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Friday, 19 September, 2025
होमदेशबीफ, बॉर्डर और बिगॉट्री—असम में बीजेपी की ‘घुसपैठिया’ वाली राजनीति फिर लौटी, इस बार दांव AI पर

बीफ, बॉर्डर और बिगॉट्री—असम में बीजेपी की ‘घुसपैठिया’ वाली राजनीति फिर लौटी, इस बार दांव AI पर

असम बीजेपी का इलेक्शन ऐड कैंपेन ‘बीजेपी रहित असम’ मुसलमानों को गुवाहाटी एयरपोर्ट और स्टेडियम समेत कई जगहों पर भीड़ लगाए दिखाता है. विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं.

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नई दिल्ली: एक बुज़ुर्ग मुस्लिम आदमी खुले में मांस काटता दिख रहा है, जबकि टोपी पहने मर्द और हिजाब में औरतें एयरपोर्ट, रंगघर और क्रिकेट स्टेडियम में भीड़ लगाए हुए हैं, सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं और बॉर्डर पार कर घुसपैठ कर रहे हैं—ये सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से तैयार किए गए विज़ुअल्स असम बीजेपी के इलेक्शन ऐड कैंपेन का हिस्सा हैं.

ताज़ा वीडियो बीजेपी की विवादित वीडियोज़ की सीरीज़ के बाद आया है, जिसमें पार्टी गैरकानूनी माइग्रेशन और हिंदू-मुस्लिम बंटवारे को अपने चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है. असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में 2026 में चुनाव होने हैं.

इस ऐड में दिखाया गया है “बीजेपी रहित असम”, जिसमें मुसलमान बहुसंख्यक बन गए हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा बार-बार इस तरह की भविष्यवाणी करते रहे हैं, ताकि कथित घुसपैठियों के खिलाफ अपने सख्त कदमों को सही ठहरा सकें.

बीजेपी असम के एक्स पेज पर नज़र डालें तो हाल ही में पार्टी इसी तरह की पोस्टें करती दिख रही है—कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई को “पाईजान” कहकर पुकारा जा रहा है, यह कहते हुए कि उनके पाकिस्तान से करीबी रिश्ते हैं और यह बताते हुए कि उनकी ब्रिटिश पत्नी ने वहां काम किया है. ऐसे पोस्ट और वीडियो दिखाते हैं कि बीजेपी और हिमंता का फोकस गैरकानूनी माइग्रेशन और हिंदू-मुस्लिम विभाजन पर है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पार्टी को लगता है कि असम विधानसभा चुनाव कड़ी टक्कर वाले होंगे.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के फेलो राहुल वर्मा ने कहा, “देखिए, असम में बांग्लादेश से गैरकानूनी माइग्रेशन के मुद्दे पर राजनीतिक लामबंदी का इतिहास रहा है. मौजूदा सरकार ने इस मसले में धार्मिक एंगल जोड़ दिया है. वे दावा करते हैं कि गैरकानूनी प्रवासियों की समस्या को सुलझा रहे हैं, सीधे और परोक्ष रूप से, लेकिन फोकस अक्सर मुस्लिम माइग्रेशन पर रहता है.”

वर्मा ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “पश्चिम बंगाल और असम में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी की एक रणनीति यह लगती है कि इन राज्यों में विपक्ष को गैरकानूनी प्रवासियों और मुसलमानों से जोड़कर दिखाया जाए और यह संदेश दिया जाए कि विपक्षी पार्टियां इन समूहों की हिमायती हैं, जिन्हें लोग उनके वोटबेस का अहम हिस्सा मानते हैं.”

बीजेपी द्वारा एक्स पर डाला गया ताज़ा वीडियो असम को मुस्लिम बहुल दिखाता है और ये संकेत देता है कि राज्य “मुस्लिम टेकओवर” का सामना कर रहा है और बीजेपी न होने पर बीफ को लीगल कर देगा. जनता से अपील की गई है—“सोच-समझकर वोट दें.” इसके अलावा, वीडियो में राहुल गांधी और गौरव गोगोई पाकिस्तान के झंडे की बैकग्राउंड में नज़र आते हैं, साथ में लिखा होता है—‘पाकिस्तान लिंक पार्टी’.

बीजेपी की ‘मियां’ राजनीति

असम में मुसलमानों की आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक, 34 प्रतिशत से ज़्यादा है. इनमें असमिया मुसलमान, हिंदी बोलने वाले मुसलमान और सबसे बड़ा समूह—बांग्ला मूल के मुसलमान शामिल हैं.

असम बीजेपी की ताज़ा पोस्ट हिमंत के पुराने बयानों से मेल खाती हैं. पहले भी वे कह चुके हैं कि उनकी पार्टी को अगले 10 साल तक ‘चार’ (नदी किनारे की ज़मीन) इलाक़ों के ‘मियों’ के वोट की ज़रूरत नहीं है, जब तक वे खुद को सुधार नहीं लेते और बाल विवाह जैसी प्रथाओं से बाज़ नहीं आते. ‘मियां’ शब्द अक्सर बांग्लाभाषी मुसलमानों के लिए अपमानजनक तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

‘घुसपैठिया’ मुद्दे पर बीजेपी का ये ताज़ा वीडियो अकेला पोस्ट नहीं है.

एक दूसरी पोस्ट में बीजेपी ने गौरव गोगोई को निशाना बनाते हुए लिखा—“मियां का मसीहा आ गया.”

