बरेली (उप्र), पांच नवंबर (भाषा) बरेली जिले की एक अदालत ने पुलिस टीम पर गोलीबारी के 22 साल पुराने प्रकरण में तीन आरोपियों को मामले की विसंगतियों और विश्वसनीय साक्ष्यों के अभाव का हवाला देते हुए बरी कर दिया। एक शासकीय अधिवक्ता ने बुधवार को यह जानकारी दी।
अपर जिला शासकीय अधिवक्ता (एडीजीसी) सचिन जायसवाल ने बताया कि अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश एवं विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण) तबरेज अहमद ने एक नवंबर को तीनों आरोपियों मुन्नन खान (55), सदाकत (54) और इब्ने हसन (55) को साक्ष्यों में विसंगतियां, विरोधाभास, संदिग्धता और त्रुटियां के कारण बरी कर दिया।
उन्होंने बताया कि यह मामला 23 जनवरी 2003 का है, जब बरेली के इज्जतनगर थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी एम.पी. अशोक ने एक प्राथमिकी दर्ज कराते हुए दावा किया था कि जब वह और उनकी टीम उप निरीक्षक वीर सिंह, आरक्षी राकेश कुमार और चालक राजेंद्र कुमार, जैन ईंट भट्टे के पास गश्त पर थे तभी तड़के करीब साढ़े चार बजे एक लकड़ी डिपो के पास छिपे तीन लोगों ने उन पर गोलीबारी की।
पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने जवाबी गोलीबारी की और आरोपियों को मौके से गिरफ्तार कर लिया, और उनके पास से दो देसी पिस्तौल और कारतूस बरामद किए। हालांकि, मुकदमे के दौरान, अदालत ने जांच और अभियोजन पक्ष में गंभीर खामियों का उल्लेख किया।
सुनवाई के दौरान 11 गवाहों को पेश करने के बावजूद, पुलिस कोई स्वतंत्र गवाह या दस्तावेजी सबूत, जैसे कि पुलिस टीम के थाने से जाने की आधिकारिक लॉगबुक, पेश करने में विफल रही।
उन्होंने बताया कि बरामद हथियारों और कारतूसों की भी अदालत में उचित पुष्टि नहीं की गई और कथित गोलीबारी स्थल पर कोई खाली खोखा नहीं मिला।
अदालत ने टिप्पणी की कि मौखिक गवाही और कथित बरामदगी संदिग्ध प्रतीत होती है और जांच निष्पक्ष नहीं थी।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।
विरोधाभासों, विसंगतियों और विश्वसनीय साक्ष्यों के अभाव का हवाला देते हुए अदालत ने 22 साल की लंबी सुनवाई के बाद तीनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
भाषा सं आनन्द
नोमान खारी
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