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Wednesday, 24 April, 2024
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बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना बोलीं—भारत तीस्ता को बहने देता तो उसे हिल्सा की कमी नहीं रहती

तीस्ता नदी को लेकर विवाद के एक राजनीतिक घमासान में बदल जाने के बीच भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल बंटवारे का मुद्दा काफी अहम हो गया है.

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नई दिल्ली: काफी घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंधों के बावजूद भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल का प्रबंधन एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है, खासकर तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर, जो कई वर्षों से अटका पड़ा है.

इस जल विवाद ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए राजनीतिक मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं जिन्हें अगले साल एक चुनौतीपूर्ण चुनावों का सामना करना है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात के दौरान खासकर तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे का मुद्दा उठाने से जुड़े एक सवाल पर शेख हसीना ने दिप्रिंट से कहा कि वह मंगलवार को प्रधानमंत्री के साथ अपनी बैठक के दौरान ‘दोस्ती और गहरी करने’ पर चर्चा करेंगी.

भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आई प्रधानमंत्री शेख हसीना सोमवार शाम बांग्लादेश उच्चायोग की तरफ से आयोजित एक स्वागत समारोह में पत्रकारों के एक समूह को संबोधित कर रही थीं.

बांग्लादेशी पीएम ने तीस्ता समझौते पर बातचीत अटकी होने का संकेत देते हुए थोड़े हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘अगर आपने पानी बहने दिया होता, तो सभी हिल्सा (मछली) भारत की ओर आ जातीं और आपको हम पर निर्भर नहीं रहना पड़ता.’

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उन्होंने कहा कि हालांकि, बांग्लादेश अब उन सभी 54 नदियों की बड़े पैमाने पर साफ-सफाई पर ध्यान दे रहा है जो दोनों देशों के लिए साझी हैं. उन्होंने कहा कि फिलहाल दोनों देशों की सीमाओं पर बहने वाली दो मुख्य नदियों मुहुरी और फेनी-कुशियारा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, ये दोनों त्रिपुरा से निकलती हैं और बांग्लादेश में बहती हैं.

उन्होंने बताया कि बांग्लादेश जल्द ही अपनी सभी नदियों से गाद निकालने की प्रक्रिया शुरू करेगा और उम्मीद है कि भारत इसके लिए लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) प्रदान करेगा क्योंकि ये ज्यादातर साझी ट्रांसबाउंड्री नदियां हैं.

उन्होंने बताया कि इसके अलावा, बांग्लादेश भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने के साथ-साथ कुछ पुरानी और सूख चुकी नदियों को पुनर्जीवित करने पर काम कर रहा है.

बांग्लादेश को मोदी सरकार की तरफ से लगातार यह आश्वासन दिया जाता रहा है कि तीस्ता मुद्दा हल कर लिया जाएगा, लेकिन पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी द्वारा इस कदम का विरोध किए जाने के बाद से यह मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है.

तीस्ता नदी सिक्किम से निकलती है और पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है और फिर अंत में असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में जमुना में मिल जाती है. बांग्लादेश में कुल 230 नदियां हैं, जिनमें से 54 भारत से होकर बहती हैं.

सितंबर 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान तीस्ता करार पर हस्ताक्षर होने थे, लेकिन ममता बनर्जी की तरफ से जताई गई आपत्तियों के कारण अंतिम समय में इसे स्थगित कर दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘मैं तो इस यात्रा पर ममता से भी मिलने की उम्मीद कर रही थी… लेकिन क्या करूं? वह एक बहन की तरह है. हमारा राजनीति से परे भी एक रिश्ता है, जैसा रिश्ता मेरा गांधी परिवार के साथ भी है.’

हसीना ने जुलाई में पश्चिम बंगाल की सीएम को एक पत्र लिखकर बैठक के प्रति अपनी रुचि जाहिर की थी.

पिछले माह, भारत और बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग (जेआरसी) की दिल्ली में बैठक हुई, जहां तीस्ता मुद्दे पर चर्चा हुई. बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि 1996 में की गई गंगा जल संधि को भी 2026 में रिन्यू किया जाएगा.

मई 2014 में सत्ता के आने पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के तहत वादा किया था कि तीस्ता मामले को सुलझाया जाएगा.


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रोहिंग्या मामले पर ‘बहुत कुछ कर सकता है भारत’

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वह इस यात्रा के दौरान रोहिंग्याओं की वापसी का मुद्दा भी उठाएंगी.

उन्होंने कहा, ‘भारत एक बहुत बड़ा देश है, यह (रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजने पर) बहुत कुछ कर सकता है.’

2019 से ही बांग्लादेश की तरफ से भारत पर रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी को लेकर म्यांमार से बात करने का दबाव डाला जा रहा है क्योंकि नई दिल्ली और नेपीता, जुंटा शासन की वापसी के बाद भी, सौहार्दपूर्ण संबंध साझा करते हैं.

2017 में म्यांमार सेना के हिंसक अभियान के कारण म्यांमार से भागे करीब 15 लाख रोहिंग्या वर्तमान में बांग्लादेश के चटगांव क्षेत्र में विभिन्न शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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