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Monday, 16 December, 2024
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हिंदुत्व की आलोचना करने से पहले उसका अर्थ तो जानिए

हिंदू धर्म को बड़ी संकीर्ण परिभाषा में तब बांध दिया जाता है जब 'धर्म' शब्द का अनुवाद ' रिलीजन' के रूप में कर दिया जाता है. 'धर्म' शब्द अपने आप में इतना विशिष्ट है कि इसका कोई अनुवाद किसी भी भाषा में उपलब्ध नहीं है.

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इन दिनों ‘हिंदुइज्म बनाम हिंदुत्व’ पर एक नई बहस खड़ी करने का प्रयास किया जा रहा है. मूलत: इस बहस को हवा देने का काम ‘हिंदुत्व’ के विरोधी कर रहे हैं. उन्होंने ही ‘सॉफ्ट बनाम हार्ड हिंदुत्व’ पर बहस को भी इस विमर्श के हिस्से के तौर पर खड़ा किया है. ‘हिंदुत्व’ के विरोधी इसे एक आक्रामक और विभाजनकारी राजनीतिक विचारधारा के रूप में परिभाषित करते हैं जबकि अंग्रेजी के शब्द ‘हिंदुइज्म’ को वह इसके मुकाबले कहीं अधिक नरम व स्वीकार्य मानते हैं.

इस बहस में एक खास किस्म की शब्दावली का इस्तेमाल हो रहा है, आज हम यहां इसी के बारे में चर्चा करेंगे क्योंकि बिना अर्थ जाने शब्दों के प्रयोग से अकसर झूठी अवधारणाएं खड़ी हो जाती हैं. इन शब्दों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई प्रमुख पदाधिकारियों ने समय—समय पर परिभाषित किया है और हिंदुत्व के समर्थक इन्हीं परिभाषाओं के संदर्भ में इन शब्दों का उपयोग करते हैं जबकि ऐसा लगता है कि हिंदुत्व के विरोधियों में से अधिकतर इन शब्दों के अर्थ जाने बिना ही इनका उपयोग आरोप—प्रत्यारोप के लिए करते हैं.

हिंदुत्व, हिंदुइज़्म, हिंदूनेस और हिंदू धर्म

हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली की अभिव्यक्ति है जो ‘सनातन धर्म’ पर आधारित है. ‘हिंदुत्व’ शब्द का सही अंग्रेजी अनुवाद ‘हिंदूनेस’ होगा. ‘हिंदुइज़्म’ अंग्रेजी का शब्द है और इसका अर्थ लगभग ‘हिंदुत्व’ के समान है, लेकिन ‘कोई भी ‘इज़्म’ यानी कि ‘वाद’ एक तय व गैर लचीले वैचारिक खांचे का परिचायक है मसलन ‘पूंजीवाद’, ‘समाजवाद’ आदि. इसलिए भारतीय जीवन शैली को निरूपित करने के लिए, किसी वाद से जुड़े शब्द हिंदुइज़्म के बजाए ‘हिंदुत्व’ शब्द अधिक उचित है, अंग्रेजी में इसका अनुवाद हिंदूनेस होगा. हिंदुत्व भारत के सनातन सभ्यतागत मूल्यों में निहित एक सांस्कृतिक प्रवाह है और इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. आरएसएस के सह-सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने 2019 में एक लेख में लिखा था, ‘… हिंदू या ‘हिंदुत्व’ होना सभी भारतीयों की पहचान बन गया है. आरएसएस के संस्थापक के बी हेडगेवार ने इस हिंदुत्व को सभी भारतीयों के बीच एकता की भावना को जगाने के लिए एक माध्यम बनाया – उन्हें उनकी जाति, क्षेत्र, धर्म और भाषा से ऊपर उठाकर एक-दूसरे से जोड़ा. उन्होंने पूरे समाज को हिंदुत्व के इस सूत्र से बांधकर संगठित करना शुरू कर दिया.’


