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Thursday, 7 November, 2024
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एनआरसी सूची में शामिल होने के लिए बंगाली हिंदू नागरिकता बिल की तरफ देख रहे हैं

असम में अगर नागरिकता बिल पास हो गया तो एनआरसी सूची से बाहर हुए हिंदू समुदाय के लोगों को नागरिकता मिल जाएगी. जिसके बाद सिर्फ मुस्लिम ही विदेशी नागरिक रह जाएंगे.

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नई दिल्ली: भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(एनआरसी) की फाइनल सूची आने वाले समय में असम में कई परेशानियां खड़ी कर सकती है. सबसे खतरनाक यह है कि नागरिकता बिल को लेकर राज्य में सांप्रदायिक माहौल बनाया जा रहा है, जिसमें बाहरी और राज्य का नागरिक कौन है इसकी बात होने लगी है.

एनआरसी की अंतिम सूचि में 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया है. इन लोगों में लाखों हिंदू है. लेकिन अनुमान लगाया जा रहा था कि बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग इस सूची में शामिल होंगे. इसके बाद नए तरह की सामाजिक और राजनीतिक बहस शुरू हो गई है.

सूची से बाहर लोगों में ज्यादातर बंगाली हिंदू समुदाय के हैं. बाकी लोगों में नेपाली, मारवाड़ी और जनजातीय समुदाय के लोग भी शामिल है. असम सरकार में काम करने वाले एक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि जितने भी लोग सूची से बाहर किए गए हैं, उनमें से 50 फीसदी इन्हीं समुदाय के हैं.

ऐसी स्थिति में भाजपा सरकार एक बार फिर से राज्य में नागरिकता बिल लाने की कोशिश करेगी, ताकि सूची से बाहर हुए हिंदू लोग राज्य के नागरिक बने रहें. पिछली बार राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण नरेंद्र मोदी सरकार ये बिल पास नहीं करा सकी थी. उस समय असम के लोगों ने इस बिल का विरोध किया था.

क्या है नागरिकता संशोधन बिल 

2016 का नागरिकता संशोधन बिल 1955 के बिल में संशोधन की बात करता है. इस बिल के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से गैर-कानूनी रूप से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी  लोगों को भारत का नागरिक माना जाएगा. अगर यह बिल आ गया तो एनआरसी की सूची से बाहर हुए हिंदू लोगों को राज्य का नागरिक मान लिया जाएगा. जिसके बाद सिर्फ मुस्लिम लोगों को ही बाहरी कहा जाएगा.

नागरिकता बिल को दोबारा लाने के लिए एक बार फिर से आवाज़ तेज़ हो जाएगी. बंगाली हिंदू लोग इस बार इसके लिए मांग कर सकते हैं.

गुवाहाटी में एनआरसी मुख्यालय | फोटो: रूही तिवारी/ दिप्रिंट

नागरिकता बिल सबसे सही उपाय है

राज्य में काफी लंबी समय से बाहरी लोगों को निकाले जाने की बात हो रही थी. लेकिन सूची के आने के बाद राज्य के बंगाली हिंदुओं को ही सूची से बाहर कर दिया गया. एनआरसी  सूची से काफी बंगाली भाषी हिंदू को बाहर कर दिया गया है.

गुवाहाटी में अपना व्यवसाय चलाने वाले बासुदेव रॉय कहते हैं, ‘हमारे परिवार में 5 लोग हैं जिसमें मेरी पत्नी, मैं और तीन बच्चे हैं. लेकिन एनआरसी की सूची में सिर्फ मेरी पत्नी का नाम आया है.’

उनका कहना है, ‘हम बांग्लादेश से नहीं आए हैं. हम लोग 1964 में कानूनी तौर पर पूर्वी पाकिस्तान से आए हैं. मैंने 1964-68 तक यहीं पास के स्कूल में पढ़ाई की है. मैंने सारे दस्तावेज़ दिखाए हैं. फिर मैं कैसे बाहर का नागरिक हो गया.’

बासुदेव आगे कहते हैं, ‘हम इस मामले को कोर्ट में ले जाएंगे. लेकिन इससे अच्छा है कि सरकार नागरिकता बिल लेकर आए ताकि हम यहां की नागरिकता पा सकें.’


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रॉय उन तमाम लोगों में से हैं जो एनआरसी की सूचि से बाहर है. रॉय कहते हैं, ‘हमारे परिवार के पांच लोगों में से किसी का भी नाम लिस्ट में नहीं है. हमने सुना है कि यहां के कई  बंगाली हिंदुओं को सूची से बाहर कर दिया गया है. सरकार को नागरिकता बिल लाना चाहिए ताकि यह समस्या ठीक हो सकें.’ रॉय के दोस्त प्रदीप डे और संजॉय कुमार रॉय उनकी बात से सहमत है. लेकिन दोनों के परिवार के लोगों का नाम सूची में है. राज्य के युवा भी नागरिकता बिल की मांग कर रहे हैं.

नालबाड़ी के एक कॉलेज छात्र का कहना है, ‘हम हिंदू हैं. सरकार को हमें नागरिकता दे देनी चाहिए. आसामी लोगों को  कोई दिक्कत नहीं है कि ज्यादातर मुस्लिम लोग बांग्लादेशी हैं.’

गुवाहाटी के लाल गणेश क्षेत्र के एनआरसी सेवा केंद्र पर गुरुवार को सन्नाटा छाया हुआ था. वहां सिर्फ एक अधिकारी ही मौजूद था.

गुवाहाटी के अर्नब दास बंगाली मूल के हैं। उनके परिवार के 10 सदस्यों में से दो का नाम एनआरसी सूची में नहीं है | फोटो: रूही तिवारी/ दिप्रिंट

एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘बहुत सारे बंगाली हिंदू मेरे पास आ रहे हैं और पूछ रहे हैं कि आगे क्या होगा. लेकिन हमें भी आगे के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता है.’

ब्रह्मपुत्र घाटी बनाम बराक घाटी

इस साल की शुरुआत में जब भाजपा सरकार ने बिल लाने की कोशिश की थी तब ब्रह्मपुत्र घाटी के लोगों ने इसका विरोध किया था. इसके इतर बराक घाटी के लोगों ने सरकार के फैसले का स्वागत किया था. बराक घाटी बंगाली हिंदू बहुल क्षेत्र है. इस क्षेत्र के लोगों ने नागरिकता बिल का समर्थन किया था. लोकसभा चुनाव के दौरान नागरिकता बिल चुनाव का प्रमुख मुद्दा था.

गुवाहाटी के बंगाली बहुल क्षेत्र में लाल गणेश में एक एनआरसी सेवा केंद्र फोटो: रूही तिवारी/ दिप्रिंट

लोकसभा चुनावों से पहले जब दिप्रिंट इस क्षेत्र में गया था तब भी इस बिल के समर्थन में यहां के लोग थे. आने वाले समय में भी इस क्षेत्र के लोग नागरिकता बिल के समर्थन में आवाज़ बुलंद कर सकते हैं. बारक घाटी के अंतर्गत करीमगंज, कछार, हैलाकांडी क्षेत्र आता है.


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मतभेद

इस बिल ने राज्य के लोगों का बांटने का काम किया है. बिल ने जनजातीय लोगों में ये सोच पैदा की है कि जो भी बाहरी है चाहे वो मुस्लिम हो या हिंदू सभी  को राज्य से बाहर कर  दिया जाए.

केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए इस बिल ने राजनीतिक फायदा पहुंचाने का काम किया है. राज्य में इस बिल का विरोध होने के बाद भी लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य की 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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