बड़ा हमला बोल दिया, और खुली धमकी दी कि अगर उसके द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर तूफान को रिहा नहीं किया गया तो वह अजनाला पुलिस स्टेशन पर धावा बोल देगा.

23 फरवरी को, अमृतपाल और उनके सैकड़ों समर्थकों ने पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को अपने साथ लेकर अजनाला पुलिस स्टेशन का घेराव किया. उनके समर्थक पुलिस से भिड़ गए और इस बात का लिखित आश्वासन दिए जाने के बाद ही पुलिस स्टेशन के गए कि तूफान को रिहा कर दिया जाएगा और अमृतपाल व उनके आदमियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर की समीक्षा की जाएगी.

तूफान को अगले दिन जेल से रिहा कर दिया गया और अमृतपाल ने अपने गांव में “विजय जुलूस” का नेतृत्व किया.

घटना के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, डीजीपी गौरव यादव ने वादा किया कि अमृतपाल और अन्य के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन राज्य भर में उसके व उसके लोगों की तलाश शनिवार को ही शुरू हुई.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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