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हिंदू राष्ट्र

‘राष्ट्र’ शब्द को अक्सर ‘राष्ट्र-राज्य’ या ‘राज्य’ शब्द का समानार्थक बनाकर उपयोग किया जाता है जो गलत है और इससे भी काफी भ्रम फैला है. यूरोप में राष्ट्र-राज्य का विकास 15वीं शताब्दी की घटना है. यह यूरोप में चर्च द्वारा सत्ता के दुरुपयोग की प्रतिक्रिया थी. भारत में ऐसी स्थिति कभी नहीं थी. यहां राष्ट्र की अवधारणा वैदिक काल से अस्तित्व में है, भारत में रहने वाले सभी लोगों द्वारा जीवन के एक साझा दृष्टिकोण के आधार पर एक विशिष्ट संस्कृति का क्रमिक विकास हुआ है जिसे हिंदू संस्कृति कह सकते हैं. राष्ट्र और राज्य में अंतर होता है. राज्य या राष्ट्र-राज्य एक राजनीतिक संघ है जबकि ‘राष्ट्र’ का अर्थ है लोगों का संघ. तो ‘हिंदू’, भारत के लोगों को जोड़कर बने राष्ट्र का एक विशेषण है और उन शाश्वत मूल्यों की अभिव्यक्ति है जो भारतीय जीवन शैली में प्राचीन काल से निहित हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पूजा पद्धति क्या है क्योंकि ये शाश्वत मूल्य सभी की सांझी विरासत हैं. हमारे समाज में हिंदुत्व की अवधारणा प्रत्येक इंसान के भीतर देवत्व को पहचानने में निहित है, इसी में यह बिंदु भी निहित है कि एक विशिष्ट पंथ या मत का अनुयायी होना व्यक्तिगत मामला है.

धर्म बनाम रिलीजन

धर्म और ‘रिलीजन’ में अंतर है. ‘रिलीजन’ अंग्रेजी का शब्द है एक विशिष्ट पूजा पद्धति से जुड़ा मत है. लेकिन धर्म कहीं अधिक व्यापक है, धर्म का अर्थ है शाश्वत मूल्यों पर आधारित जीवन जीने का ऐसा तरीका जिससे हर मनुष्य अपने भीतर के देवत्व को प्राप्त कर सके और पूरा वैश्विक समाज परम वैभव पर पहुंच सके. इस प्रकार भारत में इस्लाम, ईसाई, पारसी, यहूदी आदि कई रिलीजन हैं लेकिन धर्म केवल एक है— हिंदू. इसलिए आप भले ही मस्जिद जाते हों या चर्च या आपकी पूजा पद्धति कोई भी हो, यहां तक कि आप नास्तिक भी हों, तब भी प्रत्येक भारतीय हिंदू धर्म और हिंदुत्व का अभिन्न अंग है. व्यक्तिगत तौर पर अपनी आध्यात्मिक यात्रा के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी मत या संप्रदाय चुन सकता है, लेकिन वह भारतीय संस्कृति में निहित जिन भारतीय मूल्यों का पालन करता है, वही हिंदुत्व है.

इसलिए अक्सर हिंदू धर्म को बड़ी संकीर्ण परिभाषा में तब बांध दिया जाता है जब ‘धर्म’ शब्द का अनुवाद ‘ रिलीजन’ के रूप में कर दिया जाता है. ‘धर्म’ शब्द अपने आप में इतना विशिष्ट है कि इसका कोई अनुवाद किसी भी भाषा में उपलब्ध नहीं है.


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‘सेक्युलरिज़्म’

अंग्रेजी के इस शब्द का सही अनुवाद पंथनिरपेक्षता या मतनिरपेक्षता है न कि धर्मनिरपेक्षता!

यह उन शब्दों में से है जिनका सबसे अधिक दुरुपयोग स्वतंत्र भारत में हुआ. इसका इस्तेमाल ज्यादातर सांप्रदायिक ताकतों के तुष्टिकरण को वैधता प्रदान करने के लिए किया गया. वैसे भी जिस तरह से इसे हमारे संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया, उससे यह स्वत: ही संदेहास्पद हो गया.’

सेक्युलरिज़्म शब्द हमारे संविधान में 1976 में आपातकाल के दौरान बिना किसी बहस के शामिल किया गया था. हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे मूल संविधान में शामिल नहीं किया क्योंकि यह भारत में अप्रासंगिक था. सेक्युलरिज़्म की अवधारणा की उत्पत्ति यूरोप में चर्च द्वारा सत्ता हथियाने और उसके दुरुपयोग की प्रतिक्रिया के रूप में हुई थी. भारत में, हमारे पास कभी भी ऐसी शासन व्यवस्था नहीं थी. यहां सदियों से सभी मतों के साथ समान व्यवहार किया जाता रहा है. पारसी, यहूदी, सीरियाई ईसाई, सभी बाहर से आए और विभिन्न हिस्सों में बस गए, भारत को अपना घर बना लिया और बिना किसी उत्पीड़न और भेदभाव के अपने मत का स्वतंत्र रूप से पालन किया. इसलिए भारतीय संदर्भों में सेक्युलरिज़्म अप्रासंगिक है.