असम बीजेपी की एक और पोस्ट में कहा गया, “लगता है पाईजान के सिपाही अपनी खुशी रोक नहीं पाए—ऐसे नाच रहे हैं जैसे पहली और आखिरी बार उसे देख रहे हों. चुनाव भूल जाइए, ये तो पूरी बारात लग रही है!”

तीसरी पोस्ट में बीजेपी असम ने लिखा—“बोडोलैंड में चुनाव हो रहे हैं, लेकिन ज़रा पाईजान की रैली का मंच देखिए! एक भी ‘मिट्टी का बेटा’ वहां नहीं दिखा. यही है इनकी ‘रणनीति’. और जब बीजेपी चुनाव जीतेगी तो वही करेंगे जो इन्हें सबसे अच्छा आता है—नर्सरी के उस बच्चे से भी ज़्यादा शोर मचाना जिसे कैंडी नहीं मिली.”

हाल ही में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने एशिया कप के एक मैच में पाकिस्तान को हराया, तब बीजेपी असम के एक्स हैंडल ने गौरव गोगोई की एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें वे उदास नज़र आ रहे थे, और पूछा—“जीत किसकी हुई?”

पुरानी राजनीति, नई पैकिंग

वीडियो को लेकर कई नेताओं ने कड़ी आलोचना की. गौरव गोगोई और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह ‘मुस्लिम-मुक्त’ भारत बनाने की कोशिश कर रही है.

ओवैसी ने अपनी पोस्ट में लिखा, “बीजेपी असम ने एक घृणित एआई वीडियो डाला है, जिसमें दिखाया गया है कि अगर बीजेपी न हो तो असम मुस्लिम बहुल बन जाएगा. ये लोग सिर्फ वोटों के लिए डर नहीं फैला रहे, बल्कि यही उनकी घिनौनी हिंदुत्व विचारधारा है.”

बीजेपी ने पोस्ट का बचाव किया तो कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा, “…बीजेपी आईटी सेल द्वारा तैयार किए गए शब्द, काम और तस्वीरों में इतनी ताकत भी नहीं है कि असमिया समाज की सतह को खरोंच सकें. महान असम राज्य ऐसे नेताओं का हकदार है जो असम के लोगों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद करें.”

राज्य कांग्रेस इकाई ने इस मामले में पुलिस शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया है.

दिल्ली स्थित लेखक और पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने कहा कि जब भी बीजेपी चुनावी चुनौती का सामना करती है, वह तीखे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की ओर लौटती है, जैसा कि वह अब असम में कर रही है, क्योंकि अगले साल राज्य में चुनाव होने वाले हैं.

इस प्रवृत्ति को समझाते हुए मुखोपाध्याय ने कहा कि यह पैटर्न 2014 में साफ दिखने लगा था और तब से लगातार दोहराया जाता रहा है. उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले से स्वतंत्रता दिवस भाषण में जनसांख्यिकी मिशन का ऐलान किया था. मुखोपाध्याय ने कहा, “ये साफ संकेत था कि बीजेपी इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाने वाली है. इसके बाद पश्चिम बंगाल में अमित शाह और मोदी दोनों ने ‘घुसपैठियों’ की बात की.”

उन्होंने आगे कहा कि असल मुद्दे बेरोज़गारी, खाद्य कमी और युवाओं में बढ़ती नाराज़गी हैं—कुछ वैसा ही जैसा श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में देखा गया है. उन्होंने आगे कहा, “प्रचार अभियानों के बावजूद जनता बुनियादी चीज़ों—रोज़गार, खाने-पीने और ज़रूरी सुविधाओं को लेकर गंभीर समस्याओं का सामना कर रही है. मुझे बीजेपी का ये प्रयास उसकी पारंपरिक राजनीति को फिर से ज़िंदा करने की प्रक्रिया का हिस्सा लगता है.”

असम में यह राजनीति संघ परिवार के पुराने मंच की याद दिलाती है, जिसे 1978-79 में बालासाहेब देवरस के नेतृत्व में शुरू किया गया था, जब असम आंदोलन की शुरुआत हुई. मुखोपाध्याय ने कहा कि 1970 के दशक से पूर्वोत्तर में संघ का रिकॉर्ड सुधरा है, क्योंकि उसने सामाजिक विस्तार और अपनी मौजूदगी बढ़ाने पर फोकस किया. उन्होंने कहा, “अब मणिपुर, नागालैंड और असम जैसे राज्यों में संघ का संगठनात्मक दखल काफ़ी बढ़ चुका है.”

देवरस के दौर में ही बांग्लादेश से आने वाले दो समूहों में फर्क किया गया—“घुसपैठिये”, यानी ज़्यादातर मुसलमान, और “शरणार्थी”, यानी मुख्य रूप से वे हिंदू जो उत्पीड़न से भागकर आए थे. मुखोपाध्याय ने कहा, “ये नैरेटिव कहता है कि मुसलमान अक्सर भारत की जनसांख्यिकीय संतुलन को बदलने की कोशिश करते दिखते हैं, जबकि हिंदू असली शरणार्थी माने जाते हैं. असल में, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, लोग बांग्लादेश अलग-अलग वजहों से छोड़ते हैं.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ऐतिहासिक, जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक कारण प्रवास को चलाते हैं. उन्होंने कहा, “हमेशा से ऐसा ही रहा है, यहां तक कि आज़ादी से पहले भी. राजनीतिक तौर पर लगता है कि बीजेपी चिंतित है, इसलिए इन मुद्दों को उभारने की कोशिश कर रही है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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