लखनऊ: गोरखपुर के एक होटल में सोमवार को कानपुर के एक 36 वर्षीय व्यवसायी की मौत के बाद छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया, जिस घटना के बारे में पुलिस का दावा है कि यह देर रात की गई छापेमारी थी.
व्यवसायी की मौत ने राज्य में राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया है, विपक्षी दलों ने राज्य में अराजकता के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बुधवार को कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस अपराधियों के प्रति तो ‘नरम’ है लेकिन आम लोगों के साथ ‘क्रूर’ रवैया अपना रही है.
खबरों के अनुसार गोरखपुर में एक कारोबारी को पुलिस ने इतना पीटा कि उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना से पूरे प्रदेश के आमजनों में भय व्याप्त है।
इस सरकार में जंगलराज का ये आलम है कि पुलिस अपराधियों पर नर्म रहती है और आमजनों से बर्बर व्यवहार करती है। pic.twitter.com/w7u0fsExzy
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) September 29, 2021
इस बीच, पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा के शासन काल में पुलिस लोगों को बचाने के बजाय उनकी जान ले रही है.
उन्होंने पीड़ित परिवार से मिलने के बाद कहा, ‘पिछले साढ़े चार साल में पुलिस ने जिस तरह का व्यवहार किया है वह अभूतपूर्व है. इस तरह की घटनाएं राज्य में एक आम बात हो गई हैं.… हिरासत में होने वाली मौतों के मामले में यूपी सबसे ऊपर है, जो कि मौजूदा सरकार के समय में ही हुआ है.
गोरखपुर की घटना ऐसे समय पर सामने आई है जब कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने राज्य की पिछली सरकारों पर माफियाओं को बचाने का आरोप लगाया था. इस घटना ने उत्तर प्रदेश पुलिस के आचरण पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब यूपी पुलिस पर क्रूरता और हिरासत में मौतों के आरोप लगाए गए हों.
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उन्नाव में सब्जी विक्रेता की मौत
उन्नाव पुलिस ने इसी साल 22 मई को 18 वर्षीय सब्जी विक्रेता फैसल हुसैन की कथित तौर पर पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. हुसैन को कथित तौर पर कोविड-19 लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के आरोप में पुलिस ने उन्नाव के बांगरमऊ इलाके में स्थित उसकी दुकान से उठाया था.
उनके परिवार ने दिप्रिंट को बताया कि हुसैन अकेला कमाने वाला था और 12 साल की उम्र से ही यह काम कर रहा था. परिवार का आरोप है कि पुलिस ने हुसैन की पिटाई की और उसे थाने ले गई, जहां बाद में वह मृत पाया गया.
पुलिस ने शुरू में कहा था कि फैसल की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, लेकिन बाद में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सिर में चोट लगने को पाया गया था.
कांस्टेबल विजय चौधरी, सीमावत और होमगार्ड सत्य प्रकाश के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया था. बाद में तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया.
अंबेडकर नगर में हिरासत में मौत
इसी साल मार्च में आजमगढ़ के एक 37 वर्षीय व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी. मृतक जिया-उद-दीन को कथित तौर पर अंबेडकर नगर स्वाट टीम ने तब उठाया था जब वह अपने रिश्तेदारों से मिलने गया था. जियाउद्दीन के परिवार ने दावा किया कि पुलिसकर्मियों ने उसे प्रताड़ित किया जिससे उसकी मौत हो गई.
हत्या का मामला दर्ज किए जाने के बाद आठ पुलिसकर्मियों को कथित तौर पर हिरासत में मौत में उनकी भूमिका के लिए निलंबित कर दिया गया था.
व्यवसायी की ‘हत्या’
पिछले साल पुलिस अधीक्षक मनलियाल पाटीदार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के कुछ दिन बाद ही 8 सितंबर को महोबा के एक व्यवसायी इंद्र कांत त्रिपाठी को उनकी कार में गोली के घाव के साथ मृत पाया गया था.
त्रिपाठी के भाई ने आरोप लगाया कि पाटीदार ने व्यवसायी से छह लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी और एक हफ्ते में भुगतान न करने पर जान से मारने या जेल भेजने की धमकी दी थी.
बाद में गठित यूपी पुलिस के विशेष जांच दल (एसआईटी) ने निष्कर्ष निकाला कि त्रिपाठी की मौत आत्महत्या के कारण हुई. जांच में पाया गया कि गोली त्रिपाठी की लाइसेंसी पिस्तौल से सामने से चलाई गई थी और उनकी गर्दन में छेद करते हुए पीछे से निकल गई.