लव जेहाद

आरएसएस के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य के अनुसार, ‘आरएसएस ने यह वाक्यांश नहीं गढ़ा है. इसका इस्तेमाल पहली बार केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले में न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन ने किया. उन्होंने ऐसी प्रवृत्ति की पहचान की जिसके चलते लोग रिश्ते जोड़ते समय अपनी असली पहचान छुपा रहे थे.

आरएसएस को विभिन्न मतों के लोगों के आपसी विवाह से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन अगर यह किसी योजना का हिस्सा है और इसे एक रणनीति के तहत किया जा रहा है तो यह एक गंभीर मामला है जिस पर चर्चा की जानी चाहिए और ऐसे प्रयासों को खारिज किया जाना चाहिए (आरएसएस इंटरव्यूज़, विचार विनिमय प्रकाशन, पृष्ठ 26)

स्वदेशी

‘स्वदेशी’ देशभक्ति की बाहरी तथा व्यावहारिक अभिव्यक्ति है. यह मानना गलत है कि स्वदेशी का संबंध केवल वस्तुओं या सेवाओं से है. स्वदेशी की अवधारणा वास्तव में कहीं अधिक व्यापक है. यह राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा तथा बराबरी के स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सुनिश्चित करने के मूल तत्वों पर आधारित है.

स्वदेशी को मानने वाले अंतरराष्ट्रीयता के खिलाफ नहीं हैं. उनका बस इसी बात पर जोर है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग में कोई अन्य हमें दबा न सके और आपसी व्यहार बराबरी का हो.

सहिष्णुता बनाम स्वीकृति

सहिष्णुता यानी ‘टोलरेंस’ एक नकारात्मक शब्द है. इसका अर्थ है कि हम सामने वाले को भले ही पसंद न करें पर उसे जबरन बरदाश्त कर रहे हैं. ‘हिंदुत्व’, सहिष्णुता से बहुत आगे जाता है और स्वीकृति में विश्वास करता है जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने 1893 में विश्व धर्म संसद में कहा था, ‘हम सहिष्णुता से आगे बढ़कर उपासना की सभी पद्धतियों को सत्य मान कर स्वीकार करते हैं .’ संक्षेप में कहें तो हिंदुत्व का सार आध्यात्मिक लोकतंत्र है. इसलिए हिंदुत्व पर असहिष्णुता का आरोप लगाने का कोई आधार ही नहीं है.

पूंजीवाद, साम्यवाद और ‘तीसरा रास्ता’

1970 के दशक की शुरुआत से, विकास के उन प्रतिमानों के बारे में व्यापक मोहभंग हुआ है जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से प्रभावी थे. कई प्रमुख विचारक – पूर्व और पश्चिम दोनों में – विकल्प तलाश रहे हैं. यह स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान वैश्विक व्यापार व्यवस्था और प्रचलित संसाधन-उपयोग की नीतियां उपनिवेशवाद के आधुनिक अवतार हैं, जिन्होंने पिछली शताब्दियों में अधिकांश दुनिया को तबाह कर दिया था. वैचारिक स्तर पर, साम्यवाद अब समाप्त हो चुका है, जबकि पूंजीवाद गंभीर रूप से बीमार है. वैश्विक समस्याओं और मानव जाति की चुनौतियों का स्थायी समाधान न तो पूंजीवाद और न ही साम्यवाद द्वारा प्रदान किया जा सकता है. मानव जाति को अधिक मानवीय, गैर-शोषक, समग्र और आध्यात्मिक रूप से उन्नत ‘तीसरे रास्ते’ का पालन करना होगा जो मूलत: भारत के उन सभ्यतागत शाश्वत मूल्यों पर आधारित है जिसे हम हिंदू धर्म अथवा हिंदुत्व के नाम से जानते हैं. इसलिए हिंदुत्व में ही विश्व का कल्याण निहित है. ऐसे में हिंदुत्व बनाम हिंदुइज़्म की बहस बेमानी भी है और तथ्यात्मक दृष्टि से आधारहीन भी.

(लेखक आरएसएस से जुड़े थिंक-टैंक विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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