कोलकाता, तीन मई (भाषा) पश्चिम बंगाल में 400 में से 400 अंक प्राप्त करने वाली आईएससी टॉपर श्रीजनी ने परीक्षा फार्म भरते समय अपना उपनाम नहीं लिखने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय जाति, पंथ, धर्म और लिंग पर आधारित भेदभाव से मुक्त समाज में उनके विश्वास के कारण लिया गया है।
दक्षिण कोलकाता के फ्यूचर फाउंडेशन स्कूल की 12वीं कक्षा की छात्रा श्रीजनी ने भारतीय विद्यालय प्रमाण पत्र परीक्षा परिषद (सीआईएससीई) की परीक्षा में सभी विषयों में 100 अंक हासिल किए।
व्यस्त शैक्षणिक कार्यक्रम के बावजूद श्रीजनी ने 14 अगस्त को आर.जी. कार मेडिकल कॉलेज की छात्रा के दुष्कर्म-हत्या के बाद ‘वुमेन रिक्लेम द नाइट’ आंदोलन में भाग लेने के लिए समय निकाला।
श्रीजनी ने शनिवार को पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘एक व्यक्ति के तौर पर, यह मेरा निर्णय था – जिसे मेरे माता-पिता और बहन ने समर्थन दिया। मेरा मानना है कि समाज जाति, लिंग और धर्म के विभाजन तथा आर्थिक स्थिति से ऊपर उठना चाहिए। मेरे लिए उपनाम मायने नहीं रखता। मैं हमेशा अपने दोस्तों और प्रियजनों के बीच अपने पहले नाम से जानी जाती रही हूं। उपनाम का बोझ क्यों ढोना? मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे अपने परिवार का पूरा समर्थन प्राप्त है।’’
श्रीजनी के पिता देबाशीष गोस्वामी भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) में प्रोफेसर और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार विजेता हैं जबकि उनकी मां गोपा मुखर्जी गुरुदास कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हैं। दोनों को ही अपनी बेटी की उपलब्धि के साथ-साथ उसके सिद्धांतों और मूल्यों पर भी गर्व है।
श्रीजनी की मां गोपा मुखर्जी ने कहा, ‘‘मेरी दोनों बेटियां उन मूल्यों और मान्यताओं को मानती हैं जो हमने उन्हें जन्म से ही सिखाए हैं। मैं खुद अपने पति का उपनाम इस्तेमाल नहीं करती। जब हमने अपनी बेटियों के जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था, तो हमने कोई उपनाम शामिल नहीं किया था। हम पितृसत्ता और अंधराष्ट्रवाद के पूर्वाग्रहों से मुक्त समाज की कल्पना करते हैं । ’’
मुखर्जी ने अपनी दोनों बेटियों के साथ आर जी कर विरोध प्रदर्शनों के दौरान बार-बार सक्रिय रूप से भाग लिया।
श्रीजनी अपने पिता की तरह विशुद्ध विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने की इच्छा रखती हैं। श्रीजनी ने कहा कि उन्होंने कभी भी स्वयं को एक विशिष्ट अध्ययनशील व्यक्ति के रूप में नहीं देखा।
श्रीजनी से जब धर्म के बारे में उनके रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘मैंने आवेदन पत्र में धर्म के स्थान पर ‘मानवतावाद’ लिखा था।’’
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