पिछले साल 9 सितंबर को पाटीदार को भ्रष्टाचार के आरोपों में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया और उनकी संपत्ति की सतर्कता जांच के आदेश जारी किए गए. वह अभी भी फरार है. फिर 12 सितंबर को, त्रिपाठी के भाई की तरफ से शिकायत दर्ज कराने के बाद उन पर जबरन वसूली और हत्या के प्रयास के आरोप में मामला दर्ज किया गया था.
हाथरस रेप पीड़िता का अंतिम संस्कार
पिछले साल सितंबर में पुलिस ने हाथरस की उस 19 वर्षीय दलित लड़की का जबरन अंतिम संस्कार करा दिया, जिसकी कथित तौर पर चार लोगों द्वारा बलात्कार किए जाने के बाद मौत हो गई थी.
पीड़ित परिवार का दावा है कि पुलिस ने परिवार को अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी और इसके बजाय रात में ही शव का अंतिम संस्कार करा दिया.
गांव और पीड़िता के घर के आसपास बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती के बीच उसका अंतिम संस्कार कराया गया था.
बाद में आदित्यनाथ सरकार ने हाथरस के एसपी और चार अन्य पुलिसकर्मियों को इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए निलंबित कर दिया था.
विकास दुबे का ‘एनकाउंटर’
कानपुर का माफिया और आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का मुख्य आरोपी विकास दुबे पिछले साल 10 जुलाई को एक पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था.
यूपी पुलिस के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) दुबे को उज्जैन—जहां उसने आत्मसमर्पण किया था—से कानपुर ला रही थी, जब कथित तौर पर भागने का प्रयास करने के दौरान उसे मुठभेड़ में मार गिराया गया. ‘एनकाउंटर’ से ठीक पहले यूपी पुलिस के काफिले के पीछा आ रहे मीडिया वाहनों को उस जगह से एक किलोमीटर दूर रोक दिया गया था जहां यह कथित मुठभेड़ हुई थी.
पुलिस एनकाउंटर को लेकर तमाम सवाल उठे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित एक जांच आयोग ने पुलिस को क्लीन चिट दे दी.
लखनऊ में एप्पल के एक्जिक्यूटिव की गोली मारकर हत्या
सितंबर 2017 में, एप्पल कंपनी के 39 वर्षीय एक्जिक्यूटिव विवेक तिवारी की लखनऊ में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब उन्होंने कथित तौर पर एक सामान्य पुलिस जांच से बचने की कोशिश की थी. तिवारी अपनी एक सहयोगी के साथ दफ्तर से घर लौट रहे थे, जब मोटरसाइकिल पर सवार दो कांस्टेबलों ने उन्हें रोका. मुख्य आरोपी सुदीप कुमार और एक अन्य कांस्टेबल प्रशांत चौधरी को गिरफ्तार कर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.
लखनऊ पुलिस के जवानों ने शुरू में दावा किया था कि चौधरी ने आत्मरक्षा में गोली चलाई. हालांकि, बाद में उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया और चौधरी और कुमार दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया.
‘प्रशिक्षण की कमी’
राज्य में कथित पुलिस बर्बरता की घटनाओं के बारे में बात करते हुए यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आनंद लाल बनर्जी ने पुलिसकर्मियों के लिए ‘समय-समय पर प्रशिक्षण के अभाव’ को जिम्मेदार ठहराया.
उन्होंने कहा, ‘मैं तो यही कहूंगा कि इसकी एक वजह प्रशिक्षण में कमी और समय-समय पर फिर से प्रशिक्षण दिए जाने का अभाव है. बुनियादी प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है और साथ ही इस समय-समय पर दोहराया जाना चाहिए. मुझे लगता है कि ये चीजें नहीं हो रही हैं. इन्हें ठीक करने वाला कोई नहीं है. लगता है किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. सिस्टम में सुधार के लिए मानसिक स्तर पर तैयार होने की जरूरत होती है. पुलिस सुधार मौजूदा वक्त की जरूरत हैं.’
इस बीच, मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि गोरखपुर की घटना के बाद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने गुरुवार को आदेश जारी किया है कि ‘बेहद गंभीर अपराधों’ में शामिल पाए जाने वाले पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया जाएगा. अधिकारी ने बताया कि मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि किसी भी दागी पुलिस अधिकारी और पुलिसकर्मी को कोई महत्वपूर्ण फील्ड पोस्टिंग नहीं दी जाएगी.
अधिकारी ने कहा, ‘उन्होंने (आदित्यनाथ ने) पुलिस विभाग को ऐसे सभी कर्मियों की पहचान करने, उनके खिलाफ सबूतों के साथ एक सूची बनाने और नियम-कायदों के मुताबिक उनके खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है.’
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