नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) ब्रॉडकास्टिंग कन्टेंट कम्प्लेंट काउंसिल (बीसीसीसी) ने मंगलवार को मनोरंजन चैनलों से टेलीविजन कार्यक्रमों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का चित्रण करते समय अत्यंत सावधानी बरतने को कहा कि ताकि दोनों ही समुदायों के सदस्यों की भावनाएं आहत न हों।
काउंसिल ने अपने परामर्श में कहा कि चैनलों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्यों की कहानियां दिखाते समय सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके मानवीय पहलू को संवेदनशीलता के साथ संप्रेषित किया जाए और दर्शाई गयी हिंसा से समुदायों या पीड़ितों की बुरी यादें ताजा नहीं हों।
गैर-समाचार मनोरंजन चैनलों की स्व-नियामक इकाई ने कहा कि अस्पृश्यता और जातीय भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों पर आधारित कहानियों का चित्रण करते समय मनोरंजन चैनलों को एससी और एसटी समुदायों के लोगों के ‘उत्पीड़न’ में संलिप्त नहीं होना चाहिए।
संस्था ने कहा कि वह समझती है कि नैतिक आयाम वाली अनेक कहानियों में ‘अच्छाई’ और ‘बुराई’ का चित्रण करना होता है, हालांकि ऐसा करते समय चैनल को सुनिश्चित करना चाहिए कि वह ऐसी गैरकानूनी भाषा का इस्तेमाल न करे जो किसी समुदाय विशेष की भावनाओं को आहत करे।
बीसीसीसी ने कहा कि एससी और एसटी समुदायों के खिलाफ अपराध भारतीय समाज में तेजी से फैल रहे हैं।
बीसीसीसी के अनुसार, उसने चैनलों से इन समुदायों से संबंधित दृश्यों को चित्रित करते समय ‘सतर्क और संतुलित’ रहने के लिए कहा क्योंकि संदर्भ से हटकर एपिसोड का एक दृश्य भी इन समुदायों के बीच अशांति पैदा कर सकता है।
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